नियम-कायदे से ऊपर है एलआईसी

महीने भर पहले जब ओएनजीसी में सरकार के पांच फीसदी हिस्से को खरीदने का ठींकरा देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी के माथे पर फोड़ा गया था, तब बड़ा हल्ला मचा था कि इससे तो एलआईसी का हश्र भी किसी दिन यूटीआई जैसा हो जाएगा। लेकिन ताजा साक्ष्य इस बात की गवाही देते हैं कि एलआईसी ने भले ही ओएनजीसी के ऑफर फॉर सेल को सरकार के दबाव में बचाया हो। पर, वह खुद भी निवेश करते वक्त किसी कायदे कानून की परवाह नहीं करती।

बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) का नियम है कि कोई भी बीमा कंपनी किसी भी लिस्टेड कंपनी की इक्विटी में दस फीसदी से ज्यादा निवेश नहीं कर सकती। ऐसा प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि बीमाधारकों को अनावश्यक जोखिम से बचाया जाए। लेकिन सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाली जीवन बीमा कंपनी एलआईसी को ही शीर्ष सरकारी नियामक के निर्देशों की कतई परवाह नहीं है। देश के सबसे बड़े आर्थिक अखबार इकनॉमिक टाइम्स ने आज अपनी एक रिपोर्ट में इस सच का खुलासा किया है।

अगर किसी सरकारी कंपनी में एलआईसी का इक्विटी निवेश दस फीसदी से ज्यादा होता तो बात समझ में आ सकती थी। लेकिन निजी क्षेत्र की तमाम कंपनियों में उसका निवेश दस फीसदी की लक्ष्मण रेखा कब का पार कर चुका है। जैसे, दिसंबर 2011 तक के आंकड़ों के अनुसार सिंगरेट से लेकर आटा तक बनानेवाली कंपनी आईटीसी में एलआईसी की हिस्सेदारी 12.50 फीसदी है। इसी तरह टाटा स्टील में एलआईसी का निवेश 14.96 फीसदी, महिंद्रा एंड महिंद्रा में 13.14 फीसदी और आईसीआईसीआई बैंक में 10.12 फीसदी है। वहीं ओएनजीसी के अतिरिक्त शेयर खरीदने के बाद भी उसकी इक्विटी हिस्सेदारी 9 मार्च 2012 तक 7.77 फीसदी तक ही पहुंची है। दिसंबर 2011 तक यह 3.23 फीसदी थी।

हालांकि कई सरकारी कंपनियों, जैसे – एमटीएनएल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, एसबीआई, पंजाब नेशनल बैंक, देना बैंक, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया व सिंडीकेट बैंक में एलआईसी की इक्विटी हिस्सेदारी दस फीसदी से ज्यादा हो चुकी है। इस बात को कुछ हद तक जज्ब भी किया जा सकता है। लेकिन टाटा स्टील जैसी कंपनी के लिए एलआईसी अगर इरडा के नियम को मजे से तोड़ देती है तो यही लगता है कि वह अपने को औरों से बहुत ऊपर समझती है।

यह बात एलआईसी के एक उच्च अधिकारी ने स्वीकार भी की है, जिसका कहना है, “हमारी जरूरतें अलग हैं और उद्योग की दूसरी कंपनियों से हमारी तुलना नहीं की जा सकती।” अधिकारी का कहना था कि जब भी जरूरत प़ड़ती है, एलआईसी इरडा को बताती रहती है। वैसे भी एलआईसी का निवेश पोर्टफोलियो 13 लाख करोड़ रुपए से ऊपर जा चुका है।

एलआईसी ने इधर हाल ही में इरडा ने इजाजत मांगी कि उसे किसी कंपनी में 10 फीसदी इक्विटी निवेश की सीमा से मुक्त किया जाए। इसके पीछे कंपनी ने सरकारी कंपनियों के विनिवेश के बोझ का तर्क दिया था। परोक्ष रूप से उसका कहना था कि वित्त मंत्रालय का हाथ उसके ऊपर है। अच्छी बात यह है कि इरडा ने उसके अनुरोध को ठुकरा दिया है। लेकिन एलआईसी की दादागिरी तो देखिए कि उसने आईटीसी व टाटा स्टील जैसी कंपनियों में कई महीनों से दस फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी बना रखी है। क्या यह उसके 20 करोड़ से ज्यादा पॉलिसीधारकों के भविष्य के साथ किया जा रहा खिलवाड़ नहीं है? अगर एलआईसी की हरकतों पर लगाम न लगाई गई तो निश्चित रूप से वह यूटीआई से भी बड़ा झटका देश को दे सकती है।

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