सच कहें तो हम भारतीयों को जीत से मतलब है। हां, क्रिकेट का बोलबाला है तो इसके विश्व कप में जीत ने हम में गजब का जोश भर दिया। शनिवार की रात दीवाली की रात बन गई। लेकिन जोश में कुछ बातों का होश रखना जरूरी है। बुधवार 30 मार्च को मोहाली में भारत-पाक का सेमी-फाइनल मुकाबला दोपहर ढाई बजे से शुरू होना था। इससे आधे घंटे पहले दो बजे कुछ खास लोगों को मिले एक एसएमएम पर गौर कीजिए – “भारत पहले बैटिंग करेगा। स्कोर 260 के आसपास होगा। पहले 15 ओवरों में तीन विकेट गिरेंगे। पाकिस्तान तेजी से 100 रन बनाएगा। फिर फटाफट उसके दो विकेट गिरेंगे। 150 तक उसके 5 विकेट गिर चुके होंगे। पाकिस्तान की हालत डांवाडोल हो जाएगी। वह मैच में एक बॉल बची रहने पर 30 से ज्यादा रनों से हार जाएगा।” (एसएमएस अंग्रेजी में था, जिसका यह हिंदी अनुवाद है)
असल मैच में क्या हुआ और वह इस ‘भविष्यवाणी’ के कितने करीब था, यह आप सब अच्छी तरह जानते हैं। यह है बुकीज या सट्टेबाजों का खेल। भगवान नचाए या न नचाए, ये सट्टेबाज खिलाड़ियों को जरूर अपने नोटों की नोक पर नचाते हैं। कतई यकीन नहीं आता कि भारत-पाकिस्तान का सेमी-फाइनल मैच इतना फिक्स था! बताते हैं कि इस पर कुल 6000 करोड़ रुपए का सट्टा लगा था। हमारा तंत्र चाहे तो इसका पता आसानी से लगा सकता है। लेकिन वह क्या और क्यों पता लगाएगा?
मुंबई में हुए विश्व कप फाइनल के टिकट ब्लैक में डेढ़ लाख रुपए में बिकते रहे और इस काले बाजार पर नजर रखनेवाले आयकर विभाग के कमिश्नर व उनके परिवार के लोग अपने क्लाएंटों की तरफ से मिले ब्लैक के इन टिकटों पर वानखेडे स्टेडियम में भारत-श्रीलंका का फाइनल मुकाबला देखते रहे। अनुमान है कि इस मुकाबले पर दुबई से लेकर लाहौर व भारत में करीब 10,000 करोड़ रुपए का सट्टा लगा था। भाई लोग सट्टा खेलते रहे, खिलाड़ी मैच खेलते रहे और हम जीत के जुनून में भावनाओं की तरंग में उछलते रहे। इतना इमोनशल होना अच्छी बात नहीं है।
मैं यह सब इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जिस तरह क्रिकेट के मैच फिक्स होते हैं, वही हालत हमारे शेयर बाजार की भी है। यहां भी बहुत कुछ फिक्स रहता है। नहीं तो क्या वजह है कि रीयल्टी सेक्टर की कंपनियों के फंडामेंटल्स में कोई अंतर नहीं आया है, न ही अचानक इनके प्रोजेक्ट के बिकने का नजरिया बदल गया है, फिर भी इनके स्टॉक्स एक सेटलमेंट में ही 40 फीसदी उछल गए! सार्वजनिक रूप से एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशकों) के नकारात्मक आकलन में कोई तब्दीली नहीं आई है। फिर भी उन्होंने बाजार में एक अरब डॉलर की खरीद कर डाली और निफ्टी 5200 से बढ़कर 5870 अक पर पहुंच गया।
यह सब तब हुआ जब हर तरफ टेक्निकल एनालिस्ट हल्ला मचा रहे थे कि बाजार 4700 व 4800 तक गिर जाएगा। लेकिन हकीकत में एफआईआई व ऑपरेटरों में ऐसी फिक्सिंग की, बीते सेटलमेंट में ऐसा गंदा खेल खेला कि दबाते-दबाते बाजार को उठा डाला। निगरानी करनेवाले निकाय और नियामक संस्थाएं मूक दर्शक बनकर रह गईं।
