मोटी-सी बात है कि प्रॉपर्टी डीलर भी दलाल है और शेयर ब्रोकर भी दलाल है। लेकिन शेयर ब्रोकर पूरी तरह नियंत्रित समुदाय है, सेबी उनकी एक-एक हरकत पर नजर रखती है। कम से कम कानून में तो ऐसा प्रावधान है ही, जबकि प्रॉपर्टी डीलर के व्यवसाय पर किसी का कोई अंकुश नहीं है। वे बेधड़क निवेशकों को गच्चा देते हैं। बड़ा क्रूर सच यह है कि महानगरों से बाहर निकलने पर आम शहरों में शेयर ब्रोकर भी प्रॉपर्टी डीलरों जैसी चाल चलते हैं। बता रहे हैं चुरु (राजस्थान) के सुरेश कुमार शर्मा जो भास्कर पराविद्या शोध संस्थान के सचिव भी हैं।
प्रॉपर्टी डीलर की तुलना शेयर ब्रोकर से करें तो एक बहुत ही गहरा लोचा समझ में आता है। लाखों समझदार निवेशकों के धन-बल पर ब्रोकर कैसे मजे कर रहे हैं इस बात को सहज ही समझा जा सकता है। मान लीजिए संतोष एक निवेशक है। प्रॉपर्टी डीलर उसे फ्लैट खरीदने की सलाह देता है। उसका तर्क है कि अमुक शहर के अमुक एरिया में प्रॉपर्टी के रेट बढ रहे हैं और समय आने पर सही मूल्य पर बेच कर बाहर निकल लेने पर अच्छी कमाई हो जाएगी।
संतोष उसकी राय मान कर फ्लैट खरीद लेता है। रहने के लिए उसके पास अपना मकान तो है ही, इसलिए उसका यह फ्लैट खाली रहता है और वह अपना शहर छोड़ कर उस मकान में रहने के लिए जाने की स्थिति में भी नही है। प्रॉपर्टी डीलर संतोष को समझाता है, “मकान की चाबी मेरे पास छोड़ दो जब उचित मूल्य देनेवाला कोई ग्राहक आएगा तो बेचने के लिए आपसे पूछ लूंगा।” तर्क सही भी है, संतोष उसे चाबी दे देता है। अब प्रॉपर्टी डीलर मकान साथ ही साथ किराये पर भी चढ़ा देता है। प्रॉपर्टी के मूल्य के बढ़ने का इंतजार भी करता है।
अब प्रॉपर्टी डीलर की प्राथमिकताओं पर विचार करिए: डीलर को उस क्षेत्र में प्रॉपर्टी बिकवाने के लिए बिल्डर कमीशन दे रहा है। वह आप से भी खरीदारी का कमीशन ले रहा है। या/और डीलर ने संतोष को सलाह देने से पहले अपने लिए फ्लैट पहले ही खरीद लिए थे। नए ग्राहकों को आकर्षित करके वह उस क्षेत्र में अपनी प्रॉपर्टी की रेट बढ़ा रहा है। इन ग्राहकों में संतोष भी उसका एक ग्राहक है। अगर प्रॉपर्टी के रेट नहीं बढ़ते हैं तो प्रोपर्टी डीलर उस फ्लैट में बैठे किरायेदारों से नियमित किराया वसूल रहा है, इस बात की संतोष को कोई जानकारी नही है।
संतोष को धन की जरूरत होने पर वह लागत मूल्य पर भी मूल्य पर प्रॉपर्टी बेचना चाहे तो डीलर कहेगा इन दिनों मार्केट मन्दा है। लाचार हो कर संतोष डीलर के मूल्य पर प्रॉपर्टी बेच कर नुकसान उठा कर बाहर निकल लेगा। डीलर उस प्रोपर्टी की चाबी अपने ही पास रखेगा। नए ग्राहक को भी वह उसी तर्क से संतुष्ट करके चाबी ले लेगा जिस तर्क से उसने संतोष को संतुष्ट किया था। डीलर की किराये की आमदनी तो जारी है ही, साथ ही उसने प्रॉपर्टी कम मूल्य पर संतोष से खरीद कर फिर से अधिक मूल्य पर नए ग्राहक को बेच कर लाभ कमा लिया।
डीलर को किसी भी मूल्य पर नया ग्राहक मिले उसे दलाली मिलनी है, किराया जारी है, कम मूल्य (मिट्टी के भाव) पर खरीद कर दोबारा प्रॉपर्टी को फैंसी मूल्य पर बेचने के लिए वह फिर नया ग्राहक तलाश करेगा। अत: फ्लैट के मूल्यों का प्रदर्शन वह इस तरह से ऐसे मौकों पर करेगा कि उसे मूल्यों के उतार-चढाव का लाभ होता रहे।
