सेबी के कंसेंट ऑर्डर के खिलाफ कोर्ट की लड़ाई में मिदास टच भी शामिल

कानपुर से संचालित होनेवाले मिदास टच इनवेस्टर एसोसिएशन को भी दिल्ली हाईकोर्ट ने सेबी के कंसेट ऑर्डर के खिलाफ दायर जनहित याचिका (पीआईएल) में पक्षकार बना लिया है। हाईकोर्ट ने मंगलवार को इस पर फैसला करने के बाद पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी को नोटिस जारी कर दिया है। मालूम हो कि सेबी की कंसेंट ऑर्डर व्यवस्था की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है।

यह पीआईएल दिल्ली के एक बिजनेसमैन दीपक खोसला ने दायर की है। उन्होंने सेबी के साल 2007 के उस सर्कुलर को चुनौती दी है जिसके अंतर्गत सेबी में पूर्णकालिक निदेशक स्तर का कोई अधिकारी आरोपी को दोष तय किए बगैर कंसेट ऑर्डर के जरिए सामान्य जुर्माना लगाकर छोड़ देता है। यूं तो मामला कोर्ट में जाने के बाद सेबी ने कंसेंट ऑर्डर का सिलसिला रोक रखा है। लेकिन इससे पहले वह अनिल अंबानी से लेकर मनमोहन शेट्टी तक को अपराध से कहीं कम जुर्माना लगाकर छोड़ चुकी है।

2007 में नियम बनने के बाद सेबी ने अभी तक 1000 से ज्यादा मामलों में कंसेंट ऑर्डर सुनाकर करीब 200 करोड़ रुपए का जुर्माना जुटाया है। ध्यान देने की बात यह भी है कि इस तरह मिला जुर्माना सेबी के खाते में नहीं जाता, बल्कि भारत सरकार की समेकित निधि (कंसोलिडेटेड फंड) में जमा हो जाता है। इसलिए इस व्यवस्था के जारी रहने के पीछे कहीं न कहीं सरकार का भी हाथ और फायदा है।

यह भी मालूम हो कि मिदास टच निवेशक संगठन के संस्थापक वीरेंद्र जैन हैं और वे कई दशकों से, हर्षद मेहता के जमाने से, निवेशकों के हितों के लिए लड़ते रहे हैं। मिदास टच ने दिल्ली हाईकोर्ट में अर्जी लगाई कि उसे भी सेबी के कंसेट ऑर्डर के खिलाफ दायर पीआईएल में शामिल होने का मौका दिया जाए क्योंकि इस मसले पर उसके पास अतिरिक्त जानकारियां हैं। उसके अनुरोध को हाईकोर्ट में जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ की पीठ ने स्वीकार कर लिया और तदनुसार सेबी को नोटस जारी कर दिया।

मिदास टच ने इस बाबत तर्क दिया है कि वह साल 2002 में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सामने पेश होनेवाले आठ असंबद्ध संगठनों व व्यक्तियों में एक रहा है। इसलिए पीआईएल में उसको पक्षकार बनाना न्याय के हित में होगा। मिदास टच के अध्यक्ष वीरेंद्र जैन का कहना है कि कंसेंट ऑर्डर के जरिए सेबी को जिस तरह की शक्तियां दी गई हैं, वो किसी अधिनायकवादी सत्ता में ही दी जा सकती हैं, लोकतांत्रिक व्यवस्था में नहीं। पीआईएल में भी कहा गया है कि कंसेंट आर्डर के जरिए दी जानेवाली ‘सुपर एमनेस्टी’ या विशिष्ट क्षमादान खुद सेबी के ही कायदे-कानून की भावना के खिलाफ है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि कंसेंट ऑर्डर के बारे में जारी किए गए सेबी के दिशानिर्देशों का अभी तक भयंकर दुरुपयोग हुआ है। यहां साल 2002 में केतन पारेख घोटाले के बाद गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की सिफारिशों का भी हवाला दिया गया है। जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि केतन पारेख, बैंकों और कॉरपोरेट घरानों के बीच एक गठबंधन काम कर रहा था जिसे तोड़ने की जरूरत है। उसने सिफारिश की थी कि सेबी, कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय और दूसरी प्रवर्तन व जांच एजेंसियों को इस गठजोड़ की तहकीकात करनी चाहिए और उपयुक्त कानूनों के तहत दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन इसके बाद सेबी ने कंसेंट ऑर्डर की व्यवस्था लागू कर दी जिसमें बिना किसी का दोष तय किए मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। यह संसद की भावना का सरासर उल्लंघन है।

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