कल हमने ऑप्शन ट्रेडिंग रणनीति के अंतर्गत कवर्ड कॉल, प्रोटेक्टिव पुट, बुल स्प्रेड और बियर स्प्रेड की चर्चा की। आज हम बटरफ्लाई स्प्रेड, स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल रणनीति को समझने की कोशिश करेंगे। ये तीनों ही डेल्टा न्यूट्रल रणनीतियां हैं। इनमें हम स्टॉक की तेजी या मंदी को नहीं, बल्कि उसकी वोलैटिलिटी को आधार बना कर ट्रेडिंग रणनीति तैयार करते हैं। हम जान चुके हैं कि वोलैटिलिटी ज्यादा हो तो ऑप्शन के भाव चढ़ जाते हैं और तब उन्हें बेचने में फायदा होता है। वहीं, जब वोलैटिलिटी कम हो तो ऑप्शन के भाव दबे हुए रहते हैं। तब उन्हें खरीदने में फायदा होता है।
बटरफ्लाई स्प्रेड: बटरफ्लाई स्प्रेड कम वोलैटिलिटी की स्थिति में काम आनेवाली रणनीति है। इसके तहत हम एक आउट ऑफ द ऑप्शन या ओटीएम कॉल ऑप्शन (स्ट्राइक मूल्य बाज़ार के स्पॉट मूल्य से ज्यादा) और एक इन द मनी या आईटीएम (स्ट्राइक मूल्य बाज़ार के स्पॉट मूल्य से कम) खरीदते हैं, जबकि दो ऐट द मनी (एटीएम) कॉल ऑप्शन (स्ट्राइक मूल्य बाज़ार मूल्य के बराबर) बेचते हैं। इस तरह हम कुल चार कॉल ऑप्शंस को काम में लाते हैं। इसमें शर्त यह है कि ओटीएम और एटीएम स्ट्राइक मूल्य का अंतर, आईटीएम और एटीएम स्ट्राइक मूल्य के अंतर के बराबर होना चाहिए।
जैसा हम बता चुके हैं कि यह कम वोलैटिलिटी की स्थिति में काम आनेवाली रणनीति है। इसमें फायदा तब होता है जब स्टॉक का मूल्य बहुत ज्यादा ऊपर-नीचे नहीं होता। अधिकतम मुनाफा तब होता है जब स्टॉक का मूल्य चलता ही नहीं, ठहरा रहता है। वहीं, नुकसान तब होता है जब सभी चारों ऑप्शंस में खरीदने-बेचने के अधिकार का इस्तेमाल कर लिया जाता है या किसी भी ऑप्शन में ऐसा करने का कोई मौका नहीं मिलता। बटरफ्लाई रणनीति तब सफल होती है, जब बाज़ार के शांत रहने की उम्मीद होती है या जब हमें लगता है कि इम्प्लाइड वोलैटिलिटी बहुत बढ़ी हुई है और अब उन्हें नीचे आना चाहिए।
मान लीजिए कि कोई स्टॉक इस वक्त बाज़ार में 100 रुपए पर ट्रेड हो रहा है। हम उसमें 105 रुपए स्ट्राइक मूल्य का एक और 95 रुपए के स्ट्राइक मूल्य वाला दूसरा कॉल ऑप्शन खरीद लेते हैं और 100 रुपए के स्ट्राइक मूल्य वाले दो कॉल ऑप्शन बेच देते हैं। अगर स्टॉक के बाज़ार मूल्य में काफी फर्क पड़ता है, मसलन वो 90 रुपए तक गिर जाता है तब हमें नुकसान होगा क्योंकि चारों में से किसी ऑप्शन पर अमल नहीं हो सकेगा। वहीं, अगर स्टॉक ज्यादा बढ़ जाता है, मसलन वो 105 के ऊपर बंद होता है तब सारे के सारे ऑप्शंस पर अमल हो जाएगा और सबको मिलाकर हमें घाटा उठाना पड़ेगा। लेकिन अगर स्टॉक ठहरा रहता है और 100 रुपए पर ही बंद होता है, तब हमें सबसे ज्यादा फायदा होगा। 105 वाले कॉल का प्रीमियम डूब जाएगा। लेकिन 95 वाले कॉल में फायदा होगा। साथ ही 100 रुपए में बेचे गए कॉल ऑप्शन पर अमल नहीं होगा तो उनका प्रीमियम भी हमें मिल जाएगा।
स्ट्रैडल: स्ट्रैडल की रणनीति उस स्थिति में कारगर है जब स्टॉक या इंडेक्स में ज्यादा वोलैटिलिटी रहती है, स्टॉक या बाज़ार जमकर ऊंचे-नीचे हो रहे हों। चंचलता ज्यादा रहेगी तो हमारी कमाई होगी और चंचलता नहीं रही तो हमें अपना प्रीमियम गंवाना पड़ेगा। इस रणनीति के अंतर्गत हम एक ऐट द मनी (एटीएम) कॉल ऑप्शन खरीदते हैं। साथ ही एक एटीएम पुट ऑप्शन भी खरीद लेते हैं। एटीएम ऑप्शन वह होता है जिसमें उसका स्ट्राइक मूल्य बाज़ार में चल रहे स्टॉक या इंडेक्स के मूल्य के बराबर होता है।
मान लीजिए कि स्टॉक का मूल्य 100 रुपए है और हमने 100 रुपए स्ट्राइक मूल्य का एक कॉल और एक पुट ऑप्शन खरीद लिया। इन दोनों का प्रीमियम हमने अदा कर दिया। अगर स्टॉक का मूल्य काफी उठता या गिरता है तो इनमें से एक ऑप्शन आउट ऑफ द मनी (ओटीएम) हो जाएगा और उसका प्रीमियम डूब जाएगा, वहीं दूसरा ऑप्शन इन द मनी (आईटीएम) हो जाएगा और उसमें हमें मुनाफा होगा। अगर स्टॉक एक्सपायरी पर सपाट रहता है तो दोनों ही ऑप्शंस पर दिया गया हमारा भाव या प्रीमियम डूब जाएगा। यह रणनीति तब फायदा दिलाती है, जब बाज़ार में कोई बड़ी खबर आनेवाली हो, वौलैटिलिटी बढ़नेवाली हो. लेकिन हमें पता न हो वह अच्छी होगी या बुरी, बाज़ार बढ़ेगा या गिरेगा।
स्ट्रैंगल: स्ट्रैंगल भी उतार-चढ़ाव या वोलैटिलिटी की स्थिति में काम आनेवाली ऑप्शन ट्रेडिंग रणनीति है। इसके अंतर्गत हम एक ओटीएम कॉल ऑप्शन (स्ट्राइक मूल्य बाज़ार मूल्य से ज्यादा) और एक ओटीएम पुट ऑप्शन (स्ट्राइक मूल्य बाज़ार मूल्य से कम) खरीदते हैं। मान लीजिए कि कोई स्टॉक 100 रुपए पर ट्रेड हो रहा है तो हम इस रणनीति में 105 रुपए स्ट्राइक मूल्य का कॉल ऑप्शन और 95 रुपए का पुट ऑप्शन खरीद सकते हैं।
यह रणनीति अमल करने में सस्ती होती है क्योंकि ओटीएम ऑप्शन के भाव आमतौर पर एटीएम या आईटीएम ऑप्शन से काफी कम होते हैं। इस लिहाज़ यह स्ट्रैडल से सस्ती रणनीति है। लेकिन यह तभी लाभप्रद होती है, जब स्टॉक के भाव किसी भी दिशा में जमकर बदलते हैं। स्ट्रैडल की ही तरह अगर स्टॉक ज्यादा नहीं चलता तो इसमें घाटा होता है, जबकि वह जितना ज्यादा उछल-कूद मचाता है, उतना ही फायदा कराता है।
इस तरह हमने अब तक के 25 सिलसिलेवार लेखों में मोटे तौर पर ऑप्शन ट्रेडिंग की अवधारणा को समझने की कोशिश की। जाना कि ऑप्शन के भाव कैसे निर्धारित होते हैं, उनके वाजिब या गलत होने का निर्धारण किस फॉर्मूले या मॉडल से किया जा सकता है, उस मॉडल की खामियां क्या हैं और इन खामियों के बीच से अभी तक ट्रेडरों ने क्या रास्ता निकाला है। हमने ऑप्शन ट्रेडिंग की रणनीति भी समझने की कोशिश की। इनमें सबसे सुरक्षित हैं डेल्ट्रा न्यूट्रल रणनीतियां। इनमें से तीन खास हैं बटरफ्लाई स्प्रेड, स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल, जिनके बारे में आज हमने जानने की कोशिश की। इन्हें हम शुक्रवार को उदाहरण से समझने की कोशिश करेंगे। उस दिन हम गुरुवार, 21 मई के भावों को आधार बनाकर निफ्टी ऑप्शंस में इन तीनों डेल्टा न्यूट्रल रणनीतियों पर अमल करेंगे। फिर देखेंगे कि अगले हफ्ते 28 मई को डेरिवेटिव सौदों की मई की एक्सपायरी के दिन ये रणनीतियां क्या गुल खिलाती हैं।
इस बीच कल हम डेरिवेटिव सौदों से जुड़ी एकाध अन्य चीजें समझने की कोशिश करेंगे।