देश की इकलौती लिस्टेड माइक्रो फाइनेंस कंपनी एसकेएस माइक्रोफाइनेंस का शेयर गुरुवार को तीखी गिरावट के साथ 20 फीसदी के निचले सर्किट ब्रेकर तक पहुंच गया। वो 639.45 रुपए की तलहटी बनाने के बाद 640.70 रुपए पर बंद हुआ जो मंगलवार के आखिरी भाव से 19.84 फीसदी नीचे है। यह जबरदस्त गिरावट सबह-सुबह कंपनी की तरफ से जारी बयान के बाद आई कि आंध्र प्रदेश में 15 अक्टूबर को अध्यादेश आने के बाद से 15 नवंबर तक के 30 दिनों में उसकी कर्ज उगाही सामान्य से कम रही है और ऐसा ही रहा तो कंपनी की आय व लाभप्रदता पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
गौरतलब है कि इसी साल जुलाई में एसकेएस माइक्रो फाइनेंस ने आईपीओ के तहत 10 रुपए के शेयर 985 रुपए पर जारी किए थे और 18 अगस्त को लिस्टिंग के दिन ही उसका शेयर 18 फीसदी उछल गया था। यही नहीं, 28 सितंबर को वह ऊंचे में 1490.70 रुपए तक चल गया था। लेकिन अक्टूबर मध्य से वह लगातार गिरता जा रहा है और कई ब्रोकरेज हाउसों ने उसे अब डाउनग्रेड कर दिया है।
बता दें कि आंध्र प्रदेश सरकार ने 15 अक्टूबर को एक अध्यादेश जारी कर नियम बना दिया है कि किसी भी कर्ज की उगाही का चक्र एक महीने से कम नहीं हो सकता, जबकि अभी तक माइक्रो फाइनेंस संस्थाएं कर्ज बांटने के साथ ही पहली किश्त काट लिया करती थीं और कर्जदार से हर हफ्ते किश्त वसूलती रही हैं। एसकेएस माइक्रोफाइनेंस ने ताजा बयान में बताया है कि आंध्र प्रदेश के 97 फीसदी केंद्रों पर उसकी साप्ताहिक बैठकें तो नियमित रूप से होने लगी हैं। लेकिन सरकारी नियम के कारण वसूली नहीं हो पा रही है। हालांकि आंध्र प्रदेश के बाहर बाकी 18 राज्यों के 2.09 लाख से ज्यादा केंद्रों में पहले की तरह 99 फीसदी कर्ज उगाही हो रही है। आंध्र प्रदेश में उसके लगभग 71,000 केंद्र हैं। अभी आंध्र प्रदेश में कुल 24 माइक्रो फाइनेंस संस्थाएं कार्यरत हैं।
ये संस्थाएं गरीबों, खासकर ग्रामीण महिलाओं को छोटे-छोटे ऋण देती हैं। इस ऋण की मात्रा अमूमन एक हजार रुपए से लेकर 10-20 हजार रुपए तक होती है। इसका मकसद आबादी के कमजोर तबकों को उत्पादक कामों के लिए धन उपलब्ध कराना और उन्हें गांवों से सूदखोरों का जाल खत्म करना था। लेकिन अपना धंधा बढ़ाने के चक्कर में ये संस्थाएं उपभोग के लिए भी ऋण देने लगीं। नतीजतन, कर्जदार धन नहीं लौटा सके और हर हफ्ते वसूली से परेशान आकर आत्महत्या करने लगे। मामला इतना विकट हो गया कि आंध्र प्रदेश सरकार को इन संस्थाओं पर काबू पाने के लिए अध्यादेश लाना पड़ा।
माइक्रो फाइनेंस संस्थाएं बैंकों से 12-14 फीसदी ब्याज पर धन उठाती हैं और उसे 24-30 फीसदी ब्याज दर पर कर्ज दे देती हैं। गरीब लोग कर्ज अदायगी के बारे में बड़े नियमित रहते हैं तो इससे इन संस्थाओं का मुनाफे का धंधा बैंकों की लाभप्रदता को भी मात करने लगा। लेकिन जानकारों की मानें तो इनका धंधा अब लंबे समय तक नहीं चल सकता। निजी क्षेत्र के प्रमुख बैंक, यस बैंक के एक अधिकारी ने अपना नाम न जाहिर करते हुए बताया कि ग्रामीण इलाकों तक अच्छी पहुंच रखनेवाले भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बडौदा और पंजाब नेशनल बैंक जैसे कई सरकारी बैंक खुद ही छोटे ऋण देने की शुरुआत करने की योजना तैयार कर रहे हैं।
अब तक इसमें सबसे बड़ी उलझन यह थी कि बैंक दो लाख रुपए से कम के ऋण पर अपनी बीपीएलआर (बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट) से ज्यादा ब्याज नहीं ले सकते थे। छोटे ऋणों का वितरण और सर्विसिंग खर्चीला काम था, इसलिए इसमें हाथ डालना बैंकों के लिए घाटे का सौदा था तो बैंक माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं को कर्ज देकर गरीबों तक पहुचते थे। इससे उन्हें प्राथमिक क्षेत्र को 40 फीसदी ऋण देने की शर्त पूरी करने में भी सहूलियत हो जाती थी।
लेकिन अब 1 जुलाई 2010 से बेस रेट की नई प्रणाली लागू करने के साथ ही रिजर्व बैंक ने दो लाख रुपए से कम के ऋणों पर ब्याज दर की सीमा खत्म कर दी है। इसलिए बैंक आसानी से उन पर लाभकारी ब्याज ले सकते हैं। अगर वे 16-18 फीसदी ब्याज पर भी छोटे ऋण देते हैं तो खर्च निकलने के साथ ही उन्हें आवश्यक मार्जिन मिल जाएगा। दूसरे, ग्राहकों के लिए यह ऋण माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं से काफी सस्ता पड़ेगा क्योंकि इन संस्थाओं की न्यूनतम ब्याज दर अब भी 24 फीसदी है।
बैंक अब सारे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं को बिचौलिया न बनाकर सीधे कमजोर तबकों तक पहुंचना चाहते हैं। इससे वित्तीय समावेश के नाम पर उन्हें सरकार से भी शाबासी मिलेगी। बैंक अधिकारी का कहना है कि इसलिए माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के संचालन का तरीका न बदला गया तो उनके धंधे का बुलबुला फटने में देर नहीं लगेगी। उनका वजूद तभी बच सकता है जब सरकार उन्हें सस्ती दर पर धन उपलब्ध कराए। लेकिन सरकार भी माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं से नाराज है क्योंकि इन्होंने सरकार की तरफ से बनाए गए स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का भी बेजा इस्तेमाल किया है।