अपने देश में टैक्स का धन यूनिवर्सल हेल्थकेयर की पब्लिक फंडिंग में नहीं, बल्कि निजी बीमा कंपनियों और अस्पतालों का धंधा बढ़ाने में जा रहा है। सभी मानते ज़रूर हैं कि हेल्थकेयर की सुविधाएं देना सरकार का काम है और निजी क्षेत्र से इसकी उम्मीद करना बेमानी है। लेकिन यह भी तो सच है कि प्राइवेट हेल्थकेयर क्षेत्र को सरकार ने ज़मीन से लेकर टैक्स जैसी तमाम सुविधाओं में भारी सब्सिडी दे रखी है। इससे हुआ यह कि भारत में एक तरफ दुनिया का सबसे बड़ा प्राइवेट हेल्थकेयर सेक्टर बन गया, वहीं यहां दुनिया में हेल्थकेयर की सबसे कम सरकारी फंडिंग होती है। मोदी सरकार ने कार्यकाल की शुरुआत 2014-15 में हेल्थकेयर पर जीडीपी का 0.98% और अंत में 2023-24 में 1.9% खर्च किया। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक हेल्थकेयर पर अमेरिका जीडीपी का 16.57%, जर्मनी 12.65%, फ्रांस 12.31%, ब्रिटेन 11.34%, जापान 10.82%, ब्राज़ील 9.89%, दक्षिण अफ्रीका 8.27%, रूस 7.39% और चीन 5.38% खर्च करता है। यहां तक कि तालिबानी अफगानिस्तान तक स्वास्थ्य पर जीडीपी का 21.83% खर्च करता है। लेकिन हमारे स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा को तनिक भी शर्म नहीं आती, जब वे लोकसभा में ताल ठोंकते हैं कि उनकी सरकार ने दस साल में हेल्थकेयर पर खर्च जीडीपी के 1.1% से बढ़ाकर 1.9% कर दिया है और इसे 2.5% करने का लक्ष्य है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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