सरकार ने पिछले वर्ष अक्तूबर से लेकर अभी तक 298.1 लाख टन चावल की खरीद की है जो पूर्व वर्ष की समान अवधि में की गई खरीद के मुकाबले छह फीसदी कम है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और अन्य सरकारी एजेंसियों ने एक वर्ष पहले की समान अवधि में 315,7 लाख टन चावल की खरीद की थी। चावल की खरीद में गिरावट का कारण 2009-10 केऔरऔर भी

इस साल भी दालों की महंगाई घटने के आसार नहीं हैं क्योंकि इस साल पिछले साल की बनिस्बत कम क्षेत्रफल में दलहन की बोवाई की गई है। कृषि मंत्रालय को राज्यों से मिले आंकड़ों के अनुसार 2 जुलाई 2010 तक देश भर में 5.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में दलहनी फसलें बोई गई हैं, जबकि साल भर पहले 2 जुलाई 2009 तक दलहन का बोवाई रकबा 5.18 लाख हेक्टेयर था। इस तरह इस साल 3000 हेक्टेयर कम रकबेऔरऔर भी

भारत के शहरों में रहनेवाले साढ़े पांच करोड़ परिवारों को गांवों में रहनेवाले 14 करोड़ से ज्यादा परिवारों का होश हो या न हो, लेकिन वहां भी बीमा जैसी वित्तीय सुविधाएं पहुंच रही हैं। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय से मिली जानकारी पर यकीन करें तो पिछले दस सालों में देश के 4.27 करोड़ किसानों ने फसल बीमा का लाभ उठाया है और यही नहीं, इस दौरान फसल बीमा के दावे के रूप में उन्हें कुल 15,521औरऔर भी

सरकार के लिए बड़े सुकून की बात है खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति 19 जून को खत्म सप्ताह में तेजी से घटकर 12.92 फीसदी पर आ गई है। इससे पिछले हफ्ते में यह 16.90 फीसदी थी। इस कमी की वजह अनाज और सब्जियों के थोक मूल्यों का घटना है। एक साल पहले की तुलना में आलू के दाम 39.61 फीसदी और प्याज के दाम 7.36 फीसदी घटे हैं। दालों के थोक भाव सालाना आधार पर 31.57 फीसदी ज्यादाऔरऔर भी

हड्डियों के कमजोर होने का खतरा, दांत पीले पड़कर गिरने का खतरा और ऐसे ही न जाने कितने और बीमारियों का अंदेशा। चौंकिए नहीं, हम धूम्रपान या नशीले पदार्थों की बात नहीं कर रहे। बल्कि यह मसला उस चावल का है जिसमें आर्सेनिक यानी संखिया के अंश मिले हैं। पूर्वी राज्यों के मुख्य भोजन में शामिल बोरो चावल आर्सेनिक की मौजूदगी के कारण अचानक खतरनाक हो गया है। यह जोखिम अन्य चावलों पर लागू नहीं होता है।औरऔर भी

जलवायु परिवर्तन के नुकसान ही नहीं फायदे भी हैं। कृषि क्षेत्र के जानकारों का दावा है कि भारत में खेती को इसका फायदा मिला है। वैश्विक स्तर पर गेहूं व चावल जैसे अनाज की पैदावार में बढ़ोतरी हुई है तो उसके पीछे जलवायु परिवर्तन का भी हाथ है। इस संबंध में हुए अध्ययन से यह तथ्य भी सामने आया है कि देश के कई हिस्सों का औसत तापमान बढ़ा तो कुछ जगहों पर घटा भी है। कृषिऔरऔर भी

हमारी दो-तिहाई खेती अब भी मानसून आधारित है। मौसम और मानसून खराब हुआ तो इन इलाकों की सारी फसल चौपट हो जाती है, किसान बरबाद हो जाते हैं। सरकार ने कहने को राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) चला रखी है। मौसम आधारित फसल बीमा योजना (डब्ल्यूबीसीआईएस) भी है। इसके लिए मौसम के सही आंकड़ों का होना जरूरी है। लेकिन अभी स्थिति यह है कि देश में कुल 14.10 लाख हेक्टेयर जमीन में खेती की जाती है, जबकिऔरऔर भी

महंगाई पर काबू पाने की कीमत सरकार अब किसानों से वसूलने जा रही है। खेती की लागत बढ़ने के बावजूद वह इस बार खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने नहीं जा रही है। धान का मूल्य किसानों को वही मिलेगा जो पिछले साल मिला था। जबकि दलहन के मूल्य में की गई वृद्धि नाकाफी है। जिंस बाजार में दलहन की जो कीमतें हैं, उसके मुकाबले सरकार ने एमएसपी लगभग एक तिहाई रखा है। सरकार केऔरऔर भी

वित्त वर्ष 2009-10 में बैकों व अन्य वित्तीय संस्साओं ने देश के 4.56 करोड़ किसानों को कर्ज दिया था। लेकिन चालू वित्त वर्ष 2010-11 में यह संख्या 5.50 करोड़ तक पहुंच जानी चाहिए। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के चेयरमैन उमेश चंद्र सारंगी ने एक समाचार एजेंसी को दिए गए इंटरव्यू में यह जानकारी दी है। सारंगी का कहना है कि इस साल के लिए निर्धारित कृषि ऋण 3.75 लाख करोड़ रुपए का है औरऔरऔर भी

फर्जी बैनामा करना अथवा कराना अब आसान नहीं होगा। आपकी जमीन पूरी तरह महफूज रहेगी। इस तरह की धोखाधड़ी को रोकने के लिए केंद्र सरकार एक ऐसा कानून बना रही है, जिसमें जमीन के असल मालिक की गारंटी सरकार को लेनी होगी। इसमें आपकी जमीन के मालिकाना हक का बीमा भी होगा। आपके शहरी भूखंड अथवा गांव के खेत को सुरक्षित रखने का दायित्व सरकार के साथ बीमा कंपनी निभाएगी। किसी भी तरह की गड़बड़ी की भरपाईऔरऔर भी