राजनीतिक सहमति बनाकर चलेंगे, पर लाएंगे रिटेल में विदेशी: प्रणब

कहते हैं कि दूध का जला, छाछ भी फूंक कर पीता है। पिछले दिनों पेंशन बिल और कंपनी बिल को राजनीतिक विरोध के चलते वापस लेने पर मजबूर हुई सरकार अब आर्थिक सुधार संबंधी विधेयकों पर आम सहमति बनाने की वकालत करने लगी है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि सरकार आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के प्रति वचनबद्ध है और आर्थिक महत्व के विधेयकों पर राजनीतिक आम सहमति बनाने में लगी है।

लेकिन उन्होंने साफ किया कि सरकार ने मल्टी-ब्रांड रिटेल में विदेशी कंपनियों को प्रवेश देने का प्रस्ताव सिर्फ टाला है, ठंडे बस्ते में नहीं डाला। इससे पहले राहुल गांधी के बयान के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कह चुके हैं कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के बाद यह प्रस्ताव फिर से लाया जा सकता है।

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को उद्योग संगठन पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की 106वीं वार्षिक आमसभा का औपचारिक उद्घाटन करते हुए कहा कि सरकार के निर्णय की प्रक्रिया पर कुछ कहते समय गठबंधन की विवशता को भी ध्यान में रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे पास पूरी संख्या नहीं है। पहली यूपीए सरकार में लोकसभा में हमारे 147 सदस्य थे और इस समय 208 हैं जो 272 के आवश्यक बहुमत से कम हैं।

वित्त मत्रीं ने कहा कि सरकार पेंशन फंड विनियमन व विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) समेत विभिन्न विधेयकों पर आम सहमति बनाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा कि रिटेल क्षेत्र में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) के प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में नहीं डाला गया है।

उल्लेखनीय है कि कैबिनेट ने मल्टी-ब्रांड रिटेल में विदेशी फर्मों को 51 फीसदी तक इक्विटी हिस्सेदारी करने की छूट के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। लेकिन विपक्ष के साथ-साथ सत्तारूढ गठबंधन-संप्रग में शामिल तृणमूल कांग्रेस व डीएमके और बाहर से सहयोग देने वाले दलों के विरोध के आगे इस पर अमल रोकना पड़ा।

मुखर्जी ने अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में उद्योग जगत का विश्वास बढ़ाते हुए कहा कि इस वर्ष आर्थिक वृद्धि दर पिछले वित्त वर्ष के 8.5 फीसदी से कम जरुर है। लेकिन मौजूदा हालात में 7.5 फीसदी की वृद्धि भी कम नहीं है। उन्होंने उद्योगपतियों को 80 और 90 के दशक पर गौर करने को कहा, जबकि औसत वृद्धि दर 5 व 5.6 फीसदी थी।

उल्लेखनीय है कि वैश्विक आर्थिक संकट और घरेलू स्तर पर ऊची मुद्रास्फीति के बीच सरकार ने चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि के अपने अनुमान को घटा कर 7.6 फीसदी कर दिया है जबकि फरवरी में बजट पेश करते वक्त इसके 9 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था।

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