यूरो संकट और इस हफ्ते शुक्रवार, 16 सितंबर को रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने की आशंका को लेकर हमारा बाजार ज्यादा ही बिदक गया। सेंसेक्स में 2.17 फीसदी और निफ्टी में 2.23 फीसदी की तीखी गिरावट दर्ज की गई। ऊपर से जुलाई 2011 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में महज 3.3 फीसदी की वृद्धि किसी का भी दिल बैठा सकती है। यह साफ-साफ अर्थव्यवस्था में सुस्ती आने का संकेत है। इस सूरतेहाल में मुद्रास्फीति को संभालने का अब एक ही तरीका हो सकता है कि भरोसा किया जाए कि देश भर में शानदार बारिश के चलते नई फसलों की पैदावार अच्छी रहेगी। इस तरह सप्लाई बढ़ने से खाद्य मुद्रास्फीति पर अपने-आप लगाम लग जाएगी।
फिर भी रिजर्व बैंक अगर मांग घटाने के अपने पिटे फॉर्मूले पर चलते हुए अगर ब्याज दर बढ़ा देता है तो लघु व मध्यम उद्योग (एसएमई) की इकाइयां ऋणों की अदायगी में डिफॉल्ट करने लगेंगी जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कतई शुभ नहीं होगा। छोटी इकाइयों की बात छोड़िए, अब तो बैंक, ऑटो व फाइनेंस कंपनियां तक भी ब्याज दर में किसी और वृद्धि को पचा पाने में बेहद कठिनाई महसूस कर रही हैं। इसलिए मुझे लगता है कि इस बार ब्याज में कोई वृद्धि नहीं होनी चाहिए और अगर हुई भी तो यह सचमुच आखिरी वृद्धि होगी। इस बीच सीएजी की रिपोर्ट पर रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) ने जैसा नरम रुख दिखाया है, वह समग्र बाजार की सेहत के लिए काफी ज्यादा भला साबित हो सकता है।
मौजूदा हालात में संभव है कि मंदड़ियों का हमला बराबर चलता रहे। लेकिन इससे घबराने और अपना नजरिया ही बदल लेने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि बाजार की दूरगामी संभावनाएं बहुत उज्ज्वल हैं। इसलिए हम तब तक हर मौके का फायदा उठाने की अपनी रणनीति पर कायम रहेंगे, जब तक बाजार एकदम तलहटी नहीं पकड़ लेता और तेजी का नया दौर नहीं शुरू हो जाता। इस दरमियान अच्छे स्टॉक्स की शिनाख्त करें, उन्हें खरीदें और पकड़कर बैठ जाएं।
दरअसल, इधर आपने निश्चित रूप से देखा होगा कि स्टॉक्स में तकलीफ का दौर खत्म होने लगा है क्योंकि ज्यादा लांग पोजिशन अब बची ही नहीं हैं, जबकि निफ्टी को दबाकर जबरदस्त उथल-पुथल पैदा की जा रही है। आज निफ्टी 4950 का स्तर तोड़कर नीचे में 4911.25 तक चला गया। हालांकि बंद हुआ है 4846.80 पर। लेकिन इस तरह उसका 4920 से नीचे तक चले जाना मंदड़ियों के मजबूत होते जाने का सबूत है। अब तो लगता है कि निफ्टी एकाध दिन में 4880 पर ही जाकर थोड़ी सांस लेगा।
इतिहास साक्षी है कि हालात छोरों पर बंधी डोर की लहरों की तरह बदलते हैं। जो लोग यह सबक याद नहीं रखते वे अक्सर घबराकर सन्निपात का शिकार हो जाते हैं।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का पेड-कॉलम है, जिसे हम यहां मुफ्त में पेश कर रहे हैं)