सेंसेक्स व निफ्टी ऐतिहासिक शिखर पर। सीधा मतलब कि शेयर बाज़ार में लालच चरम पर है। लेकिन खास मतलब टेढ़ा है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के पहले दिन से ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) बेचे जा रहे हैं। उन्होंने कैश सेगमेंट से 1 अप्रैल से 24 मई के बीच स्टॉक एक्सचेंज द्वारा जारी अनंतिम आंकडों के मुताबिक शुद्ध रूप से 70,152 करोड़ रुपए निकाले हैं। बीते हफ्ते उन्होंने 1165.54 करोड़ रुपए की जो शुद्ध खरीद की, वो एफपीआई रूट से भारतीय कालेधन की ही राउंड-ट्रिपिंग का नतीजा है। अचंभे की बात यह है कि एफपीआई की इतनी धुआंधार बिकवाली के बावजूद 1 अप्रैल से 24 मई के बीच निफ्टी 2.20% और सेंसेक्स 1.89% बढ़ गया। यह तब हुआ, जब देश में 18वीं लोकसभा चुनावों के चलते अनिश्चितता का माहौल चरण-दर-चरण गहराता जा रहा है। शेयर बाज़ार में अनिश्चितता के बढ़ने का सीधा-सा मतलब है रिस्क का बढ़ते जाना। जब एफपीआई इस रिस्क को समझकर मुनाफा निकाल रहे हैं, तब कौन हैं जो इस रिस्क में गहरा गोता लगा रहे हैं? ये हैं देश की वे संस्थाएं जो आम निवेशकों के धन की संरक्षक हैं। म्यूचुअल फंड सतर्क हैं और मुनाफा निकालकर कैश पोजिशन बढ़ा रहे हैं। लेकिन बीमा कंपनियां, खासकर एलआईसी मोदी सरकार के इशारे पर अपने 30 करोड़ से ज्यादा पॉलिसीधारकों का जमाधन दांव पर लगाती जा रही है। अब सोमवार का व्योम…
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