आंध्रा शुगर्स सिर्फ चीनी नहीं बनाती। वह इसके अलावा एल्कोहल व उससे संबंधित रसायन, एस्पिरिन, क्लोरो एल्कली – सल्फ्यूरिक एसिड, सुपर फॉस्फेट व कॉस्टिक सोडा और बिजली तक बनाती है। इन सभी रसायनों से उसे फायदा हो रहा है, जबकि चीनी उसके गले का कंटक बन गई है। वित्त वर्ष 2010-11 के नतीजों के अनुसार चीनी से हुई उसका बिक्री साल भर पहले के 211.42 करोड़ रुपए से 51.75 फीसदी घटकर 102.01 करोड़ रुपए रह गई और 22.88 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ 14.48 करोड़ रुपए के शुद्ध घाटे में बदल गया।
ये तो भला हो औद्योगिक रसायनों, कॉस्टिक सोडा और बिजली का, जो कंपनी की बिक्री व लाभ पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा और वह घाटे में नहीं आई। वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी की बिक्री साल भर पहले के 578.86 करोड़ रुपए से 10.27 फीसदी घटकर 519.44 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 66.76 करोड़ रुपए से 47 फीसदी घटकर 35.38 करोड़ रुपए रह गया। कंपनी ने ये नतीजे 2 मई 2011 को घोषित किए थे। लेकिन उसके शेयर पर खास फर्क नहीं पड़ा। 2 मई को उसका शेयर 101.80 रुपए पर बंद हुआ था। वहीं अगले दिन 3 मई को बढ़कर 103.55 रुपए तक पहुंच गया।
इसका कारण यह था कि सालाना नतीजे भले ही खराब रहे हों, लेकिन मार्च 2011 की तिमाही कंपनी के लिए अच्छी रही थी। इस दौरान उसकी बिक्री 17.51 फीसदी बढ़कर 133.39 करोड़ से 156.75 करोड़ और शुद्ध लाभ 60.35 फीसदी बढ़कर 12.61 करोड़ से 20.22 करोड़ रुपए हो गया। हालांकि इसके बाद उसका शेयर एक महीने तक थोड़ा-थोड़ा गिरता रहा और अब पिछले एक महीने से ठहरा हुआ है। 3 जून को बीएसई (कोड – 590062) में 97.05 रुपए पर बंद हुआ था और कल 4 जुलाई को इसका बंद भाव 97.35 रुपए रहा है। एनएसई (कोड – ANDHRSUGAR) में यह कल 1.57 फीसदी बढ़कर 96.85 रुपए पर बंद हुआ है।
सवाल वही कि जब चीनी क्षेत्र के डिकंट्रोल की चर्चाएं फिर से उठी हैं, तब क्या आंध्रा शुगर्स में निवेश करना लाभप्रद रहेगा? पहले सामान्य वित्तीय अनुपातों की बात। 2010-11 में भले ही कंपनी का लाभ घटकर लगभग आधा रह गया हो, लेकिन अब भी उसका ईपीएस (प्रति शेयर शुद्ध लाभ) 13.05 रुपए है। इस आधार पर उसका शेयर अभी 7.46 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। शेयर का बाजार भाव 97.35 रुपए है, जबकि उसकी बुक वैल्यू ही 147.24 रुपए है।
आप कहेंगे कि तब तो इस कंपनी में निवेश करना एकदम सही रहेगा। मैं कहूंगा नहीं। कारण, इसमें निवेश के बढ़ने की ज्यादा गुंजाइश नहीं है। यह शेयर जनवरी 2010 में 7.56 के पी/ई पर ट्रेड हुआ था। उसके करीब डेढ़ साल बाद जाकर अब 7.46 के पी/ई पर पहुंचा है। अगस्त 2008 में वो 13.06 के पी/ई तक गया था। नहीं तो अक्सर 5 के नीचे ही नीचे चलता रहा है। हालांकि उसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 145 रुपए (20 सितंबर 2010) और न्यूनतम स्तर 84.55 रुपए (10 फरवरी 2011) का रहा है और वो फिलहाल न्यूनतम स्तर के ज्यादा करीब है, फिर भी मुझे लगता है कि इसमें निवेश करना अपना पैसा फंसाने जैसा है। यहां ज्यादा कुछ फलने-फूलने वाला नहीं है। बल्कि नवभारत वेंचर्स पर नजर रखिए। क्यों? यह हम कल बताएंगे।
आंध्रा शुगर्स आजादी के चार दिन पहले 11 अगस्त 1947 को बनी कंपनी है। चीनी से शुरू करके औद्योगिक रसायनों और बिजली तक पहुंच गई है। वह इस समय कुल 25 अलग-अलग उत्पाद बनाती है। उसकी इकाइयां आंध्र प्रदेश में तनाकु, गुंटूर, कोव्वुर, ताडुवई, सग्गोन्डा और भीमाडोले में स्थित हैं। मूलतः पारिवारिक उद्यम के रूप में इस कंपनी का संचालन होता है। कंपनी की कुल इक्विटी 27.11 करोड़ रुपए है जो दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में बंटी है। इसका 46.28 फीसदी पब्लिक और 53.72 फीसदी प्रवर्तकों के पास है।
आज से करीब नौ साल पहले अगस्त 2002 में एलआईसी के पास इसके 22,73,440 शेयर (8.39 फीसदी इक्विटी) थी। अब उसके पास कंपनी के केवल 1,81,681 शेयर (0.67 फीसदी इक्विटी) है। एफआईआई ने इसमें कोई निवेश नहीं कर रखा है। हां, कंपनी लाभांश देने में उस्ताद है। पिछले कई सालों से वह कभी 50 तो कभी 60 फीसदी लाभांश देती रही है। उसका लाभांश यील्ड 5.13 फीसदी रहा है। लेकिन लालच और दुविधा में मत पड़िए। यह कंपनी हमारी बचत रखने के काबिल नहीं है। वैसे भी, इसमें ट्रेडिंग ज्यादा नहीं होती, यानी इसमें तरलता कम है।