कोई शेयर बिना किसी वजह के इतना गिर सकता है, यकीन नहीं आता। बांसवाड़ा सिंटेक्स का दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर सात महीने पहले 6 अप्रैल को 149 रुपए के शिखर पर झूम रहा था। लेकिन सवा महीने पहले 28 सितंबर को एनएसई में 78.10 रुपए और बीएसई में 84.05 रुपए तक गिर गया। छह महीने से भी कम वक्त में 47.6 फीसदी की गिरावट। लेकिन इस तरह घटकर करीब-करीब आधा हो जाने की कोई साफ वजह नहीं दिखती। वह भी तब, जब पिछले कई सालों से बराबर इस शेयर कों किसी न किसी कोने से खरीदने की सिफारिशें आती रही हैं।
यह शेयर अब भी अपने न्यूनतम स्तर के करीब चल रहा है। कल यह बीएसई (कोड – 503722) में 89.10 रुपए और एनएसई (BANSWRAS) में 89.05 रुपए पर बंद हुआ है। कंपनी ने सितंबर तिमाही के नतीजे अभी घोषित नहीं किए हैं। जून तिमाही में उसकी बिक्री 14 फीसदी बढ़कर 203.94 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 6.5 फीसदी बढ़कर 9.18 करोड़ रुपए हो गया था। इससे पहले मार्च तिमाही में उसकी बिक्री में 37.04 फीसदी और शुद्ध लाभ में 81.86 फीसदी का इजाफा हुआ था। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी ने कुल 789.84 करोड़ की बिक्री पर 46.93 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था।
ब्रोकरेज फर्म एडेलवाइस के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन सालों में बांसवाड़ा सिंटेक्स की बिक्री 22.84 फीसदी और शुद्ध लाभ 118.13 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। इस समय जून 2011 तक के पिछले बारह महीनों का उसका ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 35.15 रुपए है। उसका शेयर बीएसई में कल 89.10 रुपए पर बंद हुआ है, जबकि उसकी बुक वैल्यू ही 108.43 रुपए है। यह शेयर अभी मात्र 2.53 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। हालांकि पूरे टेक्सटाइल क्षेत्र के स्टॉक्स का हाल ऐसा ही है। फिर भी आलोक इंडस्ट्रीज का शेयर 4.16 और अरविंद लिमिटेड का शेयर 16.54 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। खुद बांसवाड़ा सिंटेक्स का शेयर करीब साल भर पहले अक्टूबर 2010 में 9.17 के पी/ई पर ट्रेड हुआ था, जब इसका उच्चतम भाव 151.90 रुपए तक चला गया था।
अभी उसके करीब-करीब आधे पर है। इस समय खिलाड़ी लोग इसे उठाने की कोशिश में हैं। कारण, वोल्यूम में डिलीवरी का हिस्सा बहुत कम है। जैसे कल बीएसई में इसके 11,202 शेयरों के सौदे हुए जिसमें से केवल 651 या 5.81 फीसदी ही डिलीवरी के लिए थे। इसी तरह कल एनएसई में ट्रेड हुए इसके 12,960 शेयरों में से केवल 748 या 5.70 फीसदी ही डिलीवरी के लिए थे। ट्रेडर इसे चलाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन निवेशक अभी दूर हैं। क्यों हैं? नहीं समझ में आता।
