शेयर बाज़ार आज के यथार्थ पर नहीं, बल्कि कल के ख्वाब पर चलता है। हालांकि ये ख्वाब भी हवा-हवाई नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत से निकले अनुमानों पर टिके होते हैं। अर्थव्यवस्था और कंपनियों की संभावित मजबूती ही अंततः शेयर बाज़ार की तेज़ी का आधार होती है। लेकिन अर्थव्यवस्था को अगर सब्ज़बाग पर चुनावी उड़ान भरने का साधन बना दिया जाए तो मामला बड़ा संगीन हो जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था को कायदे से 8-9% की सालाना दर से बढ़ना चाहिए। लेकिन नोटबंदी से लेकर जीएसटी की असमय मार के चलते उसकी औसत विकास दर 6% तक सिमट गई। ऐसे कदमों से सरकार का टैक्स संग्रह लबालब होता गया, लेकिन अर्थव्यवस्था अदर ही अंदर सिहरने लगी। फिर भी वो अगर सालाना 6% की दर से भी बढ़ी तो साल 2026-27 का अंत-अंत आते जीडीपी के आकार में जर्मनी व जापान से बड़ी होकर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। लेकिन भारत तब भी निम्न मध्यम आय वाला देश ही बना रहेगा क्योंकि तब भी हमारी प्रति व्यक्ति आय 3500 डॉलर तक सिमटी रहेगी। फिर विकसित देश बनने की राह क्या है? अब सोमवार का व्योम…
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