जाति-आधारित राजनीतिक दलों के दबाव में देश में अब वह काम होने जा रहा है जिसे 1947 में आजादी के बाद ही सायास छोड़ दिया गया था। कैबिनेट ने गुरुवार को जाति-आधारित जनगणना को मंजूरी दे दी। यह जनगणना अगली साल फरवरी से मार्च तक सामान्य जनगणना के खत्म होने के बाद जून से शुरू की जाएगी और इसे सितंबर तक खत्म कर लिया जाएगा। इससे पहले देश में आखिरी जाति-आधारित जनगणना अंग्रेजों के शासन में 1931 में की गई थी।
सरकार पर जाति-आधारित जनगणना कराने का मुख्य दबाव मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी और शरद यादव व नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) की तरफ से डाला जा रहा था। वाम दल इसके खिलाफ थे, जबकि कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी में इस पर नेताओं के बीच एक राय नहीं थी।
गुरुवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में कैबिनेट ने जाति-आधारित जनगणना को हरी झंडी दिखा दी। गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस फैसले की जानकारी देते हुए संवाददाताओं को बताया कि जाति-आधारित जनगणना इस समय चल रही सामान्य जनगणना की प्रक्रिया से स्वतंत्र होगी। इसे अगले साल जून से सितंबर तक पूरा कर लिया जाएगा। चिदंबरम ने उम्मीद जताई कि कैबिनेट के इस फैसले से सभी पक्ष ‘संतुष्ट’ होंगे।
उन्होंने बताया कि सरकार के इस फैसले से सामान्य जनगणना और यूनीक आइडेंटीफिकेशन नंबर देने की बायोमेट्रिक प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी। मार्च में आबादी की गणना के पूरी होने के बाद जाति-आधारित जनगणना चरणबद्ध ढंग से संचालित होगी। जाति संबंधी जानकारी इकट्ठा करने का उचित वैधानिक फ्रेम कानून व न्याय मंत्रालय के सलाह-मशविरे से तैयार किया जाएगा। इसमें रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के कार्यालय की भी मदद ली जाएगी। जनगणना के पूरा होने के बाद सरकार जाति/कबीले के वर्गीकरण के लिए अलग से विशेषज्ञों का एक दल बनाएगी।
असल में कई राजनीतिक दलों ने संसद के भीतर और बाहर बार-बार मांग उठाई थी कि 2011 की सामान्य जनगणना में ही अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा अन्य जातियों की गणना का प्रावधान किया जाए। इस पर गृह मंत्रालय ने एक नोट बनाकर मई 2010 में कैबिनेट को भेजा था। उसी महीने कैबिनेट ने इस पर विचार करने के बाद कहा कि अभी इस मसले को और परखने की जरूरत है। इसके बाद गृह मंत्रालय ने एक और नोट बनाया जिस पर विचार करने के बाद कैबिनेट ने इस पर मंत्रियों का समूह बनाने का फैसला किया। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के इसी समूह ने ही अपनी सिफारिश कैबिनेट के सामने रखी थी, जिसे आज गुरुवार को स्वीकार कर लिया गया।
दलालों के रहमों करम पे खरी शर्मनाक सरकार का एक और शर्मनाक फैसला और बोझ 4000 करोड़ का बेचारी भूखे मर रही जनता पर …ये सबके सब पागल हैं …और पूरे देश को पागल बनाकर छोड़ेंगे …