कुछ ज्यादा ही बिदक गया बाजार!

बाजार में अभी चली गिरावट का माहौल बहुत सारी वजहों ने बनाया था। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमंडल खेलों का भ्रष्टाचार, संसद में गतिरोध, कोरिया का झगड़ा, आयरलैंड का ऋण संकट और इसके ऊपर से रीयल्टी सेक्टर को लोन देने में बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के आला अफसरों की घूसखोरी। लेकिन मुझे लगता है कि बाजार इन मसलों को लेकर कुछ ज्यादा ही बिदक गया। वैसे, अच्छी बात यह है कि ज्यादा धन या लिक्विडिटी के प्रवाह के चलते बाजार ओवरबॉट अवस्था में पहुंच गया था। इस करेक्शन ने ऊपर चढ़े मूल्यांकन को सही स्तर पर पहुंचा दिया है और इस तरह खरीदने का सुंदर मौका पेश कर दिया है। ध्यान रखे, भारत की विकासगाथा अभी पूरी नहीं हुई है। जितनी ज्यादा वित्तीय उलझनें आएंगी, उतनी ही तेजी से वित्त मंत्रालय सुधारों की दिशा में बढ़ेगा। सरकार कतई बाजार के गिरने के पक्ष में नहीं हैं जिसके बडे स्पष्ट व ठोस कारण हैं।

जब भी मीडिया कोई घोटाला दिखाता है तो हमेशा यही माना जाता है कि अभी और भी बहुत कुछ सामने आनेवाला है और निवेशक खरीद से हाथ खींच लेते हैं। जब गुबार शांत होता है और बाजार सुधर जाता है, तब भी निवेशक खरीदने का साहस नहीं जुटा पाते क्योंकि तब तक शेयर महंगे हो चुके होते हैं। निवेशक आखिरकार जब खरीदने लगते हैं तो बाजार अति-खरीद या ओवरबॉट अवस्था में पहुंच जाता है और फिर उसे बाद आता है जबरदस्त करेक्शन। इसलिए मुझे लगता है कि हमें यह फैसला निवेशकों पर ही छोड़ देना चाहिए कि उन्हें कब खरीदना है। हां, निफ्टी अब नई ऊंचाई पकड़नेवाला है।

निवेशकों को अब भी बैंकिंग व ऑटो के साथ-साथ ऐसी रीयल्टी कंपनियों से भी दूर रहना चाहिए जिन्होंने हाल में बाजार से धन जुटाया है या जुटाने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन ऐसी रीयल्टी कंपनियां निवेश के लिए सुरक्षित हैं जिनको जमीन का जखीरा बिना किसी दाम के मिला हुआ है। इस समय कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों के साथ वे सभी कंपनियां निवेश के लिए सर्वोत्तम हैं जिनका धंधा घरेलू बाजार की खपत पर आधारित है। एयरलाइंस जैसे कुछ सेक्टरों में भी आकर्षण है जिनको निजी क्षेत्र के लिए खोलने के साथ-साथ सरकार खुद भी वहां मौजूद रहती है। इसी ढर्रे को पकड़कर बैंकिंग व टेलिकॉम सेक्टर एक समय हिट हुए थे। आनेवाले समय में तेल व गैस क्षेत्र की निजी कंपनियां मूल्यांकन के पैमाने पर चढ़ सकती हैं।

वैसे, मूल्यांकन भी एक सापेक्ष अवधारणा या पैमाना है। किसी को 30 के पी/ई पर ट्रेड हो रहा स्टॉक भी भा सकता है और कोई 10 पी/ई के स्टॉक को भी नहीं पूछेगा। मेरा मानना है कि इनफोसिस जैसा अच्छे से अच्छा स्टॉक भी अगर 30 या 40 के पीई अनुपात पर ट्रेड करता है और विकास की ऊंची डगर पर हो, तब भी वह अच्छा रिटर्न नहीं दे सकता। इसलिए ऐसे शेयरों से दूर रहना चाहिए। हमें वित्त वर्ष 2011-12 में लाभ के अनुमानों के बढ़ने की उम्मीद है और इसलिए तब बाजार का मूल्यांकन सेंसेक्स को 26,000 अंक पर ले जा सकता है।

रिटेल निवेशकों को पूरी जानकारी के साथ, सोचकर-समझकर निवेश करना चाहिए। उन्हें आदत बना लेनी चाहिए कि वे उसी कंपनी में पैसा डालेंगे जिसे वे अच्छी तरह जानते-समझते हैं। उन्हें ए ग्रुप की कंपनियों के पीछे नहीं भागना चाहिए। इसकी एकमात्र वजह यह है कि जब भी बाजार गिरता है, सबसे ज्यादा चपत एक ग्रुप के शेयरों को ही लगती है क्योंकि वहां अचानक बिकवाली शुरू हो जाती है। हालांकि, गिरते तो बी ग्रुप के शेयर भी हैं, लेकिन वे थोड़े समय में संभल जाते हैं। अभी रिटेल निवेशकों की जिस तरह की तादाद है, उन्हें बहुत ज्यादा वोल्यूम वाले शेयरों से भी बचना चाहिए क्योंकि ज्यादा वोल्यूम कभी-कभी छलावा भी हो सकता है।

हर रहस्य, हर गुत्थी का सूत्र इसी दुनिया-जहान में हैं। हम नहीं पकड़ पाते तो इसमें किसी और नहीं, हमारा ही दोष है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ हैलेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

1 Comment

  1. Mr. Chkri i think you are a analyst who have good experience in tech. And fundamental analysis .

    And also a parfect basic and advance knowledge of market.

    Can you please provide detailed information about analysis ?

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