देश की तेल मार्केटिंग कंपनियों की अंडर-रिकवरी दिसंबर तिमाही में लगभग 34,000 करोड़ रुपए की हो सकती है। इसमें से सबसे ज्यादा करीब 19,000 करोड़ की अंडर-रिकवरी इंडियन ऑयल की होगी। यह आंकड़े इंडियन ऑयल के वित्त निदेशक पी के गोयल ने सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में पेश किए। इस खबर के आने के बाद सभी तेल कंपनियों के शेयरों के भाव घट गए।
बता दें कि सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियां – इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम व भारत पेट्रोलियम अंतरराष्ट्रीय बाजार से कच्चा तेल डॉलर देकर खरीदती हैं और उससे बने डीजल, कैरोसिन व एलपीजी को सरकार निर्धारित कीमतों पर बेचती हैं। सरकार ने जून 2010 से पेट्रोल पर नियंत्रण हटा दिया है। फिर भी कंपनियां सबसे बडी शेयरधारक होने के नाते सरकार की मर्जी से ही पेट्रोल के दाम बढ़ाती हैं।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक तेल कंपनियों को डीजल, कैरोसिन व रसोई गैस (एलपीजी) पर प्रतिदिन 388 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में अप्रैल से सितंबर तक की छमाही में तेल कंपनियों की अंडर-रिकवरी 64,900 करोड़ रुपए की रही है।
मालूम हो कि अंडर-रिकवरी का मतलब घाटा नहीं होता क्योंकि इसका एक तिहाई हिस्सा सरकार कंपनियों को सब्सिडी के रूप में दे देती है, जबकि करीब एक तिहाई हिस्से की भरपाई ओएनजीसी, ऑयल इंडिया व गैल इंडिया जैसी अपस्ट्रीम कंपनियां करती हैं। बाकी लगभग एक तिहाई हिस्से का ही बोझ तेल मार्केटिंग कंपनियों को उठाना पड़ता है। सितंबर 2011 तिमाही में इंडियन ऑयल को 7485.55 करोड़ रुपए, भारत पेट्रोलियम को 3229.27 करोड़ और हिंदुस्तान पेट्रोलियम को 3364.48 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था। इस तरह उनका कुल घाटा 14,079.30 करोड़ रुपए का था। ये कंपनियां दिसंबर तिमाही के नतीजे अगले महीने घोषित करेंगी।