किस्मत से संतोष को अन्य स्रोतों से उस क्षेत्र के बढे मूल्यों की जानकारी हो जाती है और वह डीलर के पास कुछ ग्राहक ले कर जाता है और कहता है कि ग्राहक अच्छे मूल्य पर उस क्षेत्र में फ्लैट खरीदना चाहते है। ऐसी हालत में डीलर संतोष के लाए ग्राहक को पहले अपने मकान बेचेगा व अपेक्षाकृत कम मूल्य पर अंत में संतोष का फ्लैट बिकवाएगा।
संतोष अगर अपने निवेश पर पाए रिटर्न से संतुष्ट है तो डीलर और संतोष का यही खेल फिर चल पड़ेगा। कमाए लाभ से कई बार तो संतोष प्रॉपर्टी डीलर को चार छ: फ्लैट की चाबियां पकड़ा देता है। कभी घाटा भी हो जाए तो संतोष दोबारा किस्मत आजमाने ले लिए फिर लौट कर आता है।
शेयर बाजार में भी कमोबेश इसी तरह से खेल चलता है। निवेशक के डीमैट एकाउंट में पड़े लाखों रुपये के शेयर पर ब्रोकर अपनी लिमिट बनाता है और ऑप्शन ट्रेडिंग करके किराया (दूर के मूल्य के कॉल पुट बेच कर) कमाता रहता है। निवेशक को ऑप्शन ट्रेडिंग की कोई जानकारी नही है। कोई कुछ करना भी चाहे तो उसे भयभीत किया जाता है। फिर भी वह नहीं समझता तो सलाह दी जाती है कि प्रीमियम देना हमेशा सुरक्षित जुआ है, सीमित जोखिम है, प्रीमियम लेना हमेशा खतरनाक है, निवेशक इन चक्करों में न ही पडें तो अच्छा है। पर इस रेंटल इनकम पर ब्रोकर अपना पूरा अधिकार समझता है। अपने निवेशकों की होल्डिंग की एवज में वह हर दिन का किराया खाता है, विशेषकर शनिवार और रविवार की छुट्टी की टाइम वैल्यू उसके लिए करोडों का फायदा कराती है।
डीमैट एकाउंट पर तरह तरह के चार्ज लगाकर वह निवेशक पर अहसान भी कर रहा है कि कम मूल्य पर कितनी तरह की सेवाएं वह निवेशक को दे रहा है। (जैसे प्रॉपर्टी डीलर संतोष की फ्लैट की चाबी अपनी दीवार पर टाँगने का मासिक किराया भी वसूलने लग जाए)।
आम निवेशक के हाथ जिस मूल्य पर शेयर चला जाए उस मूल्य से ऊपर शेयर का मूल्य कभी भी नही जाने दिया जाता, उस शेयर की मिट्टी पलीद कर ही देनी है ताकि निवेशक का पैसा ब्रोकर के पास शेयरों में पड़ा रहे। खुदा न खास्ता कोई कभी कमा जाए तो नकद लेकर जाने की सलाह कभी नहीं दी जाती, उल्टे चार दूसरी कम्पनियों के शेयर फिर खरीदवा दिए जाते हैं।
इस रैकेट में नए बिल्डर, प्रॉपर्टी डीलर न आने पाए इसके लिए गिरोह के सरगनाओं ने तरह तरह के नियामक संस्थान बना रखे हैं जो खरीद-बिक्री की शर्तों, शेयरों के श्रेणीकरण की आड़ में निवेशक का बचा खुचा खून भी चूस लेते हैं। टीवी चैनल्स के रूप में इनका भोँपू नए-नए मुर्गे आकर्षित करता रहता है, पुरानों को ललचाना, डराना तो इसके लिए बाएं हाथ का खेल है। वित्त मंत्री के मुंह से जब जो चाहे उगलवा सकता है। आंकडों की बाजीगरी तो वारे न्यारे कर जाती है। घोटालों के प्रेत निफ्टी को पाताल पहुंचा सकते हैं। रिजर्व बैंक का कोई कदम सेंसेक्स को चकरघिन्नी बना सकता है।
thanx for nice article exposing everything so concisely & precisely,
with regards,
– kk wadhwa
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बहुत सही जानकारी दी आपने थैंक्स