सरकार रिजर्व बैंक के साथ इस मसले पर बातचीत कर रही है कि होम लोम को कैसे प्राकृतिक आपदाओं से होनेवाले नुकसान से बचाने के बीमा के साथ जोड़ा जा सकता है। बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) के चेयरमैन जे हरिनाराणन ने बुधवार को दिल्ली में फिक्की द्वारा आयोजित सेमिनार में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि, “हम अब भी प्राकृतिक आपदाओं से व्यक्ति को बीमा देने का तरीका तलाशने में लगे हैं, लेकिन ऐसा कोई इकलौता बीमा उत्पाद अभी तक नहीं ईजाद कर सके हैं। अगर होम लोन देनेवाले बैंक के लिए अनिवार्य कर दिया जाए कि वह इसमें आपदा बीमा का खर्च भी जोड़ दे तो यह एक उपयोगी कदम हो सकता है।”
आपदा बीमा की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि सरकारी अनुमान के मुताबिक बाढ़ से हर साल 1100 करोड़ रुपए की सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होता है, 1000 करोड़ की फसलें बरबाद हो जाती हैं और घरों व उनमें रखे सामान के रूप में 600 करोड़ करोड़ की हानि होती है। आपदा और गरीबी में भी सीधा संबंध है। गरीब देशों के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 12-13 फीसदी हिस्सा हर साल प्राकृतिक आपदाओं की भेंट चढ़ जाता है।
इरडा चेयरमैन ने कहा कि अभी प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान की अधिकांश भरपाई सरकार की तरफ से सार्वजनिक इमारतों को दुरुस्त करने, फसल ऋणों को माफ करने या राहत कार्यों के रूप में बजट से की जाती है। लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर हुए नुकसान की भरपाई की कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए निजी संपत्ति का बीमा कराने की भारी जरूरत है। इस मौके पर फिक्की के महासचिव अमित मित्रा ने कहा कि भारत का बीमा उद्योग अमेरिका या ब्रिटेन जैसे विकसित देशों की तुलना में अभी एकदम शुरुआती अवस्था में है। जोखिम को संभालने के मामले में भारत जैसे उभरते देश बहुत पीछे हैं। गरीब लोग तो प्राकृतिक आपदा में तबाह हो जाते हैं और उनकी मामूली बचत भी स्वाहा हो जाती है। इसलिए इसकी बीमा के बारे में सामुदायिक स्तर पर पहल जरूरी हो गई है।