एलआईसी संशोधन विधेयक को अगले हफ्ते पहली अगस्त से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा और अब संसद की वित्त संबंधी स्थाई समिति में सारी आपत्तियां दूर हो जाने के बाद उम्मीद है कि इसे आसानी से पारित भी करा लिया जाएगा।
यह विधेयक पहली बार 2009 में लोकसभा में पेश किया गया था। लेकिन उस समय लोकसभा भंग हो जाने के बाद इसका मामला अटक किया। विधेयक में लंबे समय से चली आ रही विसंगति को दूर करते हुए भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की पूंजी को 5 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 100 करोड़ रुपए कर दिया गया है। अभी तक दूसरी बीमा कंपनियों के लिए न्यूनतम 100 करोड़ रुपए की पूंजी की शर्त है। लेकिन जीवन बीमा बाजार में 65 फीसदी हिस्सा होने के बावजूद एलआईसी पर ऐसी कोई शर्त नहीं है।
दूसरे बड़ा परिवर्तन यह है कि अभी एलआईसी को अपने सरप्लस का 95 फीसदी बोनस के रूप में पॉलिसीधारकों को देना होता है और बाकी 5 फीसदी सरकार को। लेकिन विधेयक में यह प्रावधान बदलकर 90 फीसदी और 10 फीसदी कर दिया है।
तीसरा बड़ा परिवर्तन यह होना था कि एलआईसी की पॉलिसियों पर मिल रही सरकारी या संप्रभु गारंटी खत्म कर दी जाए ताकि धंधे की होड़ में एलआईसी दूसरी बीमा कंपनियां के समान धरातल पर आ सके। लेकिन स्थाई समिति के सदस्यों के विरोध में बाद यह संशोधन नहीं किया जा रहा है और एलआईसी की सभी पॉलिसियों पर अभी की तरह संप्रभु गारंटी मिलती रहेगी। बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) तक इसके खिलाफ था। लेकिन एलआईसी का रसूख सब पर भारी पड़ा है।