कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने देश की 1,55,392 कंपनियों को ब्लैक-लिस्ट कर दिया है। इसकी वजह यह है कि इन कंपनियों ने 2006-07 से लेकर अब तक किसी साल की बैलेंस शीट दाखिल नहीं की है। सरकार के इस कदम के बाद ये कंपनियां न तो बैंकों या वित्तीय संस्थाओं के कोई ऋण ले पाएंगी और न ही किसी के साथ कोई नया अनुबंध कर पाएंगी।
यह जानकारी खुद कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के सचिव डी के मित्तल ने आधिकारिक तौर पर अंग्रेजी के प्रमुख आर्थिक अखबार मिंट को दी है। उन्होंने कहा कि इस कदम का मकसद कंपनियों को कॉरपोरेट गवर्नेंस के पालन के लिए मजबूर करना है। जैसे ही वे अपनी बैलेंस शीट व अन्य संबंधित दस्तावेज जमा कर देंगी तो मंत्रालय उचित जुर्माना लेकर ब्लैकलिस्ट से उनका नाम हटा देगा।
मंत्रालय ने यह फैसला पिछले हफ्ते लिया है। इस फैसले के तहत इन कंपनियों के 2,84,778 निदेशक और इनसे जुड़े चार्टर्ड एकाउंटेट (सीए) समेत 1303 प्रोफेशनल मंत्रालय के साथ किसी तरह का वास्ता नहीं रख सकते। दूसरे शब्दों में ये निदेशक व प्रोफेशनल किसी अन्य कंपनी की तरफ से मंत्रालय में सूचनाएं नहीं प्रस्तुत कर सकते। इससे जाहिरा तौर पर उनका धंधा प्रभावित होगा।
मंत्रालय के इस कदम की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि देश में कुल सक्रिय कंपनियों की कंपनियों की संख्या 8 लाख के आसपास है। उनमें से 19 फीसदी से ज्यादा को ब्लैकलिस्ट किया जाना बहुत बड़ी बात है। मंत्रालय जल्दी ही इन डिफॉल्टर कंपनियों की लिस्ट अपनी वेबसाइट पर डाल देगा। सबसे ज्यादा 34,411 डिफॉल्टर कंपनियां दिल्ली क्षेत्र की हैं। उसके बाद 30,502 कंपनियों के साथ मुंबई देश में दूसरे नंबर पर है।