मायावती ने बड़ा विचित्र-सा बयान दिया है कि उनकी हार के लिए कांग्रेस और बीजेपी जिम्मेदार हैं क्योंकि उनकी हरकतों ने मुसलमान तबके का 70 फीसदी वोट मुलायम की समाजवादी पार्टी की तरफ केंद्रित कर दिया। लेकिन हकीकत यह है कि इस बार महिलाओं का ज्यादा वोट देना असल में मायावती के लिए भारी पड़ा है।
चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस बार उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में 60.29 फीसदी महिला मतदाताओं ने अपने लोकतांत्रिक हक का इस्तेमाल किया है, जबकि 2007 के विधानसभा चुनावों में 41.92 फीसदी महिला मतदाताओं ने ही अपने घरों से निकलकर वोट दिया था। इस बार पुरुष मतदाताओं का वोटिंग अनुपात 58.82 फीसदी है। उत्तर प्रदेश में महिलाओं का ज्यादा वोट करना इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 816 ही है।
अभी जिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए हैं, उनमें मतदाताओं की संख्या में सबसे ज्यादा इजाफा उत्तर प्रदेश में ही हुआ है। 2007 में उत्तर प्रदेश में कुल मतदाता 11.35 करोड़ थे, जबकि 2012 में यह संख्या 12.15 फीसदी बढ़कर 12.73 करोड़ हो गई। लेकिन 2007 में जहां 46.07 फीसदी मतदाताओं ने ही वोट डाला था, वहीं इस बार कुल मतदान 59.48 फीसदी रहा। इस बार पहले से करीब 2.40 करोड़ ज्यादा मतदाताओं ने वोट डाला जो 45.81 फीसदी की बढ़त को दर्शाता है।
ऑल इंडिया वीमेंस एसोसिएशन की अध्यक्ष सुभाषिनी अली कहती है कि महिलाओं के ज्यादा वोट देने की एक वजह तो यह है कि इस बार माहौल शांतिपूर्ण और व्यवस्थित था। फोटो लगी वोटर स्लिप कई दिन पहले ही मतदाताओं तक पहुंचा दी गई थी। दूसरी वजह यह है कि प्रदेश से काम-धंधे के सिलसिले में भारी संख्या में पुरुषों का पलायन हो रहा है। तीसरी बात यह है कि इस बार नए मतदाताओं में युवा लड़कियों की संख्या ज्यादा है। और, सबसे बड़ी बात यह है कि महिलाएं अब परिवार के दूसरे सदस्यों के कहने के बजाय अपने वोट का फैसला खुद करने लगी हैं।
सेंटर फॉर एडवोकेसी रिसर्च की प्रमुख अखिला शिवदास का कहना है कि महिलाओं का ज्यादा वोट देना बढ़ते दामों के खिलाफ उनके गुस्से और अण्णा हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का भी असर है। उनके मुताबिक महिलाओं का ज्यादा वोट देना ही मायावती की हार का प्रमुख कारण बना है।
गौरतलब है कि 2007 के चुनावों में मायावती की पार्टी बसपा को कुल 30.28 फीसदी वोट मिले थे, जबकि सीटों की संख्या 206 थी। 2012 में कुल वोटों में बसपा का हिस्सा घटकर 25.9 फीसदी हो गया। लेकिन महज 4.38 फीसदी वोट कम पाने से बीएसपी की सीटें 61.17 फीसदी घटकर 80 पर आ गईं। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी को इस बार कुल वोटों का 29.2 फीसदी हिस्सा ही मिला है, यानी 2007 में मायावती के वोट प्रतिशत से कम। फिर भी उसकी सीटों की संख्या 130.93 फीसदी बढ़कर 224 पर पहुंच गई।
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि इन आंकड़ों से साफ है कि विधानसभा में किसी पार्टी की स्थिति उसके सही जनाधार का प्रतिनिधित्व नहीं करती। भारत की संसदीय लोकतंत्र की यह विसंगति है, जिसे सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए देर-सबेर दूर करना ही पड़ेगा।