वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का चौथा बजट। सरकार द्वारा घोषित ‘अमृत काल’ के 25 साल का पहला बजट। साल 2022 का बजट। यहां से गिनेंगे तो वर्ष 2047 में भारत की आज़ादी को 100 साल हो जाएंगे। बजट भाषण में वित्त मंत्री ने इस बार इसी India@100 का सपना दिखाया है। उन्होंने भांति-भांति की योजनाएं गिनाने के बाद दावा किया कि सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश के जरिए देश की आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके प्रमाण में उन्होंने बताया, “केंद्रीय बजट में एक बार फिर पूंजीगत व्यय (capital expenditure) वर्तमान वित्त वर्ष 2021-22 के 5.54 लाख करोड़ रुपए बजट अनुमान से 35.4 प्रतिशत बढ़ाकर नए वित्त वर्ष 2022-23 मे 7.50 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। यह 2019-20 के पूंजीगत व्यय से 2.2 गुना ज्यादा है। यह आवंटन हमारे जीडीपी का 2.9 प्रतिशत बनता है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट के तुरंत बाद लपककर कहा, “यह बजट 100 साल की भयानक आपदा (कोविड-19) के बीच विकास का एक नया विश्वास लेकर आया है। यह बजट अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ-साथ आम आदमी के लिए कई नए अवसर पैदा करेगा।” गृह मंत्री अमित शाह का कहना है, “मोदी सरकार द्वारा लाया गया यह बजट एक दूरदर्शी बजट है जो भारत की अर्थव्यवस्था का स्केल बदलने वाला बजट साबित होगा। यह बजट भारत को आत्मनिर्भर बनाने के साथ स्वतंत्रता के 100वें वर्ष के नए भारत की नींव डालेगा।”
आइए देखते हैं कि इस बार पूंजीगत खर्च का आवंटन बढ़ाए जाने की हकीकत क्या है? इस तहकीकात में हमने किसी लम-तड़ानी का नहीं, बल्कि जुलाई 2019 तक देश के वित्त व आर्थिक मामलात के सचिव रहे सुभाष चंद्र गर्ग के विश्लेषण का सहारा लिया है। सबसे पहले यह जान लें कि केंद्र सरकार हर साल जो खर्च करती है, उसके दो भाग या खाते होते हैं। एक राजस्व व्यय जो अभी तक बनाए गए समूचे तंत्र को चलाते रहने, पुराने ऋणों व ब्याज की अदायगी पर जाता है। इस खाते में किए गए खर्च से नया कुछ नहीं बनता। यह रखरखाव का खर्च है और इसे अनुत्पादक माना जाता है। वहीं, दूसरा खर्च पूंजी खाते में किया जाता है जो नया बनाने में लगता है। बजट की यह रकम नई आस्तियां बनाने पर खर्च होती है और उसे उत्पादक माना जाता है।
इस बार वित्त वर्ष 2022-23 के लिए बजट में कुल खर्च 39,44,909 करोड़ रुपए रखा गया है। इसमें से 31,94,663 करोड़ रुपए यानी 80.98 प्रतिशत हिस्सा राजस्व खाते या अनुत्पादक मदों पर खर्च किया जाना है। वहीं, पूंजी खाते में प्रस्तावित खर्च 7,50,246 करोड़ रुपए है। इस तरह सरकार अपनी कुल आय का मात्र 19.02 प्रतिशत हिस्सा नए सृजन या उत्पादक मदों पर खर्च करेगी। कमाल है कि इसी के दम पर प्रधानमंत्री मोदी विकास के नए विश्वास और वित्त मंत्री सीतारमण पूंजीगत खर्च 35.4 प्रतिशत बढ़ाने का दावा कर रही हैं। दिक्कत यह है कि इस दावे का समूचा आधार ही झूठा है तो इसकी सफलता का कोई विश्वास कैसे बनाया जा सकता है!
