वित्त मंत्रालय ने प्रत्यक्ष कर संहिता (डायरेक्ट टैक्स कोड, डीटीसी) का संशोधित प्रारूप जारी कर दिया है। इसमें अब ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं है। जिसको भी कोई सुझाव देना हो, वे 30 जून तक directtaxescode-rev@nic.in पर मेल कर सकते हैं। अगले महीने शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में इसे विधेयक के रूप पेश किया जाएगा और पारित होने के बाद यह करीब 50 साल पुराने आयकर अधिनियम 1961 की जगह ले लेगा।
सभी लोग चहक रहे हैं कि संशोधित प्रारूप में पेंशन व बीमा वगैरह की बचत पर निकासी के समय टैक्स लगाने का शुरुआती प्रस्ताव हटा लिया है और होम लोन पर 1.50 लाख ब्याज को कर योग्य आय से घटाने का प्रस्ताव बहाल कर दिया है। लेकिन असलियत इतनी आसान नहीं है। वैसे भी, टैक्स संबंधी मामले इतने उलझे होते हैं कि चार्टर्ड एकाउंटेंट तक गच्चा खा जाते हैं।
असल में डीटीसी की पहली विफलता यही है कि इसका मूल मकसद कर-संबंधी उलझावों को कम करना था, जबकि संशोधित प्रारूप में इसे फिर से उलझा दिया गया है। जैसे, पहले होम लोन पर 1.50 लाख रुपए ब्याज की छूट खत्म करने का प्रस्ताव था। अब उसे हटा लिया गया है, लेकिन इसे शुरुआती प्रस्ताव में आयकर कानून की धारा 80 सी के तहत 1.10 लाख से बढ़ाकर 3 लाख रुपए की सीमा में ही गिना जाएगा। पहले भी आयकरदाता 80 सी के तहत 3 लाख रुपए बचा सकता था, अब भी उतना ही बचा पाएगा तो फर्क क्या पड़ा।
पहले प्रस्ताव था कि 1.60 लाख से 10 लाख तक की सालाना कर-योग्य आय पर 10 फीसदी, 10 लाख से 25 लाख तक की आय पर 20 फीसदी और 25 लाख से ज्यादा आय पर 30 फीसदी की दर से टैक्स लगाया जाएगा। अब इस पर कुछ साफ न कह कर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अधिकारी इतना भर कह रहे हैं कि इस पर अंतिम फैसला विधायिका का होगा। यानी, संसद में विधेयक लाते समय इसे स्पष्ट किया जाएगा, जिस पर हमारे एमपी फैसला करेंगे। अंदेशा यही है कि अब 1.60 लाख से 5 लाख का नया स्लैब बना दिया जाएगा और टैक्स की दर ऐसी कर दी जाएगी जितना हम लंबी अवधि की बचत को ईईई (एक्जेम्प्ट, एक्जेम्प्ट, एक्जेम्प्ट) में लाने से खुश हो रहे हैं, उतना टैक्स तो हमसे पहले ही वसूल कर लिया जाएगा।
प्रॉविडेंट फंड, पेंशन फंड और बीमा को ईईटी (एक्जेम्प्ट, एक्जेम्प्ट, टैक्स) से हटाकर ईईई (एक्जेम्प्ट, एक्जेम्प्ट, एक्जेम्प्ट) में ला देने से आम लोगों की बहुत बड़ी चिंता को शांत किया गया है। लेकिन यह सुविधा नई पेंशन स्कीम, जीपीएफ, पीपीएफ, आरपीएफ और शुद्ध बीमा उत्पादों पर ही मिलेगी। मतलब साफ है कि यूलिप स्कीमों से अंत में मिलनेवाले भुगतान पर टैक्स देना होगा। इसी तरह अब कैपिटल गेन्स में लांग व शॉर्ट टर्म का झंझट खत्म करने का प्रस्ताव है। अभी शेयरों या म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों में एक साल से ज्यादा के निवेश पर मिले लाभ पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता था। लेकिन महीने या साल जितने भर का निवेश हो, उस पर कैपिटल गेन्स टैक्स देना होगा।
न्यूनतम कर देनेवाली कंपनियां खुश हैं क्योंकि पहले उनसे सकल संपत्ति पर मैट (न्यूनतम वैकल्पिक कर) लेने की बात थी, लेकिन अब केवल मुनाफे पर लिया जाएगा। विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) उहापोह में हैं। एक तरफ शेयरों में निवेश से हुई आय को बिजनेस इनकम दिखाने की सहूलियत खत्म कर दी गई है तो दूसरी तरप मॉरीशस या सिंगापुर के होने की रियायत बरकरार रखी गई है। वे समझ नहीं पा रहे है कि इसमें कितना फायदा या नुकसान है। बता दें कि नए टैक्स कोड को अगले वित्त वर्ष की शुरुआत अप्रैल 2011 से लागू कर दिया जाना है। इसी के साथ अप्रत्यक्ष कर सुधारों के तहत जीएसटी (माल व सेवा कर) भी लागू किया जाएगा।