केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक 2010 को स्वीकृति दे दी। अब इस विधेयक 26 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। इस विधेयक को विदेश मंत्रालय ने थाईलैंड में अक्टूबर 2009 में पूर्व एशिया सम्मेलन के दौरान हासिल सर्वसम्मति के आधार पर तैयार किया है। विश्वविद्यालय की तैयारी के लिए दिल्ली में एक प्रोजक्ट ऑफिस किराए पर लिया जा चुका है जो संसद में विधेयक के पास होते ही काम करना शुरू कर देगा। शुरुआत के कुछ सालों में विश्वविद्यालय के संचालन के लिए नालंदा मेंटॉर ग्रुप बनाया गया है जिसके अध्यक्ष प्रो. अमर्त्य सेन हैं।
विश्वविद्यालय की स्थापना में पूर्व और दक्षिण एशिया के देश सहयोग दे रहे हैं। इसकी अनुमानित लागत 1005 करोड़ रुपए है जिसका बड़ा हिस्सा मेजबान देश होने के नाते भारत खर्च करेगा। बिहार सरकार ने इसके लिए प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की मूल जगह के पास राजगीर में करीब 500 एकड़ जमीन हासिल कर ली है। इसके अलावा 500 एकड़ जमीन अभी और ली जानी है।
विश्वविद्यालय में बौद्ध दर्शन से लेकर इतिहास, अंतरराष्ट्रीय संबंध, बिजनेस मैनेजमेंट, भाषा, साहित्य, पारिस्थितिकी और पर्यावरण जैसे विषयों पर अध्ययन व शोध किया जाएगा। इसका मकसद यह है कि जिस तरह अतीत में नालंदा विश्वविद्यालय ने ज्ञान व दर्शन के केंद्र का काम किया था, उसी तरह यह भी कम से कम पूर्व व दक्षिण एशिया का केंद्र बन सके। इसे बौद्ध दर्शन के प्रमुख केंद्र के रूप में देखा जा रहा है ताकि इससे पर्यटन उद्योग को भी लाभ मिल सके। पूरी परियोजना में आसपास के 200 पुराने गांवों के लोगों को भी शामिल किया जाएगा।