इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सभी अभी सीखने के दौर में हैं और यह दौर लंबा खिंचेगा। सीखने का मतलब होता है कि पहले उस जड़ता को तोड़ना जो सालोंसाल में हमारे भीतर जड़ बना चुकी है। यह अपने-आप नहीं निकलती। निरंतर रगड़-धगड़ से इसे निकालना पड़ता है। इसका कोई शॉर्ट कट नहीं है। उसी तरह जैसे शेयर बाजार में सुरक्षित चलनेवाले आम निवेशकों के लिए कोई शॉर्ट टर्म नहीं होता। दुनिया के सबसे कामयाब निवेशक वॉरेन बफेट का कहना है, “मैं कभी शेयर बाजार से दो-चार दिन में नोट बनाने की कोशिश नहीं करता। मैं तो यह मानकर खरीदता हूं कि बाजार अगले दिन बंद हो जाएगा और अगले पांच सालों तक नहीं खुलेगा।”
हमारे यहां मुश्किल है कि हर कोई नोट बनाने की हड़बड़ी में लगा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि देश में सामाजिक सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां सरकार किसी का ख्याल नहीं रखती। हर किसी को अपना-अपना ख्याल रखना है। इसलिए स्वाभाविक तौर पर लोग वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा को लेकर हड़बड़ाए रहते हैं। लेकिन इतना भी क्या हड़बड़ाना होना कि हड़बड़ी में गड़बड़ी हो जाए! आइए देखते हैं कुछ काम की बातें जो हमने बीते हफ्ते जानीं-समझीं…
- ज़िंदगी कभी एकसार नहीं हो सकती। उसमें उतार-चढ़ाव आते ही हैं। इसी तरह शेयर बाजार और अलग-अलग शेयरों के साथ उतार-चढ़ाव बड़ा स्वाभाविक है। यहां से कमाने के लिए बड़ा धैर्य रखना पड़ता है। खासकर तब, मामला लांग टर्म या लंबे समय का हो।
- एक बात नोट कर लें कि डिलीवरी का अनुपात ज्यादा होने का मतलब उसमें हवा-हवाई नहीं, बल्कि सही निवेशक आ रहे हैं। वैसे एक बात और बता हूं कि जब भी आप खरीदने जा रहे हों तो थोड़ा रुककर कल्पना कर लीजिए कि बेच कौन रहा होगा। या, बेच रहे हों तो सोच लीजिए कि खरीद कौन रहा होगा। शेयर बाजार में निवेश टेनिस के मैच जैसा है। कोई दबाता है तो कोई उठाता है। हमेशा सामनेवाले पक्ष की धारणा को सोचकर चलेंगे तो बेवजह की भावुकता और तमाम तरह की मूर्खता से बच जाएंगे।
- स्मॉल कैप कंपनियों में निवेश कम से कम चार-पांच साल के लिए करना चाहिए। दस साल के लिए करें तो बहुत अच्छा। ऐसी कंपनियां बाजार में आंधी-तूफान आने पर तेजी से गिरती हैं। लेकिन लंबे समय में संभलना इनका मूल चरित्र है। बस देखना यह चाहिए कि कंपनी का मूलाधार क्या है? उसकी जड़े कितनी गहरी हैं? इसके धंधे में कितना दम और कितनी संभावना है?