एक अच्छी खबर है जो पूंजी बाजार में खुशी ला सकती है। नॉर्थ ब्लॉक के मेरे सूत्रों ने बताया है कि आखिरकार वित्त मंत्रालय ने आईपीओ की लिस्टिंग के पहले दिन होनेवाले खेल पर चिंता जताई है। अमूमन लिस्टिंग के बाद शेयर धड़ाम से गिरते हैं जिससे लाखों-करोड़ों निवेशकों की पूंजी स्वाहा हो जाती है। यहां तक कि सरकार को भी अपनी कंपनियों के आईपीओ रिटेल व असली निवेशकों को बेचने में समस्या होती है। दुखद बात यह है कि सरकार को अब चेत आ रहा है जबकि मीडिया पिछले तीन-चार सालों से इस मसले को उठाता रहा है। यहां तक कि पूरी की पूरी केस-स्टडी तक पेश की जा चुकी है कि कैसे 75 फीसदी आईपीओ में निवेशकों को अपनी 75 फीसदी पूंजी गंवानी पड़ी है।
इसकी दो वजहें रही हैं। एक, आईपीओ की लिस्टिंग के पहले दिन 50 फीसदी की सर्किट सीमा है और उसके बाद 20 फीसदी की। आईपीओ के ऑपरेटर इसका फायदा उठाते हुए पहले दिन भाव को 50 फीसदी तक चढ़ा देते हैं और अगले दिन इसके ऊपर 20 फीसदी। इसके बाद उसमें गिरावट का दौर शुरू हो जाता है। दूसरे दिन तक भाव कम से कम 70 फीसदी तक बढ़ चुके होते हैं। इससे ऑपरेटरों को 120 फीसदी तक लाभ मिल जाता है क्योंकि अधिकांश आईपीओ में कंपनी के शेयर उन्हें पहले ही 50 फीसदी डिस्काउंट दे दिए जाते हैं। इस 120 फीसदी मार्जिन के दम पर ऑपरेटर आईपीओ लानेवाली कंपनी के शेयर बहुत ही ज्यादा वोल्यूम के साथ और सर्कुलर ट्रेडिंग के जरिए व्यापक स्तर पर फैला देते हैं। इस काम में 100 से ज्यादा ब्रोकिंग हाउस और जॉबर सक्रिय हैं। लेकिन वे इतनी बारीकी से काम करते हैं कि उनको पकड़ पाना लगभग नामुमकिन है।
वोल्यूम काफी ज्यादा हो जाता है तो ऑपरेटर चुपचाप शांति से अपना 50 फीसदी मुनाफा कमाकर निकल लेते हैं। कुछ ऐसे में मामले हुए हैं जब ऑपरेटर निकल नहीं पाए तो उन्होंने ऐसा खेल किया कि बिना किसी फंडामेंटल के भी कंपनी के शेयर के 400 से 500 फीसदी तक चढ़ा ले गए। वे ऐसा इसलिए कर सके क्योंकि प्रवर्तकों के साथ उनके पास कंपनी के अधिकतम शेयर थे। समय बीतने पर वे हर स्तर पर निकलने की कोशिश करते हैं।
मेरे सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्रालय ने अंततः इस मसले को काफी गंभीरता से लिया है और संबंधित अधिकारियों से कहा है कि वे मर्चेंट बैंकरों को बुलाएं और आईपीओ की प्राइसिंग की जिम्मेदारी व जवाबदेही उन पर डालें। अगर पहले ऐसा हो गया होता तो निवेशक भारी नुकसान से बच जाते। जैसे, अगर रिलायंस पावर के आईपीओ में मूल्य सही होता तो लिस्टिंग के बाद स्टॉक 75 फीसदी नहीं गिरता और अगर जवाबदेही तय कर दी गई होती तो सारा खेल उलट जाता।
वित्त मंत्रालय के इस फैसले से अब होगा यह कि आईपीओ कम मूल्य पर आएंगे और आईपीओ के लिस्ट होने पर धीरे-धीरे उनके भाव चढ़ना शुरू करेंगे। 1990 से 2000 के दशक में ऐसा ही होता था। इससे आईपीओ का स्वर्णिम काल वापस लौट सकता है। यह निवेशकों व उनकी बचत को वापस ला सकता है और नतीजतन सेकेंडरी बाजार या शेयर बाजार में उनकी दिलचस्पी बढ़ सकती है।
खैर, निफ्टी 5900 का स्तर छूने के बाद फिर जमने के दौर से गुजर रहा है। लेकिन गिरावट की सीमा बंधी हुई है। मेरा आकलन था कि निफ्टी अगर आज 5955 तक चला गया होता तो कल ही 6030 तक पहुंच जाता। फिर अगर ऐसा हो जाता तो शुक्रवार को यह 6160 तक जा सकता है। हालांकि आज निफ्टी 5892.35 तक जाने के बाद गिरकर 5833.90 पर बंद हुआ है।
कल के बंद स्तर के नजरिए से जिन स्टॉक्स पर नजर रखने की जरूरत है वे हैं – डिवीज लैब, आईसीआईसीआई बैंक, इनफोसिस और लार्सन एंड टुब्रो। मेरे हिसाब से कैश सेगमेंट में केन्नामेटल, टिमकेन, गुडईयर, कैम्फर, विम प्लास्ट, सदर्न पेट्रोकेमिकल्स, बालासोर एलॉयज और एशियन ऑयलफील्ड अच्छे स्टॉक्स हैं। इसमें से सदर्न पेट्रोकेमिकल्स आज भारी वोल्यूम के साथ 14.81 फीसदी बढ़ा है।
बिना बहस के किसी सवाल को सुलझा देने से बेहतर है कि उस पर बहस की जाए, भले ही वह अनसुलझा रह जाए।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)