बांसवाड़ा सिंटेक्स का गठन 1976 में राजस्थान सरकार व आर एन तोशनीवाल के साझा उद्यम के रूप में हुआ। 1982 में तोशनीवाल ने राजस्थान सरकार की प्रतिनिधि रीको (राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास व निवेश निगम) की हिस्सेदारी खरीदकर कंपनी पर पूरा नियंत्रण कर लिया। इस समय कंपनी की 14.74 करोड़ रुपए की इक्विटी में तोशनीवाल परिवार व उससे जुड़ी फर्मों का हिस्सा 53.53 फीसदी है। एफआईआई ने कंपनी के कुल 10.70 फीसदी शेयर ले रखे हैं। इसमें से रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड की लंदन शाखा के पास कंपनी के 8.81 फीसदी शेयर हैं जो उसने इसी साल मई में खरीदे हैं।
घरेलू संस्थाओं (डीआईआई) के पास कंपनी के मात्र 0.03 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 9524 है। इसमें से 9265 यानी 97 फीसदी से ज्यादा शेयरधारकों का निवेश एक लाख रुपए से कम है और इनके पास कंपनी के कुल 14.53 फीसदी शेयर हैं। छोटे निवेशकों की शिरकत का यह काफी अच्छा अनुपात है। कंपनी के चार बड़े शेयरधारकों में रॉयल बैंक ऑफ स्टॉकलैंड के अलावा बाकी तीन नाम हैं – मैफकॉम कैपिटल मार्केट्स (7.80 फीसदी), पिंकी एग्जिबिटर्स (4.40 फीसदी) और एल्लारा इंडिया अपॉर्च्युनिटी फंड (1.89 फीसदी)।
बांसवाड़ा सिंटेक्स अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, स्पेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, फिलीपींस, तुर्की व खाड़ी के देशों समेंत दुनिया के 50 से ज्यादा देशों को अपने उत्पाद निर्यात करती है। वह बैनटेक्स ब्रांड से अपने उत्पाद बेचती रही है। इसी साल जुलाई में उसने अपना नया फैशन ब्रांड सेंटएक्स (SaintX) लांच किया है। पहले उसके पास बांसवाड़ा (राजस्थान) में सिंथेटिक यार्न बनाने की एक ही इकाई थी। अब वूल स्पिंनिंग, वीविंग, फैब्रिक प्रोसेसिंग, मेड-अप और रेडीमेंट गारमेंट बनाने तक की इकाइयां उसने लगा ली हैं। दमन और सूरत तक में उसकी इकाइयां हैं। साथ ही कंपनी ने अपनी बिजली खुद बनाने का इंतजाम कर रखा है। उसने 15 मेगावॉट की एक ताप विद्युत इकाई लगा रखी है। उसकी दूसरी कोयला आधारित बिजली इकाई भी मार्च 2011 से चालू हो गई।
कंपनी ने बीते वित्त वर्ष 2010-11 में क्षमता विस्तार व आधुनिकीकरण पर 166 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश किया था। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में 80 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश कर चुकी है। अभी तक कंपनी डीईपीबी (ड्यूटी इनटाइटलमेंट पासबुक) स्कीम के तहत निर्यात करती रही है। यह स्कीम पहली अक्टूबर से खत्म हो गई है। लेकिन वाणिज्य मंत्रालय ने ड्यूटी ड्राबैक दरों के जरिए वैकल्पिक लाभ देने के उपाय किए हैं। कंपनी का बस एक पहलू नकारात्मक लगता है। उसके ऊपर मार्च 2011 तक 567.69 करोड़ रुपए का ऋण था। उसकी नेटवर्थ (इक्विटी + रिजर्व) अभी 159.92 करोड़ रुपए है। इस तरह कंपनी का ऋण/इक्विटी अनुपात फिलहाल 3.55 निकलता है, जिसे अच्छा नहीं माना जा सकता।
बाकी शेयर के यूं धराशाई होने की कोई वजह आप लोगों को पता हो तो जरूर बताइएगा। मुझे तो उपलब्ध सूचनाओं के आधार यह शेयर निवेश के लिए काफी मुफीद लगता है। शेयरधारकों के प्रति कंपनी का रवैया ठीकठाक है। उसका लाभांश यील्ड 5.96 फीसदी है जिसे अच्छा ही नहीं, जबरदस्त माना जाएगा। कंपनी ने बीते वित्त वर्ष 2010 के लिए दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर 5 रुपए यानी 50 फीसदी लाभांश दिया है।