रिजर्व बैंक ने सोमवार को अर्थव्यवस्था और मौद्रिक हालात की समीक्षा पर जारी दस्तावेज में साफ कर दिया है कि चालू वित्त वर्ष 2010-11 में उसकी मुख्य चुनौती मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने की होगी। इसलिए पूरी उम्मीद है कि मंगलवार को जारी की जानेवाली सालाना मौद्रिक नीति में कर्ज को महंगा कर दिया जाए। बैकिंग क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि रिजर्व बैंक इसके लिए रेपो और रिवर्स रेपो दर में 25 आधार अंक (0.25 फीसदी की वृद्धि कर सकता है। अभी रेपो दर 5 फीसदी और रिवर्स रेपो दर 3.5 फीसदी है जिसे बढ़ाकर क्रमशः 5.25 फीसदी और 3.75 फीसदी किया जा सकता है। लेकिन नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को 5.75 फीसदी के स्तर पर बरकरार रखा जा सकता है। हालांकि कुछ लोग मान रहे हैं कि इसे भी 0.25 फीसदी बढ़ाकर 6 फीसदी किया जा सकता है।
रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर चलनिधि सुविधा (लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी या एलएएफ) के तहत बैंक रिजर्व बैंक के पास सरकारी बांड जमा करके नकद उधार लेते हैं, जबकि रिवर्स रेपो वह ब्याज दर है जो बैंकों को अपनी नकदी रिजर्व बैंक के पास रखने पर ब्याज के बतौर मिलती है। यह दरें सांकेतिक ही होती हैं क्योंकि बैंक इस सुविधा के तहत एक या दो-तीन दिनों के लिए लेनदेन करते हैं। सीआरआर बैंकों की कुल जमा का वह अनुपात है जिसके बराबर नकद राशि उन्हें रिजर्व बैंक के पास अनिवार्य रूप से जमा रखनी पड़ती है।
रिजर्व बैंक ने सोमवार को जो दस्वावेज किया है, वह बीते वित्त वर्ष 2009-10 की समीक्षा करता है और उसी के आधार पर नए वित्त वर्ष की मौद्रिक नीति तय की जाती है। इसमें कहा गया है कि खराब मानसून के बावजूद 2009-10 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 7.2 फीसदी रहेगी, जबकि 2008-09 में यह 6.7 फीसदी थी। अब घरेलू उत्पादन में विकास की चिंताएं सम हो गई हैं क्योंकि हालत सुधरने का आधार व्यापक होता जा रहा है। औद्योगिक उत्पादन बढ़ा है। रबी की फसल अच्छी रहनेवाली है और सेवा क्षेत्र में भी लगातार मजबूती दिख रही है। वित्त वर्ष 2010-11 में मानसून सामान्य रहने का अनुमान है और आर्थिक विकास दर 2009-10 से बेहतर रहेगी। रिजर्व बैंक ने जानीमानी संस्थाओं के प्रोफेशनल सर्वे के आधार पर कहा है कि 2010-11 में विकास की दर 8.2 फीसदी रह सकती है।
रिजर्व बैंक का कहना है कि आनेवाले महीनों में आर्थिक गतिविधियों में तेजी और मुद्रास्फीति के बढ़े स्तर के कारण धन की मांग बढ़ेगी। दूसरी तरफ विदेश से आनेवाली पूंजी का प्रवाह भी देश में बढ़ेगा क्योंकि यहां की ब्याज दर उन देशों से ज्यादा है जहां से यह पूंजी आ रही है। इससे तरलता की स्थिति के साथ ही रुपए की विनिमय दर पर भी असर पड़ेगा। मौद्रिक प्रबंधन में इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा। बता दें कि रुपए का मजबूत होना भी एक हद तक मुद्रास्फीति को शांत करता है क्योंकि इससे देश में आयात की जानेवाली चीजें अपेक्षाकृत सस्ती पड़ती हैं।
रिजर्व बैंक के मुताबिक उसने तीसरी तिमाही की समीक्षा में सीआरआर में जो 0.75 फीसदी बढ़ोतरी की थी, उससे सिस्टम में अतिरिक्त तरलता पर अंकुश लगा है। लेकिन अब भी तरलता की स्थिति संतोषजनक है जो बैंकों की तरफ से रिवर्स रेपो में जमा की जानेवाली रकम से जाहिर होती है। इसी आधार पर कुछ बैंकर कह रहे हैं कि सीआरआर को 0.25 फीसदी बढ़ाकर 6 फीसदी किया जा सकता है।
रिजर्व बैंक का कहना है कि मुद्रास्फीति अब खाने-पीने व ईंधन के दायरे से निकलकर मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों तक आ गई है। नवंबर में यह शून्य से 0.4 फीसदी नीचे थी, लेकिन मार्च 2010 में 4.7 फीसदी हो गई है। खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति को नई फसल के साथ थम सकती है। लेकिन मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों की मुद्रास्फीति को रोकना जरूरी हो गया है। वैसे भी मार्च 2010 में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति 9.9 फीसदी हो गई है जो दहाई अंक की ठीक दहलीज है।