बैंकों ने लघु उद्योगों और किसानों को ज्यादा दिया ऋण, पर बढ़ा एनपीए

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इस बात पर बैंकों की पीठ थपथपाई है कि उन्होंने सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों (एमएसई) को 20 फीसदी ज्यादा ऋण देने के लक्ष्य से आगे बढ़कर 35 फीसदी ज्यादा ऋण दिया है। कृषि क्षेत्र को दिया गया ऋण भी 3.75 लाख करोड़ रुपए के लक्ष्य से 71,000 करोड़ रुपए ज्यादा 4.46 लाख करोड़ रुपए रहा है। लेकिन वित्त मंत्री ने इस बात पर गंभीर चिंता भी जताई है कि वित्त वर्ष 2010-11 में उनके एनपीए या समय पर नहीं लौटाये जानेवाले ऋण की मात्रा बढ़ती जा रही है।

वित्त मंत्री ने शुक्रवार को राजधानी दिल्ली में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के शीर्ष अधिकारियों के साथ हुई समीक्षा बैठक में यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि बीते वित्त वर्ष 2010-11 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों द्वारा दिए गए ऋण में 22.44 फीसदी वृद्धि हुई है। उनका शुद्ध लाभ भी 2009-10 के लगभग 39,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 45,000 करोड़ रुपए हो गया है। लेकिन बैंकों को अपनी आस्तियों या दिए गए ऋणों की गुणवत्ता को लेकर सावधान हो जाना चाहिए।

इस बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए श्री मुखर्जी ने बताया कि 2010-11 में बैंकों का एनपीए या फंस गए ऋण की मात्रा पिछले वित्त वर्ष के 59,927 करोड़ रुपए से 24.51 फीसदी बढ़कर 74,617 करोड़ रुपए हो गई। हालांकि वित्त मंत्री ने यह साफ नहीं किया कि इस एनपीए का कितना हिस्सा कहां से आया है। मसलन, लघु क्षेत्र, कृषि, उद्योग या निजी ऋणों का इसमें कितना योगदान है। असल में बैंक शोर मचाते रहते हैं कि लघु क्षेत्र व कृषि को दिए गए ऋण अक्सर एनपीए में बदल जाते हैं। लेकिन शायद हकीकत ऐसी नहीं है।

वित्त मंत्री ने एमएसई क्षेत्र को ज्यादा ऋण देने पर बैंकों की तारीफ की। लेकिन इस पहलू को भी रेखांकित किया कि इस वृद्धि के बावजूद कुल एमएसई खातों की संख्या पहले से घट गई है। उन्होंने बैंकों से इस क्षेत्र को सक्रियता से ऋण देने का आग्रह किया और कहा कि उन्हें सूक्ष्म व लघु उद्यमों के लिए बनी क्रेडिट गांरटी ट्रस्ट फंड (सीजीटीएमएसई) स्कीम का उपयोग करना चाहिए। वित्त मंत्री ने कहा कि शहरी गरीबों के आवास ऋण में बैंक एक फीसदी की ब्याज रियायत स्कीम पर कायदे से अमल नहीं कर रहे हैं, जबकि उन्हें हाउसिंग क्षेत्र को ज्यादा ऋण देना चाहिए।

श्री मुखर्जी ने कहा कि कृषि क्षेत्र को बैंकों के मिले कुल ऋण पर संतोष जताया जा सकता है। लेकिन कई बैंकों ने इस दायित्व को पूरा नहीं किया है। हालांकि उन्होंने इन बैंकों का नाम नहीं बताया। लेकिन अमूमन निजी क्षेत्र के बैंक और विदेशी बैंक कृषि समेत प्राथमिकता क्षेत्र के लिए तय ऋण सीमा का पालन नहीं करते। किसान क्रेडिट कार्डों की चर्चा करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कृषि ऋण खातों और इन कार्डों की संख्या में भारी अंतर है जो दिखाता है कि बहुत से कार्ड एक्टिव नहीं है। उन्होंने बताया कि एक्टिव किसान कार्डों की संख्या लगभग 16 फीसदी बढ़ी है। वहीं कृषि ऋण खातों की संख्या 80 लाख से बढ़कर 566 लाख (करीब सात गुना) हो गई है।

बता दें कि फसली ऋण समय पर लौटानेवाले किसानों को अभी मात्र 4 फीसदी पर कर्ज मिल रहा है क्योंकि सरकार बाकी 3 फीसदी ब्याज खुद उनकी तरफ से बैंकों को दे देती है। फिर भी इस श्रेणी में वाजिब लोगों को बैंक कर्ज नहीं मिल पा रहा है। वित्त मंत्री ने इस विसंगति को दूर करने की अपील की। दूरदराज तक बैंकिंग सेवाओं को पहुंचाने के लक्ष्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि 31 मार्च 2011 तक दो हजार आबादी तक के 20,000 गांवों तक पहुंचने का लक्ष्य था, जबकि बैंक ऐसे 29,500 गांवों तक पहुंचने में कामयाब रहे। मार्च 2012 तक ऐसे कुल 73,000 गांवों तक पहुचने का लक्ष्य है। इस तरह चालू वित्त वर्ष 2011-12 में बैंकों को बाकी बचे 43,500 गांवों तक अपनी सेवाएं पहुंचानी हैं।

मुखर्जी ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की शेयरधारिता अब औसतन 58 फीसदी रह गई है। शिक्षा ऋण वृद्धि में कमी आने के सवाल पर वित्त मंत्री ने कहा कि इसका आधार काफी व्यापक हुआ है। पिछले वर्षों में शिक्षा ऋण लेने वाले खातों और राशि दोनों में ही वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि 31 मार्च, 2011 तक शिक्षा ऋण खातों में 43,000  करोड़ रुपए बकाया थे।

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