अगर किसी व्यक्ति ने बैंक, वित्तीय संस्था या अनुमोदित धर्मार्थ संस्था से अपने या अपने रिश्तेदार की उच्च शिक्षा के लिए ऋण ले रखा है तो इस पर ब्याज के रूप में दी गई राशि उस व्यक्ति की करयोग्य राशि में से घटा दी जाएगी। दूसरे शब्दों में मान लीजिए कि सारी कटौतियों के बाद किसी व्यक्ति की करयोग्य आय तीन लाख रुपए बनती है और उसने अपने बेटा-बेटी की उच्च शिक्षा के ऋण पर साल में 10,000 रुपए का ब्याज दिया होगा तो उसे 2.90 लाख रुपए की आय पर ही टैक्स देना होगा।
वित्त राज्य मंत्री एस एस पलानीमाणिक्कम ने मंगलवार को राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में बताया कि आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80-ई में इस आशय का स्पष्ट प्रावधान है। उन्होंने बताया कि पहले इन प्रावधानों के अन्तर्गत केवल इंजीनियरिंग, मेडिसिन व मैनेजमेंट में किसी स्नातक या परास्नातक पाठ्यक्रम और एप्लायड साइंस या गणित व सांख्यिकी जैसे विशुद्ध विज्ञान में परा-स्नातक पाठ्यक्रम में पूर्णकालिक पढ़ाई के लिए कर-कटौती दी जाती थी। लेकिन अब यह सुविधा बारहवीं के बाद किए जानेवाले डिप्लोमा कोर्सों तक पर भी दी जाने लगी है।
उन्होंने आगे बताया कि इस कर रियायत का दावा किसी व्यक्ति द्वारा उच्त शिक्षा के लिए ऋण पर ब्याज चुकाने पर खर्च की गई राशि के आधार पर किया जा सकता है। इसके लिए सरकार ने कोई अलग से फंड नहीं रखा है। इससे सरकार को राजस्व के रूप जो रकम गंवानी पड़ती है, उसका बस उल्लेख कर दिया जाता है। जैसे, प्राप्ति बजट 2012-13 के अनुसार, धारा 80-ई के तहत कटौती के कारण वर्ष 2010-11 के दौरान सरकार को 138 करोड़ रुपए के राजस्व से हाथ धोना पड़ा है।
govt employee k self k liye higher education par
bhai ki study ka payment add hoga