शेयर वोकहार्ट का, सबक ज़िंदगी के

वोकहार्ट का स्टॉक/शेयर सोमवार, 8 अक्टूबर से बीएसई के मिड कैप सूचकांक से बाहर निकाल दिया जाएगा। इस खबर के आने के बाद यह थोड़ा-सा गिरकर बीएसई (कोड – 532300) में 1277.80 रुपए और एनएसई (कोड – WOCKPHARMA) में 1275.95 रुपए पर बंद हुआ है। लेकिन इससे न तो इस स्टॉक और न ही कंपनी पर कोई फर्क पड़ता है। किसे पता था कि इसी साल 6 जनवरी 2012 को पांच रुपए अंकित मूल्य का जो शेयर 250 रुपए के आसपास डोल रहा था, वह आठ महीना बीतते-बीतते 1440 रुपए की चोटी तक पहुंच जाएगा? किसे पता था कि तीन-चार पहले तक कर्ज के भयंकर दलदल में डूबी कंपनी इस तरह छलांग मारकर बाहर निकल आएगी?

साल भर पहले कंपनी ने ऋण का बोझ को सुलटाने का इंतजाम कर लिया था। तब भी निवेशकों को इसकी अच्छी सेहत का भरोसा नहीं था। फऱवरी-मार्च 2009 में कंपनी की खस्ता हालत से लोगों में फैले डर की वजह से इसका शेयर 66.50 रुपए तक चला गया था। कंपनी के ऊपर उस वक्त 3400 करोड़ रुपए का कर्ज था। ऊपर से मुद्रा के उतार-चढ़ाव के चलते उसे 600 करोड़ रुपए का मार्क टू मार्केट नुकसान। विदेशी निवेशकों को उसने बांड (एफसीसीबी या विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांड) भी जारी कर रखे थे।

वोकहार्ट समूह ने पहले अपने दस अस्पताल फोर्टिस को 650 करोड़ रुपए में बेचने का करार किया। फिर प्रबंधन ने तय किया कि न्यूट्रिशन और पशु दवाओं का धंधा बेच दिया जाए। अमेरिकी कंपनी एब्बट उसका न्यूट्रिशन बिजनेस खरीदने को तैयार हो गई। लेकिन एफसीसीबी धारक वोकहार्ट को कोर्ट में घसीट ले गए। यह डील रद्द हो गई। आखिरकार बॉम्बे हाईकोर्ट के माध्यम से सुलह-सफाई हुई। कंपनी न्यूट्रिशन का धंधा फ्रांस की डेयरी कंपनी डोन (Danone) को 1280 करोड़ रुपए में बेच चुकी है। 11 करोड़ डॉलर के सारे एफसीसीबी की अदायगी हो चुकी है। सारे सराकात्मक लक्षण 2010 से ही साफ होने लगे थे। यही वजह है कि दिसंबर 2010 तक इसका शेयर 390 रुपए तक जा पहुंचा। अगस्त 2011 तक यह 473 रुपए पहुंच गया। लेकिन कंपनी के ऊपर आशंकाएं फिर घहराने लगीं और अगले पांच महीनों में यह 250 रुपए की खाईं में जा गिरा। वहां से उठा तो उठता ही जा रहा है।

कंपनी पूरी तरह ट्रैक पर आ चुकी है। इसका श्रेय उसके संस्थापक चेयरमैन व सीईओ हाबिल खोराकी को जाता है। यह मिसाल है इस बात की कि उद्यमशीलता की ताकत बड़े से बड़े संकट से भी उबार सकती है। कोई परवरदिगार नहीं, कोई भगवान, अल्ला, गॉड (पूर्व पत्रकार और कांग्रेसी गीटबाज़, राजीव शुक्ला ने इसी पर अपनी कंपनी का नाम बीएजी फिल्म्स रखा है) नहीं। संकट में भी धीरज न खोने की कला और संयत भाव से अपने कर्म में कुशलता से लीन रहना। आपको यकीन नहीं आएगा कि घाटे के बोझ के बावजूद वोकहार्ट ने शोध और अनुसंधान (आर एंड डी) पर खर्च नहीं घटाया। तीन साल पहले साल 2009 में आर एंड डी पर उसका खर्च 140 करोड़ रुपए था। बीते वित्त वर्ष 2011-12 में यह 250 करोड़ रुपए रहा है। कंपनी प्रबंधन के अनुसार चालू साल 2012-13 में इसे 400 करोड़ रुपए कर दिया जाएगा।

