अमेरिका के केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व ने अंततः ब्याज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की, जबकि दुनिया भर में माना जा रहा था कि वो इसे शून्य से 0.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 0.25 से 0.50 प्रतिशत कर सकता है। फेडरल रिजर्व की चेयरमैन जानेट येलेन ने भारतीय समय से गुरुवार-शुक्रवार की आधी रात के बाद यह घोषणा करते हुए कहा कि यह कदम वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ा है जिसने वस्तुतः अमेरिकी केंद्रीय बैंक के हाथ बांध दिए हैं। बाज़ार में दिसंबर तक भी नीतिगत दरों को बढ़ाने की गुंजाइश अब हो गई लगती है।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की खबर के मुताबिक, फ्यूचर्स बाज़ार में ट्रेडर जहां येलेन की घोषणा से पहले दिसंबर तक ब्याज दर बढ़ाने जाने की प्रायिकता 64 प्रतिशत मान रहे थे, वहीं अब उनके बीच ऐसा होने की प्रायिकता 47 प्रतिशत मानी जा रही है। टेक्सास प्रांत के शहर सैन एंटोनियो की फर्म यूएसएए इन्वेस्टमेट्स के वरिष्ठ पोर्टफोलियो मैनेजर जॉन बॉनेल का कहना है, “हम जैसे पहले थे, वैसी ही स्थिति में आ गए हैं। वहीं अनिश्चितता कायम है कि वे कब कोई फैसला करने जा रहे हैं।”
वैसे, फेडरल रिजर्व की ओपन मार्केट समिति के 12 सदस्यों में चार का मानना है कि ब्याज दरों को कम से कम 2016 तक नहीं बढ़ाया जाना चाहिए, जबकि जून तक ऐसा माननेवाले सदस्यों की संख्या दो थी। इस साल फेडरल रिजर्व ही अगली नीतिगत बैठकें अक्टूबर व दिसंबर में होनी हैं।
समिति का बयान जारी होने के बाद आयोजित न्यूज़ कॉन्फरेंस में फेड चेयरमैन येलेन न कहा, “बाहर का परिदृश्य अब पहले से कुछ कम अनिश्चित हो गया हो, फिर भी अनिश्चितता बनी हुई है।” साथ ही उन्होंने कहा कि हाल में अमेरिकी शेयर बाज़ार में आई गिरावट और डॉलर के मूल्य में हुई वृदधि से पहले से वित्तीय बाज़ार की स्थितियों को कड़ा कर दिया है जिसके चलते अमेरिका का आर्थिक विकास फेडरल रिजर्व के कुछ भी करने के बावजूद धीमा पड़ सकता है।
उन्होंने कहा कि वे चाहती है कि अमेरिकी श्रम बाज़ार में थोड़ा और सुधार आ जाए। उन्होंने कमज़ोर मुद्रास्फीति पर चिंता जताई। वैश्विक परिदृश्य के बारे में उन्होंने साफ कहा कि केंद्रीय बैंक इस समय चीन व उभरते बाज़ारों में आई आर्थिक सुस्ती पर फोकस कर रहा है। अहम मसला है कि क्या चीन में अचानक और ज्यादा गिरावट आने का खतरा है।
जेपी मॉर्गन एसेट मैनेजमेंट में वैश्विक बाज़ार के रणनीतिकार योशिनोरी शिगेमी का कहना है. “मुझे लगता है कि फेड का फैसला अंततः बाज़ार के लिए सकारात्मक साबित होगा। लेकिन चंचलता ज्यादा रह सकती है क्योंकि बाज़ार को फेड की तरह ही पुष्टि करनी होगी कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल प्रभाव का कहां तक मुकाबला कर पा रही है।
मालूम हो कि फेडरल रिजर्व ने अमेरिका में अल्कालिक ब्याज दरों को दिसंबर 2008 से ही शून्य से 0.25 प्रतिशत तक रखा हुआ है। हालांकि वहां के बैंकों की मूल उधार दर (पीएलआर) अभी 3.5 प्रतिशत चल रही है, जबकि आम लोगों को क्रेडिट कार्ड के लेनदेन पर 13 प्रतिशत ब्याज चुकाना होता है। अमेरिका में रिटेल मुद्रास्फीति की दर अगस्त में मात्र 0.1 प्रतिशत रही है, जबकि अगस्त के अंत तक के आंकड़ों के बेरोजगारी की दर 5.1 प्रतिशत दर्ज की गई है।
अमेरिका में ब्याज दरें तय करते वक्त मुद्रास्फीति के साथ-साथ बेरोजगारी की अद्यतन स्थिति को ध्यान में रखा जाता है। अपने यहां भारत में बेरोजगारी या बेरोज़गारों की अद्यतन गिनती जून 2012 तक की है। इसके बाद का कोई आंकड़ा भारत सरकार या भारतीय रिजर्व बैंक के पास नहीं है।