यूं तो हाइपरटेंशन अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, लेकिन पॉलिसीधारक इसके इलाज पर जो भी खर्च करता है, उसका क्लेम वह बीमा कंपनी से ले सकता है। यह फैसला है दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग का। जस्टिस बी ए जैदी की अध्यक्षता वाले आयोग ने कहा है, “हाइपरटेंशन बीमारी नहीं, बल्कि मानव जीवन की सामान्य गड़बड़ी है जिसे दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है। यह ऐसा कोई मर्ज नहीं है जिसके इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़े या ऑपरेशन कराना पड़े।”
उपभोक्ता आयोग ने यह फैसला एस एम गुप्ता की याचिका पर सुनवाई के बाद सुनाया है। हुआ यह था कि आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस ने हाइपरटेंशन के नाम पर श्री गुप्ता को 30,558 रुपए का मेडिक्लेम देने के इनकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने उपभोक्ता आयोग से दरख्वास्त की थी कि उन्हें इस क्लेम के साथ-साथ 15,000 रुपए का हर्जाना भी दिलवाया जाए।
आयोग ने श्री गुप्ता के मामले पर गौर करने के बाद आईसीआईसीआई लोम्बार्ड को आदेश दिया है कि वह उन्हें 30,558 का पूरा मेडिक्लेम दे। साथ में 10,000 रुपए का हर्जाना भी अदा करे। आयोग का यह फैसला काफी मायने रखता है क्योंकि बीमा कंपनियां अक्सर किसी न किसी आधार पर हाइपरटेंशन को प्री-एक्जिस्टिंग बीमारी बताकर बाद में होनेवाली दिल की बीमारी तक का क्लेम देने से इनकार कर देती है। उनका तर्क रहता है कि पॉलिसीधारक ने मेडिक्लेम पॉलिसी लेते वक्त हाइपरटेंशन की बीमारी छिपा ली थी। सूत्रों के मुताबिक आईसीआईसीआई लोम्बार्ड उपभोक्ता आयोग के इस फैसले को चुनौती देने की तैयारी में है।