हर किसी को पता था कि अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा दक्षिण कोरिया के साथ किसी मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तखत नहीं करने जा रहे हैं। लेकिन एफआईआई ने एक तरफ से 200 करोड़ डॉलर के शेयर बेच डाले और कोरिया का बाजार 3 फीसदी लुढ़क गया। हो सकता है कि बाजार को अंदेशा रहा हो कि बीते सप्ताहांत सोल में जी-20 शिखर सम्मेलन की सफल समाप्ति के बाद कोरिया ब्याज दरों में चौथाई फीसदी की वृद्धि कर सकता है। लेकिन इतना तय है कि समझौते पर दस्तखत न करना असली समस्या नहीं थी।
दरअसल दक्षिण कोरिया अपने यहां विदेशी पूंजी के प्रवाह को रोकना चाहता है क्योंकि उसे चिंता है कि बाहर से ज्यादा पूंजी आने पर देश में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। यह था असली मसला। आयरलैंड के जितने डिफॉल्ट की नौबत आई है, वह रकम तो एसबीआई के बाजार पूंजीकरण से भी कम है और भारत का एक कॉरपोरेट घराना ही चाहे तो आयरलैंड का अधिग्रहण कर सकता है। हकीकत यह है कि जब भी यूरोपीय देशों के डिफॉल्ट होने की खबरें आई हैं, भारतीय बाजार शुरुआती झटके के बाद पहले से मजबूत होकर उभरा है। पिछले हफ्ते शुक्रवार को भी ऐसा ही झटका लगा था जिसके बाद बाजार को उभरना ही था। और, ऐसा ही हुआ। सेंसेक्स व निफ्टी दोनों ही बढ़कर बंद हुए हैं।
अब तक यह बात साफ हो चुकी है कि भारत की कोई योजना कोरिया या अन्य देशों की तरह विदेशी पूंजी प्रवाह को रोकने की नहीं है। हमारे वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी बराबर कहते रहे हैं कि भारत और भी ज्यादा विदेशी पूंजी प्रवाह से निपटने में सक्षम है, इसलिए उससे भारतीय रुपए पर पड़नेवाले असर को लेकर ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। जी-20 विदेशी पूंजी के प्रवाह को रोकने पर जोर नहीं दे सकता था। ऐसे में हर उभरती अर्थव्यवस्था वाला देश पूंजी-नियंत्रण के अपने उपाय अपनाने को स्वतंत्र है। प्रणब दा ने कल फिर दावा किया कि हम आराम से 9 फीसदी आर्थिक विकास दर हासिल कर सकते हैं।
इस महीने का सेटलमेंट चक्र छोटा है। आज 15 नवंबर बीत गया। कल के बाद इस चक्र के खत्म होने में केवल आठ कारोबारी सत्र बचे हैं। इसलिए हम आसानी से बाजार (सेंसेक्स) में घबराहट के चलते आई 1000 अंकों की गिरावट को रोलओवर से जोड़ सकते हैं। फिर भी मैं हमेशा की तरह कहूंगा कि वैसे तो डेरिवेटिव सौदों का लालच छोड़ना मुश्किल होता है, लेकिन कमजोर खिलाड़ियों को इनमें ज्यादा हाथ नहीं डालना चाहिए। जब तक डेरिवेटिव कारोबार (फ्यूचर्स व ऑप्शंस) में फिजिकल सेटलमेंट की व्यवस्था नहीं लागू होती, तब तक भाव कहीं से उछलकर कहीं तक जा सकते हैं।
इस बार रोलओवर के दौर में बाजार से सीधी-सरल चाल की उम्मीद मत कीजिए। अगर 28 अक्टूबर को हमने 5 फीसदी से ज्यादा कैरीओवर दरों का इतिहास बनाया है तो इस बार हालात उससे से भी बदतर हो सकते हैं और कोई भी आपको बचाने नहीं आनेवाला है। जो लोग अपनी लांग पोजिशन को होल्ड रखना चाहते हैं, उन्हें जल्दी ही रोलओवर कर लेना चाहिए क्योंकि अभी यह काम सस्ते मे निपट जाएगा। मेरा सुझाव है कि डेरिवेटिव सौदों में आप कोई भी नई पोजिशन नवंबर के बजाय दिसंबर की लें। जिन्होंने शॉर्ट सौदे कर रखे हैं, वे 25 नवंबर को शाम 3.30 बजे तक इंतजार कर सकते हैं। आपको 5 फीसदी का एक और तोहफा मिल सकता है।
प्रमुख ऑपरेटर ऑटो और बैंकिंग सेक्टर में अपनी लांग पोजिशन घटा रहे हैं और रीयल्टी, मेटल व माइनिंग स्टॉक्स में खरीद करने लगे हैं। अगर बाजार (निफ्टी) 5600 का स्तर भी पूरी तरह तोड़ देता है, तब यह 4000 तक जा सकता है। लेकिन अगर यह वापस 6200 तक पहुंचता है तो यह दिसंबर व जनवरी में 6666 का स्तर छू लेगा। मैं बाजार में लांग रहने के पक्ष में हूं। इसलिए ट्रेडरों से कहूंगा कि वे अतिविश्वासी न बनें। बाकी आपकी मर्जी। जो मेरे साथ आना चाहते हैं उन्हें सीमित स्तर पर लांग पोजिशन पकड़नी चाहिए। लेकिन ज्यादा उधार लेकर खरीद न करें।
असली नेता वह है जो किसी के बिना देखे भी सही काम करता रहता है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)