खैर जो हुआ, सो हुआ। कच्चा तेल फिर से 107 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है। फिर भी बाजार टॉप गियर में है जिसके पता चलता है कि तेल बस एक हौवा जिससे आपको डराया जाता है। तेल का मसला हो या न हो, बाजार को एक ही दिशा में जाना है क्योंकि डेरिवेटिव सौदों में यहां सिर्फ कैश सेटलमेंट चलता है। यह विशुद्ध जुएबाजी है और डेरिवेटिव सौदे शुरू करने की मूल भावना के खिलाफ है। आप थोड़े से धन की बदौलत बाजार से जब चाहे उठ्ठक-बैठक करा सकते हैं क्योंकि फिजिकल सेटलमेंट न होने के चलते असली निवेशक तो कोई समस्या पैदा नहीं कर सकते।
अगर फिजिकल सेटलमेंट होता तो कम से कम एक फीसदी अमीर भारतीयों ने अपना कुछ धन इक्विटी की तरफ बढ़ा दिया होता क्योंकि डेरिवेटिव सेगमेंट में फिजिकल सेटलमेंट होने से वे शेयर बाजार के कैश सेगमेंट का जोखिम कम कर सकते थे जिससे उनका धन ठीकठात कमाई कर लेता। सोने और कैश रकम से कमाई नहीं होती। एफडी पर मिलनेवाली ब्याज को तो मुद्रास्फीति ही खा जाती है। ऐसे में निवेश पर अगर 15 से 25 फीसदी रिटर्न मिले तो इससे धनवान निवेशकों को शेयर बाजार में आसानी से खींचा जा सकता है।
लेकिन क्या कोई चाहता भी है कि भारत में ऐसा हो जाए? जाहिरा तौर पर एफआईआई ऐसा नहीं चाहते क्योंकि वे भारतीय बाजार की कमियों से ही कमाई करते हैं और सट्टेबाजी में खुश हैं। लेकिन समझ में नहीं आता कि सरकार क्यों इस मसले पर निष्क्रिय बनी हुई है? यह कैंसर कब तक निवेशकों के विश्वास को खोखला करता रहेगा? इस सवाल सरकार को निश्चित रूप से हल करना होगा। इतना तय है कि अभी की हालत पूंजी बाजार के दीर्घकालिक हित में नहीं है। यह लोगों को फ्रॉड करने और गलत काम के लिए उकसाती है क्योंकि सट्टेबाजी में पूंजी गंवाने के बाद वे इसे हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं।
फिलहाल बाजार इन सारी बाधाओं के बावजूद नई मंजिल की तरफ बढ़ रहा है। नए वित्त वर्ष के पहले दिन मिड कैप सेगमेंट में बहुत से स्टॉक्स महज एक कारोबारी सत्र में 10 से 20 फीसदी बढ़ गए। अप्रैल का महीना कंपनियों के नतीजों का महीना है। इसे आमतौर पर पहले खरीदे गए शेयरों को उठाने-गिराने के लिए किया जाता है। इसलिए हमारी सलाह है कि आप इस दौरान चौथी तिमाही के नतीजों पर आधारित ट्रेडिंग करने से बचें।
बाजार को आगे बढ़ने से पहले कुछ बाधाएं झेलनी पड़ेंगी और वह फिर से 200 दिनों के मूविंग औसत (डीएमए) पर आ सकता है। हम मानते हैं कि मई व जून मिड कैप शेयरों में तेजी की शुरुआत के महीने बन सकते हैं। बाजार अगस्त 2011 से पहले नई ऊंचाई पकड़ सकता है। सेंसेक्स की बात करें तो वह 18,500 से 19,500 के बीच खुद को जमाएगा। इसके बाद वह 20,000 के पार चला जाएगा। एक बार यह जादुई आंकड़ा निकल गया तो बाजार में ऐसी खरीद शुरू होगी कि सेंसेक्स 21,300 पर ही जाकर दम मारेगा।
अंत में एक सावधानी। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर दाखिल सीबीआई की चार्जशीट में अनिल अंबानी समूह के तीन अधिकारियों का नाम है। इसलिए सोमवार को इनकी कंपनियों के शेयरों को तीखा झटका लग सकता है।