शुक्रवार को पेश की गई आर्थिक समीक्षा 2010-11 में चौंकानेवाला तथ्य सामने लाया गया है कि जिस गुजरात को औद्योगिक निवेश खींचने में सबसे तेज माना जाता है, वहां हाल के दिनों में कामगारों की हड़ताल और दूसरी तरह की श्रमिक अशांति की घटनाएं सबसे ज्यादा हुई हैं। यह अशांति तमाम वित्तीय व अनुशासनिक मसलों को लेकर हुई है।
आर्थिक समीक्षा का कहना है कि पूरे देश में श्रमिक अशांति के चलते मानव-दिवसों के नुकसान में 81 फीसदी से ज्यादा की भारी कमी आई है। इससे पता चलता है कि औद्योगिक क्षेत्र में मजदूरों और प्रबंधन के रिश्तों में अच्छा सुधार आया है। लेकिन समीक्षा के मुताबिक, “सबसे ज्यादा श्रमिक अशांति की घटनाएं गुजरात में सामने आई हैं। इस तरह हुई हड़तालों और तालाबंदी की मुख्य वजहें रही हैं – वेतन व भत्ते, बोनस, कर्मचारी सुरक्षा, अनुशासन-हीनता, हिंस् और वित्तीय कड़ाई।”
बता दें कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में गुजरात को औद्योगिक निवेश के लिए सबसे उपयुक्त राज्य के बतौर पेश किया जा रहा है। इसी साल जनवरी में वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि गुजरात 20.83 लाख करोड़ रुपए का औद्योगिक निवेश खींचने में सफल रहा है।
नोट करने की बात है कि हिंदूवादी ताकतें ऐतिहासिक रूप से हमेशा औद्योगिक मजदूरों के हितों के खिलाफ काम करती रही हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना का उभार दत्ता सामंत की मजदूर यूनियन और कपड़ा मिल मजदूरों में उनकी पैठ को खत्म करने के लिए किया गया था। शिवसेना के रवैये के चलते ही मुंबई में परेल और लोअर परेल का वह इलाका आज बड़े-बड़े मॉल और दफ्तरों का केंद्र बन गया है, जहां से कभी कपड़ा मिलों के लाखों मजदूरों का घर-परिवार चलता था।