सदियों पहले बौद्ध भिक्षुओं का रिवाज था कि वे बारिश के चार महीनों में यायावरी छोड़, कहीं एक जगह ठेहा जमाकर बैठकर जाते थे। लगता है हम निवेशकों को भी कुछ महीनों के लिए हाथ-पैर बांधकर, लेकिन दिमाग खोलकर बैठ जाना चाहिए। असल में बाजार कहीं जा नहीं रहा। बस कदमताल किए जा रहा है। जानकारों का कहना है कि अभी जिस तरह ब्याज दरों के बढ़ने का सिलसिला चल रहा है, आर्थिक विकास दर में सुस्ती की बात खुद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी तक स्वीकार कर रहे हैं और कंपनियों के मुनाफे को लेकर अनिश्चितता है, वैसे में बाजार अगले कुछ महीनों तक ट्रेडिंग ज़ोन ही बना रहेगा।
इसलिए अगले कुछ महीने हमें चिंतन-मनन और बाजार की चाल को समझने में बिताने चाहिए। दूरगामी निवेश की बात अपनी जगह सही है और अच्छे शेयरों पर नजर पड़ते ही महुआ के गमकते फूलों की तरह उन्हें संभालकर उठा लेना चाहिए। ट्रेडिंग करना और उससे नोट बनाना बच्चों का खेल नहीं है। इससे बहुत सारे पक्षों को ध्यान में रखना पड़ता है और बेहद चौकन्नापन इसके लिए चाहिए। यह फुलटाइम जॉब है। पार्टटाइम वाले इसमें ज्यादातर धोखा ही खाते हैं। इसलिए आम निवेशकों को ट्रेडिंग की माया में नहीं पड़ना चाहिए। बचत है तो उसे इस वक्त एफडी वगैरह में लगा देना ज्यादा सही होगा। चलिए, छुट्टी मनाइए। लेकिन उससे पहले इस हफ्ते के कुछ सूत्र जो शायद आपकी निवेश यात्रा में पाथेय का काम करेंगे।
शेयर बाजार से पैसे कमाने का आदर्श तरीका है – सबसे कम भाव पर खरीदो और अधिकतम भाव पर बेचकर निकल जाओ। लेकिन व्यवहार में ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि जब कोई शेयर अपने न्यूनतम स्तर पर होता है तब हमें लगता है कि यह तो डूब रहा है, अभी और नीचे जाएगा। वहीं, जब शेयर बढ़ रहा होता है तब हमें लगता है कि अभी और ऊपर जाएगा तो बाद में ही बेचेंगे। यह आम मनोविज्ञान है। लेकिन निवेश करते समय हमें बाहरी स्थितियों से ही नहीं, अपने मनोविज्ञान से भी पार पाना होता है।
कभी भी ब्रोकरेज हाउसों की रिसर्च रिपोर्टों को देखते ही सच नहीं मान लेना चाहिए। उनकी बातों की खुद जांच-परख कर लेने के बाद ही निवेश का जोखिम उठाना चाहिए। वे तो ब्रोकर हैं, दल्ले हैं। हांकना उनका काम है। दूसरी बात, धंधे में ऊंच-नीच लगा रहता है। बड़ी से बड़ी संभावनामय कंपनी को भी आकस्मिक चपत लग सकती है। प्रबंधन ने जिस तरह से सोचा था, वैसा हो सकता कि न हो। इसलिए जब हम किसी कंपनी में निवेश करते हैं तो फायदे में ही नहीं, उसके जोखिम व घाटे के बोझ में भी हिस्सेदारी करते हैं। यहां ऐसा नहीं होता कि मीठा-मीठा गप और कड़वा-कड़वा थू। तीसरी बात, लंबे समय के लिए निवेश किया है तो बीच में शेयर का हाल देखकर घबराना नहीं चाहिए।
बाजार और एनालिस्टों अक्सर चरका पढ़ाते हैं। वे बहती गंगा में हाथ धोते हैं। बढ़ते हुए शेयर को खरीदने की सलाह देते हैं और गिर जाए तो फिर झांकते भी नहीं। यह आम निवेशकों की वही मानसिकता हुई कि बढ़ते हुए बाजार में खरीदो और गिरते हुए बाजार में बेचकर निकल लो। महंगा खरीदो, सस्ता बेचो की इस सोच से निवेशक हमेशा पिटते हैं। मुश्किल यह है कि बाजार से धंधा चलानेवाले लोग अपने फायदे के लिए निवेशकों की इसी आत्मघाती मानसिकता को हवा देते हैं। बिरले लोग ही हैं जो निःस्वार्थ भाव से वाजिब सलाह देते हैं। ऐसे ‘बाजारू’ माहौल में सिर्फ सतर्कता और खुद की रिसर्च व समझ ही हमारी मदद कर सकती है।
हम हफ्ते में पांच दिन किसी न किसी कंपनी की कुंडली आपके सामने खोलकर रखते हैं। इन पर विचार करना आपका काम हैं। क्या कहा – आप पंडित नहीं हैं तो कुंडली विचारेंगे कैसे? तो गुरु जी! निवेश की कला में सिद्धहस्त होने के लिए पंडित तो बनना ही पड़ेगा। नहीं तो निवेश की ललक छोड़कर घर बैठिए। क्या जरूरत है अनपढ़-गंवार की तरह अपनी बचत किसी और के हवाले करने की?