एक तरफ खाद्य सुरक्षा विधेयक को संसद में रखने की तैयारी हो चुकी है, दूसरी तरफ खाद्यान्नों की खरीद व रखरखाव की सबसे बड़ी सरकारी एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने स्वीकार किया है कि अप्रैल 2000 से लेकर मार्च 2011 तक के दस सालों में विभिन्न वजहों से 7.42 लाख टन अनाज बरबाद हो गया है। इस अनाज की कीमत 330.71 करोड़ रुपए आंकी गई है।
एफसीआई ने सूचना का अधिकार कानून के तहत सामाजिक कार्यकर्ता ओम प्रकाश शर्मा के सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी। एफसीआई ने बताया कि 2000-01 में सर्वाधिक 1.82 लाख टन अनाज खराब हुआ। इसकी कीमत 67.52 करोड़ रुपए है। खराब हुए अनाज की मात्रा 2001-02 में घटकर 65,000 टन पर आ गई। लेकिन अगले ही साल 2002-03 में फिर बढ़कर 1.35 लाख टन पर पहुंच गई। अब 2010-11 तक स्थिति में काफी सुधार आ चुका है और इस दौरान 3.40 करोड़ रुपए के मूल्य का 6000 टन अनाज ही खराब हुआ।
बता दें कि पिछले कुछ सालों में सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने भी लताड़ा है और कहा था कि जब अनाज इस तरह खुले में रहने की वजह से सड़ जाते हैं तो उन्हें क्यों नहीं गरीबों में मुफ्त बांट दिया जाता। इसके बाद सरकार को होश आया और उसने अनाजों के भंडारण की सुविधाएं बढ़ा दी हैं।