राष्ट्रीय एकता व सांप्रदायिक सद्भाव के नाम पर गूगल व फेसबुक पर चाबुक

केंद्र सरकार का कहना है कि गूगल, फेसबुक, ऑरकुट, ब्लॉग स्पॉट, यू ट्यूब, याहू व माइक्रोसॉफ्ट समेत 21 सोशल नेटवर्किंग साइटें व सर्च इंजन देश में सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता को चोट पहुंचा रहे हैं। इसलिए इनके खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत दी जाती है। सरकार की तरफ से यह फरमान कपिल सिब्बल के नेतृत्व वाले सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने जारी किया है।

दिल्ली के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट सुदेश कुमार से समक्ष रखी गई दो पेज की रिपोर्ट में विभाग ने कहा, “प्राधिकृत अधिकारी ने निजी तौर पर अपने सामने रखे गए सारे रिकॉर्ड व सामग्रियों का निरीक्षण किया और उन्हें देखने-परखने के बाद संतुष्ट हुए कि आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अनुच्छेद 153-ए, 153-बी व 295-ए के अंतर्गत मुकदमा चलाने का पर्याप्त आधार बनता है।”

यह रिपोर्ट तब पेश की गई जब अदालत ने विदेश मंत्रालय को निर्देश दिया था कि वह विदेश में स्थित दस कंपनियों तक समन पहुंचाने की व्यवस्था करे। अदालत ने 23 दिसंबर को कुल 21 सोशल नेटवर्किंग साइटों के नाम समन जारी किए थे। इनमें 11 के दफ्तर भारत में हैं। बाकी दस के विदेश में। अदालत ने इन पर आपराधिक साजिश और युवा लोगों को अश्लील किताबों व सामग्रियों की बिक्री का आरोप लगाया था। उसने कहा था कि इन कंपनियों के खिलाफ प्रथमदृष्टया वर्गों के बीच दुश्मनी फैलाने, राष्ट्रीय अखंडता के प्रति पूर्वाग्रह पैदा करने और किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक मत को अपमानित करने का मामला बनता है। लेकिन केंद्र या राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट के पूर्व अनुमति के बिना समन तो तामील नहीं किया जा सकता।

अब केंद्र सरकार की तरफ से सूचना प्रौद्योगिक विभाग ने 21 कंपनियों के खिलाफ वर्गों के बीच शत्रुता और राष्ट्रीय अखंडता के प्रति पूर्वाग्रह फैलाने के लिए मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “उपलब्ध दस्तावेज व सामग्रियां ऐसी हैं जिनसे विभिन्न समूहों के बीच धर्म, जाति, जन्मस्थान, रिहाइश व भाषा के आधार पर विद्वेष फैलाया जा सकता है और सौहार्द को चोट पहुंचाई जा सकती है।” उसका कहना है कि इस साइटों पर दी गई सामग्री उकसावे से भरी है और राष्ट्रीय अखंडता के लिए घातक हैं। इनके खिलाफ आपराधिक दंड संहिता (सीआरपीसी) के अनुच्छेद 196 के तहत भी कार्यवाही की अनुमति दी जाती है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सरकार की तरफ से फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों और गूगल, याहू व माइक्रोसॉफ्ट के प्रतिनिधियों के साथ चार बैठकें हो चुकी हैं।

कोर्ट ने यह रिपोर्ट मिलने के बाद विदेश मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह वाजिब प्रक्रिया के अनुरूप विदेश स्थित आरोपी कंपनियों को समन तालीम करवाए। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 मार्च की तारीख मुकर्रर की है। कोर्ट का यह आदेश शिकायतकर्ता विनय राय के वकील शशि त्रिपाठी की इस पैशकश के बाद आया कि वे अदालत के सामने विदेश स्थित साइटों के नए पतों की सूची पेश करेंगे।

बता दें कि शिकायतकर्ता विनय राय एक पत्रकार है। उनके वकील ने बताया कि कोर्ट ने जिन विदेशी सोशल नेटवर्किंग साइटों को समन भेजा है उनमें फेसबुक इंटरनेशनल, गूगल इंटरनेशनल, यू ट्यूब, ऑरकुट, याहू इंटरनेशनल, ट्रॉपिक्स और ब्लॉग स्पॉट शामिल हैं। सभी को भारतीय दंड संहिता के तहत समन जारी किया गया है। लेकिन अहम सवाल यह है कि सर्च इंजन या सोशल नेटवर्किंग साइटें अपनी कोई सामग्री तो पेश नहीं करतीं। वे तो दूसरों की सामग्री को एक मंच मुहैया कराने का काम करती हैं। भारत में ज्यादातर आम भारतीय ही इन पर अपना लिखा रख रहा है। ऐसे में अगर राष्ट्रीय अखंडता और सांप्रदायित सद्भाव पर कोई चोट कर रहा है तो वह आम भारतवासी ही है। इसमें भी ज्यादातर 20 से 40 साल के युवा लोग हैं।

ऐसे में सरकार आखिर किस पर मुकदमा चलाकर किस पर चोट करना चाहती है, यह बड़ा स्पष्ट है। कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना!! लेकिन लोकतंत्र में आम लोगों को इस तरह चुप नहीं कराया जा सकता। जब चीन जैसे एक पार्टी के शासन वाले देश में ऐसा करने में दिक्कत आ रही है तो भारतीय लोकतंत्र में ऐसा कैसे संभव है? लगता है कि सिब्बल अण्णा हज़ारे के आंदोलन में सोशल नेटवर्किंग साइटों के इस्तेमाल को लेकर खिसिया गए हैं। खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *