पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने 1 मई 2011 से रिटेल के अलावा बाकी सभी निवेशकों के लिए अनिवार्य कर दिया है कि वे पब्लिक (आईपीओ, एफपीओ) या राइट्स इश्यू में आवेदन केवल अस्बा (एप्लिकेशन सपोर्टेड बाय ब्लॉक्ड एमाउंट) सुविधा के तहत ही कर सकते हैं। अस्बा ऐसी सुविधा है जिसमें आवंटन होने तक निवेशक की रकम उसके बैंक खाते में ही पड़ी रहती है। शेयरों का आवंटन होने के बाद ही वह रकम कंपनी के खाते में ट्रांसफर होती है। इसमें निवेशक के धन पर आवंटन में लगनेवाली अवधि का ब्याज भी बैंक से मिलता रहता है और रिफंड वगैरह का झंझट भी खत्म हो जाता है।
सोमवार को सेबी के बोर्ड की बैठक में यह फैसला लिया गया। सेबी के चेयरमैन सी बी भावे ने एक संवाददाता सम्मेलन में इस फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि अस्बा के अब तक के इस्तेमाल के अनुभव के आधार पर यह कदम उठाया गया है। सारे क्यूआईबी (क्वालिफायड इंस्टीट्यूशन बायर्स) और गैर-संस्थागत निवेशकों (एनआईआई) को पहली मई से पब्लिक व राइट इश्यू में अस्बा के जरिए ही आवेदन करना होगा।
क्यूआईबी में म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियां, एफआईआई, वेंचर कैंपिटल जैसे तमाम संस्थागत निवेशक आ जाते हैं। एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) निवेशक एनआईआई के तहत आते हैं। इसलिए उनके लिए भी अस्बा की सुविधा अपनाना जरूरी हो गया है। रिटेल यानी दो लाख रुपए तक लगानेवाले निवेशकों के पास पहले जैसी सहूलितय रहेगी कि वे चाहें तो अस्बा का लाभ उठाएं और चाहें तो न उठाएं। उनके लिए इसे अनिवार्य बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
बता दें कि सेबी ने अस्बा की सुविधा सितंबर 2008 में रिटेल निवेशकों के लिए शुरू की थी। 2009 में इसे दूसरे निवेशकों तक भी बढ़ा दिया गया। अब 2011 से इसे नॉन-रिटेल निवेशकों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। वैसे, इसमें निवेशकों का ही फायदा है। इसलिए इसे लागू करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
सेबी बोर्ड ने सोमवार को एक अन्य फैसले के तहत तय किया है कि पूंजी बाजार के सभी मध्यवर्तियों – म्यूचुअल फंड, एफआईआई, वेंचर कैपिटल, मर्चेंट बैंकर वगैरह को बार-बार रजिस्ट्रेशन कराने के झंझट से मुक्त कर दिया जाए। इन सभी को शुरुआत में पांच साल के लिए सेबी के पास रजिस्ट्रेशन कराना होगा। उसके बाद जब वे इसे रिन्यू कराने का आवेदन सेबी के पास करेंगे तो उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए उनका रजिस्ट्रेशन या तो रद्द कर दिया जाएगा या हमेशा के लिए पक्का कर दिया जाएगा। इस समय ब्रोकरों व सब-ब्रोकरों को केवल एक बार रजिस्ट्रेशन कराना होता है जो ताजिंदगी चलता है।
सेबी बोर्ड ने तीसरा फैसला यह लिया है कि करेंसी डेरिवेटिव सेगमेंट में सेल्फ क्लियरिंग सदस्य या ब्रोकर के लिए नेटवर्थ की सीमा 10 करोड़ रुपए से घटाकर 5 करोड़ रुपए कर दी है। यानी, 5 से 10 करोड़ नेटवर्थ के सदस्य सेल्फ क्लियरिंग कर सकते हैं। चौथा फैसला एक सिफारिश है जो सेबी की तरफ से कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के पास भेजी गई है ताकि उसे नए कंपनी अधिनियम में शामिल किया जा सके।
सेबी की सिफारिश की है कि कंपनी विधेयक 2009 के अनुच्छेद 166 में ऐसा प्रावधान किया जाए कि कंपनी के किसी विशेष प्रस्ताव पर उन शेयरधारकों को वोट देने का अधिकार न हो, जिनसे उनका व्यक्तिगत हित जुड़ा हो। सेबी चेयरमैन भावे ने स्पष्ट किया है कि ऐसा प्रवर्तकों की चालबाजी या स्वार्थपरता को रोकने के लिए किया गया है। सेबी ने सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज के मामले की जांच से मिले निष्कर्षों के आधार पर यह सिफारिश तैयार की है।