अर्थशास्त्रियों को उम्मीद थी कि अक्टूबर में 4.7 फीसदी घटने के बाद नवंबर में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) जिस तरह 5.9 फीसदी बढ़ा था, उसे देखते हुए दिसंबर में आईआईपी की वृद्धि दर 3.4 फीसदी तो रहनी ही चाहिए। लेकिन सीएसओ (केंद्रीय सांख्यिकी संगठन) की तरफ से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक उत्पादन में वास्वतिक वृद्धि मात्र 1.8 फीसदी की हुई है। साल भर पहले दिसंबर 2010 में यह वृद्धि दर 8.1 फीसदी रही थी।
वृद्धि दर में इस बड़ी कमी की वजह पूंजी निवेश का घटना बताया जा रहा है। इसने रिजर्व बैंक पर इस बात का भी दबाव बढ़ा दिया है कि अब उसे ब्याज दरों में कटौती के फैसले में देरी नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से ही निवेश का माहौल सुधर सकता है।
सीएसओ के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2011 महीने में खनन क्षेत्र का उत्पादन सूचकांक 3.7 फीसदी घट गया है, जबकि दिसंबर 2010 में यह 5.9 फीसदी बढ़ा था। इसी तरह मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के उत्पादन के बढ़ने की दर पहले 8.7 फीसदी रही थी, अब 1.8 फीसदी पर आ गई है। हां, बिजली में पहले से बेहतर स्थिति है। इस बार बिजली क्षेत्र का उत्पादन सूचकांक 9.1 फीसदी बढ़ा है, जबकि पिछली बार इसकी वृद्धि दर 5.9 फीसदी ही थी।
कुल मिलाकर चालू वित्त वर्ष 2011-12 में अप्रैल से दिसंबर 2011 तक के नौ महीनों में देश का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 3.6 फीसदी बढ़ा है, जबकि बीते वित्त वर्ष 2010-11 की समान अवधि में यह वृद्धि दर 8.3 फीसदी थी। औद्योगिक उत्पादन के बढ़ने की दर लगातार पिछले दो सालों से घट रही है। तीन महीने के मूविंग औसत पर गौर करें तो इस समय इसकी दर साल 2009 के बीच के बाद से न्यूनतम हो चुकी है।
सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि निवेश की तस्वीर पेश करनेवाला पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन दिसंबर में 16.5 फीसदी घट गया है, जबकि साल भर पहले दिसंबर 2010 में यह 20.2 फीसदी बढ़ा था। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री अनुभूति सहाय का कहना है, “निवेश के चक्र पर चोट लगी है और यह सिलसिला रुका नहीं, बल्कि अब भी जारी है। आज का आंकड़ा हमें आगाह करता है कि निवेश को बढ़ाने के लिए फौरन कुछ नीतिगत कदम उठाने की जरूरत है।” लेकिन इससे पूरे साल के विकास का नजरिया नहीं बदला है। रिजर्व बैंक भी बहुत मुमकिन है कि मुद्रास्फीति के आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए ही ब्याज दर के बारे में कोई फैसला करेगा।
बता दें कि सीएसओ अपने त्वरित अनुमान में चालू वित्त वर्ष की आर्थिक विकास दर का अनुमान 6.9 फीसदी कर चुका है, जबकि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी तक इसके घटकर 7.25 से 7.5 फीसदी रहने की बात करते रहे हैं। रिजर्व बैंक अपना अनुमान 7.6 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर चुका है। इस बीच अनुमान है कि जनवरी माह में सकल मुद्रास्फीति की दर 6.60 फीसदी पर आ सकती है। दिसंबर 2011 में इसकी दर 7.47 फीसदी दर्ज की गई है।
जानकारों का मानना है कि रिजर्व बैंक नए वित्त वर्ष से ही ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू करेगा। वह मौद्रिक नीति की अगली मध्य-तिमाही समीक्षा 15 मार्च को पेश करेगा। लेकिन तब ब्याज दरों में कटौती की कोई उम्मीद नहीं है। अगले वित्त वर्ष 2012-13 की सालाना मौद्रिक नीति मंगलवार, 17 अप्रैल 2011 को आएगी। उन दिन पूरी संभावना है कि रिजर्व बैंक सीधे-सीधे रेपो व रिवर्स रेपो दर को आधा फीसदी घटाकर क्रमशः 8 और 7 फीसदी कर देगा।