यूरिया को डिकंट्रोल करने की मुहिम जारी है और उर्वरक कंपनियों के स्टॉक पर जुनून-सा सवार होता दिख रहा है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में बना मंत्रियों की समूह (जीओएम) शुक्रवार 3 दिसंबर को इस मुद्दे पर बैठक करेगा। पहले यह बैठक आज, सोमवार 29 नवंबर को होनी थी। लेकिन उर्वरक व रसायन मंत्री एम के अलागिरी इस बैठक से पहले उर्वरक उद्योग के प्रतिनिधियों से मिलना चाहते थे। यह मुलाकात 1 दिसंबर को होगी, सो मंत्रियों के समूह की बैठक आगे शुक्रवार तक खिसका दी गई है। मंत्रियों के उक्त समूह में कृषि मंत्री शरद पवार और उर्वरक मंत्री अलागिरी शामिल हैं।
इस बीच उर्वरक सचिव सुतनु बेहुरिया ने सोमवार को राजधानी दिल्ली में पत्रकारों को बताया कि सरकार 2011 से यूरिया के मूल्य पर अपना नियंत्रण हटा सकती है। साथ ही यूरिया आयात के डि-कैनलाइजेशन पर भी विचार चल रहा है। मौजूदा नीति के तहत केवल सरकार द्वारा नियत एजेंसियां ही यूरिया का आयात कर सकती हैं। लेकिन डि-कैनलाइज होने पर निजी क्षेत्र भी इसका आयात कर सकता है।
बेहुरिया के मुताबिक उर्वरक सब्सिडी के रूप में चालू वित्त वर्ष 2010-11 में सरकार को 8000 से 10,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त जरूरत पड़ेगी। बजट में यूरिया सब्सिडी के लिए ही 21,480 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है। लेकिन अगले साल से यूरिया के डिकंट्रोल हो जाने से यह रकम काफी घट सकती है। अभी देश में प्रयुक्त कुल उर्वरकों की मात्रा का 46 फीसदी हिस्सा यूरिया का है। उनका कहना था, “हम यूरिया मूल्य पर नियंत्रण हटाने का विचार कर रहे हैं। इस पर एक तरह की अनौपचारिक सोच बन सकती है। लेकिन हम सुनिश्चित करेंगे कि कभी भी यूरिया के दाम इतने न हो जएं कि किसान उसे खरीद ही न सकें।”
केंद्र सरकार इसी 3 नवंबर को इस मसले पर अफसरों का एक पैनल भी बना चुकी है। वह इस साल के शुरू से ही यूरिया को मूल्य-नियंत्रण से बाहर लाने की कोशिश में लगी है। फरवरी में उसने यूरिया के दाम 10 फीसदी बढ़ाने का एलान किया था। पहले प्रति किलो यूरिया के दाम 5.50 रुपए थे जो 1 अप्रैल 2010 से 6 रुपए कर दिए गए। इस समय कंपनियों के लिए प्रति किलो यूरिया की उत्पादन लागत 14-15 रुपए पड़ती है। उन्हें लागत की भरपाई के लिए सरकार बाकी 8-9 रुपए सब्सिडी के रूप में देती है। यानी, सरकार अभी किसानों के नाम पर कंपनियों को सब्सिडाइज कर रही है।
डिकंट्रोल होने के बाद यह सिलसिला रुक सकता है और कंपनियां अपनी उत्पादन लागत घटाने को बाध्य हो सकती हैं। नए हालात में यूरिया का पूरा दाम किसानों को देना पड़ सकता है। इससे यह भी हो सकता है कि किसान यूरिया का इस्तेमाल कम कर दें जिससे उर्वरक कंपनियों की बिक्री घट सकती है। इसलिए डिकंट्रोल से उर्वरक कंपनियों की आय पर बुरा असर पड़ सकता है। लेकिन शेयर बाजार में अजीब-सी सकारात्मक धारणा बनी हुई है, जिसके चलते सोमवार को लगभग सभी उर्वरक कंपनियों के शेयर अच्छे-खासे बढ़ गए। बाजार का यह उन्माद शुक्रवार को मंत्रियों के समूह की बैठक के बाद ही शांत होगा।