खैर, पूंजीगत खर्च सीधा अंकगणित समझते हैं। कुल 7,50,246 करोड़ रुपए के पूंजी खाते के व्यय से 1,11,899 करोड़ रुपए राज्यों को ट्रांसफर किए जाएंगे। यह रकम केंद्र सरकार खुद लोन लेकर राज्य सरकारों को टांसफर करेगी। पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग कहते हैं कि राज्य सरकारों को केंद्र से लोन मिल जाएगा तो वे दूसरी जगहों से लोन कम लेंगी। लेकिन दोनों तरह की सरकारों द्वारा उधार लेकर किया गया पूंजीगत खर्च एकसमान रहता है। इधर का धन उधर। यहां केवल केंद्र व राज्य सरकारों के खाते के घालमेल से भ्रम पैदा किया जा रहा है।
बीतते वित्त वर्ष 2021-22 में केंद्र से राज्यों को ट्रांसफर पूंजी खाते का व्यय मात्र 13,168 करोड़ रुपए था। उसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता था। लेकिन इस बार रकम इतनी बड़ी है कि अनदेखा नहीं कर सकते। राज्यों को ट्रांसफर की जा रही रकम घटा दें तो इस बार केंद्र सरकार का पूंजीगत खर्च बचता है 6,38,347 करोड़ रुपए। दरअसल, केंद्र के पूंजीगत व्यय के दो भाग होते हैं। एक में रेलवे व राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) जैसे विभागों का नया खर्च आता है, जबकि दूसरे भाग में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम अपने आंतरिक और बजट से बाहर के संसाधनों से धन जुटाकर खर्च करते हैं।
गर्ग ने अपने ट्वीट में बताया है कि 2021-22 में सार्वजनिक क्षेत्र के पूंजीगत व्यय का बजट अनुमान 5.82 लाख करोड़ रुपए का था। यह संशोधित अनुमान में घटकर 5.02 लाख करोड़ रुपए रह गया है। इस बार 2022-23 में सार्वजनिक क्षेत्र के पूंजीगत व्यय का बजट अनुमान और ज्यादा घटाकर 4.69 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है जो साल भर पहले के बजट अनुमान से पूरे 1.13 लाख करोड़ रुपए कम है।
कुल मिलाकर 2022-23 में बजट में साल भर पहले से राज्यों को ट्रांसफर लोन की रकम जहां 98,731 करोड़ रुपए बढ़ाई गई, वहीं सार्वजनिक क्षेत्र का पूंजीगत व्यय 1.13 लाख करोड़ रुपए घटा दिया गया। दोनों को जोड़ दें तो 2.12 लाख करोड़ रुपए वित्त वर्ष 2021-22 में पूंजीगत खर्च के बजट अनुमान से घटा दिए गए हैं। ऐसे में 2022-23 का घोषित बजट अनुमान 7,50,246 करोड़ रुपए से हकीकत में घटकर 5,38,246 करोड़ रुपए रह जाता है।
इस तरह वित्त मंत्री जिसे 35.4 प्रतिशत ज्यादा बता रही है, वह दरअसल बीतते साल 2021-22 के बजट अनुमान 5,54,236 करोड़ रुपए से 5990 करोड़ रुपए या 1.08 प्रतिशत कम है। ऊपर-ऊपर भी देखें तो नए वित्त वर्ष 2022-23 में सार्वजनिक क्षेत्र को मिलाकर केंद्र सरकार का सारा पूंजी व्यय वित्त वर्ष 2021-22 के बजट अनुमान 11.37 लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर 12.20 लाख करोड़ रुपए किया गया है। यह लगभग 83,000 करोड़ रुपए की वृद्धि अगर राज्यों को 98,731 करोड़ रुपए के अतिरिक्त ट्रांसफर से एडजस्ट कर दी जाए तो पूंजी व्यय बढ़ाने नहीं, घटाने का ही मामला बनता है।
सरकार का ग्राफ तक झूठ बोलता है: झूठहिं लेना झूठहिं देना झूठहिं भोजन झूठ चबैना
