आकर्षण तभी तक है जब तक हम में नया कुछ रचने की क्षमता है। स्थूल रूप में देखें तो सृजन की क्षमता खत्म होते ही चेहरे और शरीर की रौनक चली जाती है। सृजन और सामाजिक स्वीकृति में भी यही रिश्ता है।
2010-08-23
आकर्षण तभी तक है जब तक हम में नया कुछ रचने की क्षमता है। स्थूल रूप में देखें तो सृजन की क्षमता खत्म होते ही चेहरे और शरीर की रौनक चली जाती है। सृजन और सामाजिक स्वीकृति में भी यही रिश्ता है।
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सृजनात्मकता से आयु बढ़ती है।