अजंता फार्मा देश की दवा कंपनियों में धंधे के लिहाज 63वें नंबर पर है। छोटी कंपनी है। कुल बाजार पूंजीकरण 410 करोड़ रुपए का है। लेकिन काम जबरदस्त कर रही है। बीते हफ्ते गुरुवार, 28 जुलाई को उसने जून 2011 की तिमाही के नतीजे घोषित किए हैं। इनके मुताबिक इन तीन महीनों में उसकी बिक्री पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 29.52 फीसदी बढ़कर 98.29 करोड़ रुपए से 127.31 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 79.51 फीसदी बढ़कर 6.98 करोड़ रुपए से बढ़कर 12.53 करोड़ रुपए हो गया है।
इससे पहले मार्च 2011 में खत्म वित्त वर्ष 2010-11 में उसने 474.15 करोड़ रुपए की बिक्री पर 46.45 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था और 11.71 करोड़ रुपए की इक्विटी पर उसका प्रति शेयर लाभ (ईपीएस) 39.67 रुपए था। जून के नतीजों के बाद उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस बढ़कर 43.84 रुपए हो गया है। अजंता फार्मा का दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर (बीएसई – 532331, एनएसई – AJANTPHARM) इस समय एक-दो साल नहीं, बल्कि पिछले पांच साल की चोटी पर है।
इसी 22 जुलाई को उसने बीएसई में 368 और एनएसई में 369 रुपए की ऐतिहासिक ऊंचाई हासिल की है। फिलहाल शुक्रवार, 29 जुलाई को 347.10 रुपए पर बंद हुआ है। इसके बावजूद वह महंगा नहीं है। उसका शेयर अभी 7.92 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। 22 जुलाई को वह 8.39 के पी/ई पर ट्रेड हुआ था। साल भर पहले सितंबर 2010 में वह अधिकतम 11.84 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो चुका है। बाजार इधर बी ग्रुप के इस स्टॉक को तवज्जो देने लगा है। इसलिए बहुत संभव है कि हफ्ते-दस दिन की मुनाफावसूली में गिरने के बाद यह फिर उठना शुरू कर दे। इसमें 500 रुपए तक जाने की पर्याप्त गुंजाइश है।
अजंता फार्मा 1973 में बनी मुंबई की कंपनी है। एंटी-मलेरिया, हृदय-रोग, चर्मरोग, स्वांस रोग, मांसपेशियों व आंखों के इलाज से संबंधित दवाएं बनाती है। उसकी चार इकाइयां भारत में और एक मॉरीशस में है। महाराष्ट्र में पैथन स्थित उसकी इकाई को अमेरिकी औषध प्रशासन (यूएसएफडीए) और ब्राजील व कोलंबिया के स्वास्थ्य नियामकों का अनुमोदन मिला हुआ है। इसकी एक दवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मान्यता हासिल है। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में उसकी बिक्री का 37 फीसदी भारतीय बाजार और 63 फीसदी निर्यात से आया था।
कंपनी ने इसी साल मई में अपना बिना प्रेस्किप्शन वाला ब्रांड 30-प्लस डाबर इंडिया को बेचा है। कितने में यह सौदा हुआ है, इसका खुलासा कंपनी ने नहीं किया है। 1990 में लांच किया गया यह लोकप्रिय ब्रांड अजंता फार्मा ने इसलिए बेचा क्योंकि उसके प्रबंध निदेशक योगेश अग्रवाल के अनुसार कंपनी का फोकस अब ओटीसी (ओवर द काउंटर) दवाओं से हट रहा है। वह 125 करोड़ रुपए की लागत से नई दवाएं लाने की कोशिश में है ताकि अमेरिका के अच्छे मार्जिन वाले बाजार में अपना दखल बढ़ा सके। वह असल में 10-12 एएनडीए (एब्रिविएटेड न्यू ड्रग एल्पीकेशन) यूएसएफडीए के पास लगाने जा रही है। इससे पहले दो एएनडीए वह वहां दे चुकी है, जिसकी मंजूरी उसे साल भर में मिल जाएगी।
कंपनी देश के संगठित दवा बाजार को पकड़ने के लिए केंद्र सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसी परियोजनाओं से जुड़ने की पुरजोर कोशिश में है। दवाओं के विकास के लिए उसके पास 200 से ज्यादा वैज्ञानिकों की टीम है। 3200 से ज्यादा उसके कर्मचारी हैं और करीब 30 देशों को अपनी दवाएं निर्यात करती है। कुल मिलाकर कंपनी का अतीत व वर्तमान अच्छा है, जबकि भविष्य काफी संभावनामय दिख रहा है। ऐसे में शिखर के करीब होने के बावजूद अजंता फार्मा के शेयर में निवेश किया जा सकता है। लेकिन दो-चार दिन बाद मुनाफावसूली का असर निकल जाने के बाद।
कंपनी की इक्विटी में प्रवर्तकों की भागादारी 66.82 फीसदी है। बाकी 33.18 फीसदी शेयर पब्लिक के पास हैं। इसमें से 0.31 फीसदी एफआईआई और 0.01 फीसदी डीआईआई के पास हैं। असल में एफआईआई या म्यूचुअल फंड थोक के भाव में खरीद-बिक्री करते हैं। इसलिए अजंता फार्मा जैसी स्मॉल कैप कंपनियों में उनकी ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती। अजंता फार्मा के कुल शेयरधारकों की संख्या 9799 है। प्रवर्तकों से अलग इसके दो बड़े शेयरधारक हैं – बगाडिया सिक्यूरिटीज (1.87 फीसदी) और नरेंद्र कुमार अग्रवाल (1.28 फीसदी)।