अफसोस की बात है कि अपने यहां 2.5 लाख रुपए की इनकम टैक्स मुक्त सीमा 2014-15 से जस की तस चली आ रही है, जबकि तब से अब तक दस साल में मुद्रास्फीति की औसत दर 5.50% रही है। इस हिसाब से तब के 2.5 लाख रुपए आज के 4.27 लाख रुपए हो चुके हैं। लेकिन सरकार के लिए धन के समय मूल्य या टाइम वैल्यू ऑफ मनी का कोई मतलब नहीं। वो महंगाई को डिस्काउंट किए बिना ऊपर-ऊपर दिख रहे बढ़े मूल्य पर भी टैक्स वसूलने में लगी है। उसने बजट में जिस तरह प्रॉपर्टी बेचने पर इंडेक्सेशन की सुविधा खत्म की है, उससे तो निवेश का कोई मतलब नहीं रह जाता। प्रॉपर्टी पर कैपिटल गेन्स टैक्स 20% से घटाकर 12.5% किया है, वो अलग मसला है। प्रॉपर्टी, सोने, म्यूचुअल फंड या शेयरों में हम निवेश करते हैं ताकि बचत को मुद्रास्फीति खा न जाए। म्यूचुअल फंड और शेयरों पर तो इंडेक्सेशन की कोई सुविधा मिलती नहीं। इसकी भऱपाई हम बाज़ार के गिरने पर खरीदने और चढ़ने पर बेचने से कर सकते हैं। लेकिन इंडेक्सेशन से मुद्रास्फीति के असर को मिटाए बिना प्रॉपर्टी का असल दाम कैसे पता चलेगा? बीस साल पुराने भाव से अभी के भाव के अंतर पर टैक्स लगाना सरकार की धांधागर्दी है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…
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