सवाल उठता है कि जब कंपनी के पास कैश की तंगी थी, घाटे को बोझ था, फिर उसने यह काम किया कैसे? उसने अपनी परिचालन लागत घटाई। वहां से धन बचाए और आर एंड पर लगा दिए। इस समय कंपनी के पास भारत ही नहीं, अमेरिका व ब्रिटेन तक में अपना रिसर्च सेंटर है। धुआंधार विदेशी अधिग्रहणों के चलते भारी दबाव में आई कंपनी अब विदेशी बाजारों से धन कमा रही है। उसकी तीन-चौथाई बिक्री विदेश से आती है।

मालूम हो कि खोराकीवाला परिवार पुश्तैनी रूप से बिजनेस करता रहा है। मुंबई के इर्दगिर्द फैली पुरानी सुपरमार्केट चेन, अकबरअलीज उसी की है। इसी परिवार ने 1959 में वर्ली केमिंकल्स वर्क्स नाम की कंपनी बनाई थी। इसका जिम्मा हाबिल खोराकावाला को मिला तो उन्होंने लीक से हटकर इसे जबरदस्त दवा कंपनी बना दी।

बीते दस-बारह सालों में कंपनी ने जबरदस्त विकास भी देखा और पतन भी। 2001 से 2008 के बीच उसकी बिक्री और सकल लाभ पांच गुना हो गया। कंपनी बराबर लाभांश देती रही। इस दौरान शेयर का भाव चार गुना बढ़कर 400 रुपए पर पहुंच गया। लेकिन 2003 से 2008 के बीच उसने विदेश में सात कंपनियां करीब 2200 करोड़ रुपए में खरीद डालीं। लगा कि कंपनी अब फिर जबरदस्त छलांग लगाने जा रही है। लेकिन इस कवायत में उसका कर्ज 300 करोड़ रुपए से छलांक लगाकार 4200 करोड़ रुपए पर जा पहुंचा। 2008 से 2011 के बीच के तीन सालों में कंपनी का वो सारा लाभ उड़ गया जो उसने पिछले दस सालों में कमाया था।

हाबिल खोराकावाला ने कंपनी से इस्तीफा देकर बागडोर अपने सबसे छोटे बेटे मुर्तज़ा खोराकावाला सौंप दी। लगा कि सब ड़ूब जाएगा। मगर लीक से हटकर चलने का दम रखनेवाले हाबिल के हौसले से सब कुछ पटरी पर आ चुका है। उन्होंने हाल के एक इंटरव्यू में कहा है, “इस पूरे झंझावात से मुख्य सबक हमने यह सीखा है कि दुनिया में हासिल कंपनियों में खुद अपनाए गए प्रबंधन व्यवहार और मूल्य-सृजन की प्रक्रिया का पालन किया जाए।”

असल में किसी भी धंधे में वैल्यू क्रिएशन या नया मूल्य पैदा करना बहुत जरूरी है। वोकहार्ट ने दवा के धंधे में आर एंड डी के जरिए मूल्य सृजन का यह तरीका अपनाया है। बौद्धिक संपदा के रूप में उसने इस समय 1411 पेटेंट के आवेदन दाखिल कर रखे हैं। इनमें से 145 की मंजूरी उसे मिल चुकी है। खैर, यह सब उसके धंधे से जुड़ी बाते हैं। उसकी कहानी का असली सबक यह है कि घनघोर रात में भी राहें तलाशी जा सकती हैं। ऊंच-नीच ज़िंदगी का हिस्सा है। मौके हर किसी को मिलते हैं, जो इनका सही इस्तेमाल कर लेता है वो सिकंदर बन जाता है और जो नहीं कर पाता वो किसी सुदामा की तरह कृष्ण जैसे पुराने परिचितों के सामने हाथ फैलाता रहता है।

जहां तक वोकहार्ट के शेयर में निवेश की बात है तो हम चार महीने पहले कही गई अपनी बात पर कायम हैं। हमारा यही कहना है कि ज्यादा लालच में नहीं फंसना चाहिए। शेयर बाजार में दो भाव अपना खेल खेलते हैं। लालच और डर। कोई शेयर ज्यादा भाव खा रहा है, उसका पी/ई काफी ज्यादा है तो मतलब लोग उसको लेकर बेहद लालच से लपलपा रहे हैं। वहीं कोई शेयर पिटा हुआ है, पी/ई व पी/बी अनुपात बहुत कम है तो इसका मतलब लोग उसको लेकर बेहद डरे हुए हैं, आशंकित हैं। इन दो ध्रुवों पर घूमने के बजाय हमें अपना लक्ष्य पूरा होते ही किसी शेयर को बेचकर किसी अन्य सुरक्षित माध्यम में लगा देना चाहिए क्योंकि शेयर बाजार के बारे में एक बात गांठ बांध लें: बड़े धोखे हैं इस राह में…

 

 

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