कभी-कभी कुछ चीजों का साक्ष्य नहीं होता, लेकिन इससे वो चीजें गलत नहीं हो जातीं। मैं यहां ईश्वर जैसी सत्ता की नहीं, बल्कि शेयर बाजार में अभी हाल में चले खेल की बात कर रहा हूं। साधारण-सी रिश्वतखोरी को बडे घोटाले की तरह पेश करना, लोड सिंडिकेशन के काम में लगी मनी मैटर्स फाइनेंशियल सर्विसेज को निपटाना, सेंसेक्स से ज्यादा मिड कैप और स्माल कैप शेयरों को पीट डालना, कुछ ऑपरेटरों को रत्ती भर भी आंच न आना और कुछ का जिबह हो जाना, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले व मुद्रास्फीति पर अड़ियल विपक्ष द्वारा संसद को 12 दिनों से न चलने देना। इन सबके तार आपस में जुड़े हैं। और, इन्हीं से जुड़ा है, बुधवार 17 नवंबर को एक्सिस बैंक द्वारा एनम सिक्यूरिटीज के मुख्य धंधे को खरीदना।
एक्सिस बैंक और एनम सिक्यूरिटीज की डील को सफल बनाने में अहम भूमिका आई-कैन एडवाइजर्स के मुखिया अनिल सिंघवी की रही है। बाजार में हर कोई जानता है कि अनिल सिंघवी रिलायंस समूह और मुकेश अंबानी के खास आदमी हैं। मनी मैटर्स ने पिछले पांच सालों में 46,000 करोड़ रुपए का लोन सिंडिकेशन किया था। यह वो काम है जो एनम जैसे बड़े इनवेस्टमेंट बैंकर भी नहीं कर पाए। इस समय एनम की प्रॉप-बुक (लोगों का धन जिसको वह संभालती है) 15,000 करोड़ रुपए की है। मनी मैटर्स के खत्म होने का परोक्ष लाभ एनम को मिलेगा जो अब मुकेश भाई के खास ‘आदमी’ अनिल सिंघवी की डीलिंग-सेटिंग से एक्सिस बैंक की हो चुकी है।
यह भी बाजार के लोग अच्छी तरह जानते हैं कि मनी मैटर्स ने रीयल्टी फर्मों से कहीं ज्यादा लोन सिंडिकेशन अनिल अंबानी समूह के लिए किया है और उसके मुखिया राजेश शर्मा अनिल धीरूभाई अंबानी के काफी करीबी हैं। मनी मैटर्स के निपटने से टेढ़ा निशाना अनिल अंबानी पर लगा है और टेढ़ा फायदा मिला है एनम सिक्यूरिटीज को जिसके तार अनिल सिंघवी के जरिए मुकेश अंबानी से जुड़े हैं। बाजार के लोग याद करते हैं कि मनी मैटर्स के मिटने से जैसा फायदा एनम को मिलेगा, वैसा ही फायदा अतीत में केतन पारेख के खत्म होने से आनंद राठी को मिल चुका है।
अब हाउसिंग लोन रैकेट के सीबीआई द्वारा पर्दाफाश की बात। सीबीआई ने बाजार के कारोबारी दिन, बुधवार 24 नवंबर को बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर ऐलान किया कि उसने मनी मैटर्स के सीएमडी राजेश शर्मा व दो अन्य अधिकारियों के साथ एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस के सीईओ, एलआईसी के सचिव (निवेश) और तीन बैंकों के अधिकारियों को गिरफ्तार किया है। इससे पहले दोपहर तक यह खबर मीडिया तक पहुंचा दी गई थी और बाजार में ‘स्कैम’ से जुड़े शेयरों की धुनाई शुरू हो चुकी थी।
एक्सिस बैंक और एनम की डील के ठीक एक हफ्ते बाद सीबीआई ने यह कांड किया। चाहती तो पहले भी कर सकती थी क्योंकि वह मनी मैटर्स द्वारा लोन दिलाने के लिए सरकारी बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के आला अधिकारियों को घूस देने के मामले की जांच वह पिछले पांच महीनों से कर रही थी और कुछ महीने पहले वह मनी मैटर्स के ठिकानों पर छापे भी मार चुकी थी।
फिर तो अगले दो दिनों तक शेयर बाजार की धुनाई का काम चलता रहा है। सेंसेक्स कुल 8.7 फीसदी ही गिरा, लेकिन तमाम मिड कैप और स्मॉल कैप शेयर 40 से 50 फीसदी तक गिरा दिए गए। यहां भी बाजार के जानकार जानते हैं कि गिरनेवाले ज्यादातर शेयर ऑपरेटरों द्वारा संचालित शेयर हैं। इनमें से एनम सिक्यूरिटीज, रेलिगेयर और मनीष मारवाह जिन शेयरों को चलाते हैं, उनको कोई रेफ तक नहीं आई। लेकिन राकेश झुनझुनवाला, अजय दाढ़ी, मोतीलाल ओसवाल, एडलवाइस और इंडिया इंफोलाइन, इंडियाबुल्स, बोनांजा और आनंद राठी के खित्ते के शेयर कायदे से धुने गए। जीएस या राधाकृष्ण दामाणी (ओल्ड फॉक्स) को खास नुकसान इसलिए नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने अच्छी तरह हेजिंग कर रखी थी। बारिश में हर कोई भीगता है, लेकिन बाजार पर बरसते ओलों से एनम के स्टॉक बच गए, इस करिश्मे पर गौर करना जरूरी है।
अब आखिरी बात। रिश्वतखोरी को हाउसिंग लोन का घोटाला बताने से 2जी स्पेक्ट्रम का शोर थमा तो नहीं, लेकिन लोगों का ध्यान दूसरी तरफ चला गया। मुद्रास्फीति के आंकड़े घट रहे हैं। अब रीयल्टी सेक्टर पर ताजा घमक से प्रॉपर्टी के दाम 20-30 फीसदी घट जाएंगे। सरकार इस कमी को सांकेतिक रूप से इस्तेमाल पर मुद्रास्फीति पर जारी विपक्ष के हमले को धीमा कर सकती है।
हम यहां कहीं से भी मनी मैटर्स को बचाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। लेकिन उसके मामले को जिस तरह ब्लो-अप किया गया है, उसका संदर्भ-प्रसंग पेश कर रहे हैं। यह सच है कि मनी मैटर्स ने दलाली के घोषित धंधे को बढ़ाने के लिए अपने संपर्कों और नेटवर्क का इस्तेमाल किया। उसने इसके लिए रिश्वतखोरी जैसा गलत तरीका भी अपनाया। लेकिन हमाम में सब नंगे हैं। अपने मुल्क में छोटे से बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार का बोलबाला है। फिर मनी मैटर्स को ही क्यों चुना गया? इसका सच समझने के लिए कुछ सूत्र मैंने यहां पेश किए हैं। बाकी सारे तार जोड़कर आप पूरी तस्वीर बना सकते हैं।
अंत में फिर वही शुरुआत की बात या कहिए कि एक तरह का डिस्क्लेमर। यहां कही गई बातों का कोई साक्ष्य नहीं है। बाजार की चर्चाओं पर आधारित बातें ही मैंने पेश की हैं। इसलिए इनको इसी तरह लिया जाना चाहिए।