कृषि बीमा एक छलावा, मानसून पर टिकी खेती के लिए महज मुट्ठी भर मौसम केंद्र

हमारी दो-तिहाई खेती अब भी मानसून आधारित है। मौसम और मानसून खराब हुआ तो इन इलाकों की सारी फसल चौपट हो जाती है, किसान बरबाद हो जाते हैं। सरकार ने कहने को राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) चला रखी है। मौसम आधारित फसल बीमा योजना (डब्ल्यूबीसीआईएस) भी है। इसके लिए मौसम के सही आंकड़ों का होना जरूरी है। लेकिन अभी स्थिति यह है कि देश में कुल 14.10 लाख हेक्टेयर जमीन में खेती की जाती है, जबकि स्वचालित मौसम केंद्रों (ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन, एडब्ल्यूएस) की संख्या महज 176 है। मानक यह है कि हर 15 किलोमीटर एक मौसम केंद्र होना चाहिए। इस लिहाज से देश में कम से कम 6000 एडब्ल्यूएस या मौसम केंद्रों की जरूरत है।

यह बात प्रमुख उद्योग संगठन के एक ताजा अध्ययन से सामने आई है। इसके मुताबिक मौजूदा 176 मौसम केंद्रों में 125 का संचालन भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) करता है। वह अगले एक साल में 129 मौसम केंद्र और खोलनेवाला है जिससे देश में कुल मौसन केंद्रों की संख्या 305 हो जाएगी। लेकिन यह देश के व्यापक असिंचित व बारिश पर टिके कृषि क्षेत्रफल को देखते हुए एकदम नाकाफी है। फिक्की का कहना है कि एडब्ल्यूएस लगाने का काम आईएमडी, इसरो, आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र) और एनसीएमएलएल जैसी कई सरकारी संस्थाओं के साथ निजी क्षेत्र की संस्थाएं भी करती हैं। लेकिन इनमें इतना झोल है कि काम अटका पड़ा है। इसके लिए दोषी मौसम केंद्रों की स्थापना पर दी जानेवाली सब्सिडी व्यवस्था से लेकर इनसे जुड़े उपकरणों पर लगनेवाले विभिन्न शुल्क भी हैं।

अभी मौसम खराब होने से फसल को नुकसान हुआ या नहीं, इसका सारा दारोमदार पटवारी की रिपोर्ट पर रहता है। इसलिए इसमें रिश्वतखोरी चलती है और मौसम के प्रभाव का सही आकलन भी नहीं हो पाता है। नतीजतन केंद्र व राज्य सरकार की तरफ से फसल बीमा के प्रीमियम के रूप में दी जानेवाली रकम बरबाद चली जाती है। फसल बीमा का सही लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पाता और बीमा कंपनियां भी सही तरीके से काम नहीं कर पा रही हैं।

बता दें कि देश में राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) की शुरुआत 1999 से की गई है। यह 23 राज्यों और दो केंद्रशासित क्षेत्रों में लागू की गई है। इसमें खरीफ की 30 और रबी सीजन की 25 फसलों को कवर किया गया है। इसके लिए एक निश्चित व न्यूनतम प्रीमियम काश्तकारो को देना होता है। प्रीमियम में इसके ऊपर की रकम का आधा-आधा हिस्सा केंद्र व राज्य सरकारें देती हैं। प्रीमियम के रूप में दी गई यह सब्सिडी कृषि बीमा निगम (एआईसी) के जरिए बीमा कंपनियों तक पहुंचाई जाती है। कृषि व फसल बीमा में सार्वजिनक क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों के अलावा आईसीआईसीआई लोम्बार्ड और इफ्को टोक्यो जैसी निजी कंपनियां भी सक्रिय हैं। लेकिन मौसम के सही आंकड़ों के अभाव में सारा मामला किसानों के लाभ के बजाय आपसी लेन-देन तक सिमट कर रह गया है।

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