प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े जोरशोर से अपना महत्वाकांक्षी कार्यक्रम ‘मेक इन इंडिया’ शुरू कर दिया है। गुरुवार को राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में करीब 500 नामी-गिरामी उद्योगपतियों की मौजूदगी में प्रधानमंत्री ने कहा, “अगर आप बाहर से आकर या यहां के लोग औद्योगिक विकास पर ध्यान नहीं देंगे, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पर ध्यान नहीं देंगे, रोज़गार के अवसर उपलब्ध नहीं कराएंगे तो यह चक्र कभी पूर्ण होनेवाला नहीं है।”
उन्होंने उद्योग प्रतिनिधियों के सामने बहुत बड़े बाज़ार के उपलब्ध होने की बात भी कही। लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) की नई व्याख्या पेश कर दी। उन्होंने कहा कि एफडीआई को ‘फर्स्ट डेवलप इंडिया’ के रूप में समझा जाना चाहिए। उन्होंने निवेशकों से आग्रह किया कि वे भारत को सिर्फ बाजार के रूप में न देखें, बल्कि इसे एक अवसर समझें।
उन्होंने कहा कि भारतीयों के लिए एफडीआई एक जिम्मेदारी है, जबकि दुनिया के निवेशकों के लिए एफडीआई एक अवसर है। उनका कहना था कि बाज़ार के बड़े बाज़ार का लालच सभी को होता है। लेकिन जब यहां ज्यादातर लोगों के पास क्रय-शक्ति नहीं होगी तो इस बाज़ार का क्या लाभ।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़नी चाहिए क्योंकि इससे मांग बढ़ेगी और निवेशकों को फायदा मिलने के साथ-साथ विकास को बढ़ावा मिलेगा। लोगों को जितनी तेजी से गरीबी से बाहर निकालकर मध्यम वर्ग में लाया जाएगा, वैश्विक व्यवसाय के लिए उतने ही अधिक अवसर खुलेंगे। उन्होंने कहा, इसलिए विदेश के निवेशकों को भारत में नौकरियां सृजित करनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि सस्ते निर्माण और उदार खरीदार, जिसके पास क्रय शक्ति हो, दोनों की ही जरूरत है। उन्होंने कहा कि अधिक रोजगार का अर्थ है अधिक क्रय शक्ति का होना।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां लोकतंत्र, जनसंख्या और मांग का अनोखा मिश्रण है। उन्होंने कहा कि नई सरकार कौशल विकास के लिए पहल कर रही है ताकि निर्माण के लिए कुशल जनशक्ति सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने डिजिटल इंडिया मिशन का जिक्र करते हुए कहा कि इससे सुनिश्चित होगा कि सरकारी प्रक्रिया कॉरपोरेट की प्रक्रिया के अनुकूल रहे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले कुछ सालों से वे महसूस कर रहे थे कि नीतिगत मुद्दों पर स्पष्टता का अभाव होने के कारण भारत के व्यावसायिक समुदाय के बीच निराशा है। उन्होंने कहा कि उन्हें यहां तक सुनने को मिला कि भारतीय व्यवसायी भारत छोड़कर चले जाएंगे, कहीं और जाकर व्यवसाय स्थापित कर लेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे उन्हें पीड़ा पहुंची। उन्होंने कहा कि किसी भी भारतीय व्यवसाय को किसी भी परिस्थिति में देश छोड़ने की बाध्यता जैसी भावना नहीं आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों के अनुभव के आधार पर वे कह सकते हैं कि अब ये निराशा समाप्त हो गई है।
प्रधानमंत्री ने दस्तावेजों के स्व-प्रमाणीकरण की सरकार की नई पहल का उदाहरण दिया और कहा कि यह इस बात को स्पष्ट करता है कि नई सरकार को अपने नागरिकों पर कितना विश्वास है। आइए विश्वास के साथ शुरूआत करें; अगर कोई परेशानी है तो सरकार हस्तक्षेप कर सकती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्वास भी बदलाव की ताकत बन सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि विकास और विकासोन्मुख रोजगार सरकार की जिम्मेदारी है। उनका कहना था कि भारत में व्यवसाय करना कठिन माना जाता था। लेकिन अब इस संबंध में सरकारी अधिकारियों को संवेदनशील बनाया गया है।
प्रधानमंत्री ने राजमार्गों के अलावा आई-वेज सहित भविष्य के बुनियादी ढांचे की चर्चा की और बंदरगाह प्रमुख विकास, ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क, गैस ग्रिड और जल ग्रिडों का जिक्र किया। प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया का प्रतीक चिन्ह जारी किया और इसकी वेबसाइट की शुरुआत भी की।
इस मौके पर उपस्थित उदयोगपतियों में रिलायंस समूह के मुखिया मुकेश अंबानी, टाटा समूह के चेयरमैन साइरस मिस्त्री, आदित्य बिड़ला समूह के प्रमुख कुमारमंगलम बिड़ला, विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी और आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक चंदा कोचर समेत कॉरपोरेट जगत की तमाम बड़ी हस्तियां मौजूद थीं। इनफोसिस के संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति का अलग से कहना था कि सरकार को भारतीय उद्यमियों पर भी विदेशियों जितनी ही तवज्जो देनी चाहिए।
हमें ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेड इन इंडिया’ का फर्क समझना होगा। मोदी सरकार का नारा मेड इन इंडिया का नहीं, मेक इन इंडिया का है। इसका केंद्रीय संदेश विदेशी निवेशकों के लिए है कि “भारत आओ, सस्ते श्रम और कच्चे माल का इस्तेमाल करो। माल बनाओ, दुनिया को निर्यात करो। इस प्रक्रिया में यहा मैन्यूफैक्चरिंग से रोज़गार के अवसर अपने आप पैदा हो जाएंगे।” लेकिन भारत ही नहीं, दुनिया का सच यह है कि पूंजी का मूल मकसद अपने लाभ को अधिकतम करना होता है। विदेशी पूंजी भारत में रोज़गार के अवसर शायद ही पैदा करे। वैसे भी पिछले तीन दशकों में भारत के संगठित मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान नए रोज़गार पैदा करने में न के बराबर रहा है।
देश के मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन में लगभग आधा, निर्यात में 40 प्रतिशत से ज्यादा और रोजगार में 90 प्रतिशत का योगदान देनेवाले सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को अगर बढ़ावा दिया जाता तो उसे हम ‘मेड इन इंडिया’ अभियान कह सकते थे। इसी से देश में रोज़गार के व्यापक अवसर पैदा होते। प्रधानमंत्री जब मेक इन इंडिया अभियान की घोषणा कर रहे थे, तब हमारे एमएसएमई मंत्री कलराज मिश्रा बगल में बैठे भकुआ रहे थे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में हर महीने करीब दस लाख नए लोग रोज़गार की तलाश में शामिल हो जाते है। साल भर में यहां 1.20 करोड़ नई नौकरियों की जरूरत बन रही है।
इसके लिए निश्चित रूप से मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ावा देने की जरूरत है जिसका हमारे जीडीपी में योगदान मात्र 12.89 प्रतिशत है, जबकि चीन के जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान 32 प्रतिशत है। नोट करने की बात यह है कि इतना होने के बावजूद हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली में जब ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की शुरूआत कर रहे थे, ठीक उसी समय चीन की सरकार ने बीजिंग में ‘मेड इन चाइना’ अभियान की शुरुआत की।