इस साल सरकार के बाजार ऋण का इंतजाम करना काफी मुश्किल होगा। यह कहा है कि सरकार के मुख्य ऋण प्रबंधन रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में। गुरुवार को जारी इस रिपोर्ट में रिजर्व बैंक ने कहा है कि अभी तरलता की जैसी कसी हुई हालत है और बैंकों ने जिस तरह तय सीमा से ज्यादा निवेश एसएलआर प्रतिभूतियों (सरकारी बांडों) में कर रखा है, वैसे में सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2011-12 के लिए निर्धारित बाजार उधार कार्यक्रम को पूरा करना एक चुनौती है। सरकार को वित्त वर्ष में अभी अगस्त से मार्च के बीच बाजार से दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का उधार जुटाना है।
रिपोर्ट के मुताबिक सरकार का बाजार ऋण कार्यक्रम की सफलता इससे तय होगी कि वह अपने राजकोषीय घाटे पर कितना काबू पा लेती है। यह भी सवाल है कि वह मुद्रास्फीति को थामने के लिए किए जा रहे मौद्रिक उपायों के बीच बाजार उधार का लक्ष्य सरकार कैसे पूरा कर पाएगी। बता दें कि केंद्र सरकार ने इस साल अपने सकल उधार का बजट अनुमान 4,17,128 करोड़ रुपए का है। इसमें से 74,128 करोड़ रुपए पुराने ऋणों की अदायगी के हैं तो उसकी शुद्ध उधारी का अनुमान 3.43 लाख करोड़ रुपए का बनता है।
इसमें से 2.50 लाख करोड़ रुपए की बाजार उधारी वित्त वर्ष की पहली छमाही यानी सितंबर 2011 तक जुटा लेनी है, जबकि बीते वित्त वर्ष की पहली छमाही में 2.84 लाख करोड़ रुपए जुटाए गए थे। रिजर्व बैंक का कहना है कि हालांकि केंद्र द्वारा बांडों के जरिए जुटाया जानेवाला सकल उधार पिछले साल से 4.6 फीसदी कम है। लेकिन उसके शुद्ध उधार की रकम पिछले साल से 5.4 फीसदी ज्यादा है। वैसे, केंद्र सरकार 31 जुलाई 2011 तक 1,33,354 करोड़ रुपए का शुद्ध उधार जुटा चुकी है। यह पिछले साल इसी अवधि में जुटाई गई रकम से 8.38 फीसदी अधिक है। लेकिन आगे की राह मुश्किल हो सकती है। केंद्र सरकार को चालू अगस्त माह समेत बाकी बचे आठ महीनों में 2,09,646 करोड़ रुपए जुटाने हैं।
रिजर्व बैंक ने इस बात के लिए भी आगाह किया है कि आनेवाले समय में मुद्रास्फीति ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी और आर्थिक विकास की दर घट सकती है। उसने अपनी सालाना रिपोर्ट कहा कि सप्लाई के मोर्चे पर कमजोरी बने रहने से मुद्रास्फीति को संभालना अहम चुनौती है। पिछले वित्त वर्ष 2010-11 में हमने 8.5 फीसदी की आर्थिक विकास दर हासिल कर ली थी। लेकिन इस साल यह 8 फीसदी के आसपास ही रहेगी।