बजट के व्यय संबंधी दस्तावेजों को देखें तो साफ होता है कि केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय के चार हिस्से हैं जो उसके कुल खर्च का लगभग 80 प्रतिशत बनाते हैं। पहला है रेलवे को पूंजी सहायता जो इस बार 1,37,100 करोड़ रुपए है। दूसरा है सड़क परिवहन व राजमार्ग जिसे इस बार 1,87,744 करोड़ रुपए की पूंजी दी जानी है। तीसरे हिस्से में है रक्षा मंत्रालय के तहत की जानेवाली 1,52,370 करोड़ रुपए के हथियारों व गोला-बारूद की खरीद। चौथा है शहरी विकास मंत्रालय को मेट्रो व हाउसिंग परियोजनाओं के लिए किया गया 27,341 करोड़ रुपए का आवंटन। इन चारों को मिला दें तो कुल रकम 5,04,555 करोड़ रुपए की बनती है जो इस बार के कुल पूंजी व्यय 7,50,246 करोड़ रुपए का 67.25 प्रतिशत है। लेकिन राज्यों को दिए गए लोन को घटा दें तो 6,38,347 करोड़ रुपए के बचे पूंजी खर्च का 79.04 प्रतिशत निकलती है। गर्ग बताते हैं कि केंद्र सरकार ने इस बार 45,000 करोड़ रुपए का पूंजी व्यय आवंटित नहीं किया है। यह आर्थिक मामलात विभाग में रखा है और फिलहाल इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।
गौरतलब है कि सुभाष चंद्र गर्ग ने पिछले साल 2021-22 के भी बजट में पूंजीगत व्यय की विसंगतियों को उजागर किया था। तब भी वित्त मंत्री सीतारमण ने दावा किया था कि केंद्र के पूंजीगत व्यय का बजट अनुमान 2020-21 के 4.12 लाख करोड़ रुपए से 34.5 प्रतिशत बढ़ाकर 5.54 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है और 2020-21 का संशोधित अनुमान 6.55 प्रतिशत बढ़कर 4.39 करोड़ रुपए हो गया है। पूर्व वित्त सचिव ने कहा था कि 2020-21 में पूंजीगत खर्च के अनुमान का बढ़ना केवल झांकी व भ्रम है, जबकि 2021-22 के अनुमान बहुत ज्यादा आशावादी हैं।
उन्होंने खासतौर पर रेलवे में ‘कोविड संबंधी संसाधन अंतर की भरपाई’ के लिए दिए गए ऋण का मुद्दा उठाया था। उनका कहना था कि अगर इसके लिए किए गए 1,08,398 करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च का प्रावधान संशोधित अनुमान से निकाल दिया जाए तो 2020-21 में रेलवे का वास्तविक पूंजीगत खर्च घटकर केवल 29,000 करोड़ रुपए रह जाता है। ऐसे कई मुद्दे उन्होंने मीडिया के साथ खुलकर साझा किए थे। इस बार भी 2021-22 में केंद्र के पूंजीगत खर्च का संशोधित अनुमान 6,02,711 करोड़ रुपए का है जो 5,54,236 करोड़ रुपए के बजट अनुमान से 8.75 प्रतिशत ज्यादा दिखता है। लेकिन अगर टाटा समूह को बेची जा रही एयर इंडिया की देयता चुकाने के लिए रखे 51,971 करोड़ रुपए को हटा दें तो वास्तविक खर्च 5,50,740 करोड़ रुपए निकलता है जो बजट अनुमान से 3496 करोड़ रुपए कम है।
असल में लगता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को बजट में इस तरह की गलतबयानी करने की आदत पड़ गई है। पिछले बजट में भी उन्होंने कहा था, “स्वास्थ्य व कल्याण के लिए इस वर्ष (2020-21) के बजट अनुमान 94,452 करोड़ रुपए की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 में बजट अनुमान 2,23,846 करोड़ रुपए का है। इस तरह इसमें 137 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।” बाद में जब बजट दस्तावेजों पर गौर किया गया तो पाया गया कि हकीकत में स्वास्थ्य पर खर्च 137 प्रतिशत बढ़ाने के बजाय 82,445 करोड़ रुपए से घटाकर 74,602 करोड़ रुपए कर दिया गया था।