यूरो ज़ोन अब ऋण संकट के साथ-साथ रिकॉर्ड बेरोजगारी, घटते औद्योगिक उत्पादन और बढ़ती महंगाई से भी परेशान हो गया है। यूरोप के सांख्यिकी कार्यालय यूरोस्टैट के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक यूरो ज़ोन में बेरोजगारी की दर जनवरी में अचानक बढ़कर 10.7 फीसदी हो गई। ऋण संकट से बुरी तरह घिरे स्पेन में बेरोजगारी की दर 23.3 फीसदी हो गई है जो पूरे यूरो ज़ोन में सबसे ज्यादा है। ऑस्ट्रिया की हालत सबसे अच्छी है। लेकिन वहां भी बेरोजगारी दर चार फीसदी है। जर्मनी में यह दर 5.8 फीसदी है।
बेरोजगारी का असर लोगों की क्रय-शक्ति पर भी पड़ रहा है। यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) ने बैंकों को नया धन देकर शेयर बाजारों की तो मदद की है, लेकिन असली अर्थव्यवस्था तक उसका लाभ नहीं पहुंचा है। बता दें कि ईसीबी ने इसी हफ्ते बुधवार को करीब 800 बैंकों को एक फीसदी के ब्याज पर तीन साल के लिए कुल 530 अरब यूरो दिया है। केंद्रीय बैंक के लिए ब्याज दर कम करना आम तौर पर सही संदेश होता। लेकिन उसकी मुश्किल यह है कि आर्थिक विकास दर गिरने के साथ महंगाई भी बढ़ रही है। ऐसे में ब्याज दर घटाकर धन को और सस्ता करना महंगाई को बढ़ा सकता है।
यूरोप में चीजों की कीमतें भी तेजी से बढ़ रही हैं। ईरान संकट के कारण तेल की कीमत लगातार बढ़ रही है। फरवरी में पेट्रोल की कीमतों का नया रिकॉर्ड बना है। इसका असर दूसरी चीजों पर पड़ रहा है। वस्तुओं व सेवाओं की औसत कीमत 2.7 फीसदी बढ़ चुकी है। कीमतों में वृद्धि दो फीसदी से कम हो तो ईसीबी इसे वाजिब स्तर मानता है। एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय बैंक से जुड़े अधिकारी क्रिस्टॉफ वाइल कहते हैं कि इस साल कीमतों के इससे कम होने की संभावना नहीं है और ईरान समस्या का भी कोई हल दिख नहीं रहा है।
तेल की कीमतें सिर्फ आम लोगों को परेशान नहीं कर रही हैं, उद्यमियों की भी हालत खस्ता है। फरवरी में यूरोप में हजारों कंपनियों का सर्वे करनेवाली एक संस्था का कहना है कि तेल, ऊर्जा, प्लास्टिक व स्टील और दूसरे कच्चे माल के महंगे होने के कारण खर्च इतना बढ़ा है जितना सर्वे के इतिहास में पहले नहीं हुआ। यूरो ज़ोन के हर देश में उत्पादन खर्च बढ़ गया है। लेकिन मांग में कमी के कारण उद्यमी अपने उत्पादों के दाम नहीं बढ़ा सकते।
खर्च के दबाव के कारण यूरोपीय उद्यमों का कारोबार पहले से बदतर हो गया है। सिर्फ ऑस्ट्रिया में उद्योग ने विकास की साफ दर दिखाई है। जर्मनी और हॉलैंड में भी थोड़ा विकास हुआ है जबकि फ्रांस में अगस्त 2011 के बाद पहली बार हालत स्थिर हुई है। इटली में आर्थिक मंदी कम हुई है, जबकि स्पेन व ग्रीस की हालत और खराब हो गई है। (रॉयटर्स)