सितंबर 2024 की तिमाही में देश के जीडीपी की विकास दर घटकर 5.4% रह जाने से सरकार के पसीने छूट रहे हैं। उसे डर है कि दस सालों से अर्थव्यवस्था के इर्द-गिर्द बुना जा रहा तिलिस्म कभी भी भरभराकर टूट सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तो बोलती बंद है। लेकिन दो प्रमुख आर्थिक मंत्रालयों से संबद्ध वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सारे घोड़े खोल दिए हैं। अपनी अकर्मण्यता पर नज़र डालने की उनकी हिम्मत तो है नहीं। फिर और कुछ नहीं मिला तो रिजर्व बैंक पर ही चाबुक बरसाने लग गए। वे भूल गए कि रिजर्व बैंक संविधान द्वारा गठित एक स्वायत्त संस्था है जिसका मूल दायित्व है मुद्रास्फीति पर नियंत्रण हासिल करना। लेकिन देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं की मर्य़ादा को तोड़ने में माहिर मोदी सरकार के मंत्रियों को रिजर्व बैंक भी अपनी गुलाम संस्था लगती है जिससे वे मूल दायित्व से हटाकर विकास का ज़िम्मा उठाने को मजबूर कर सकते हैं। इस बार 6 दिसंबर को मौद्रिक नीति आने से पहले पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमण ने दवाब बनाया था कि रिजर्व बैंक बढ़ती महंगाई की परवाह किए बिना ब्याज दरें घटा दे। हालांकि तब के गवर्नर दास दबाव में नहीं आए। अब सोमवार का व्योम…
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