अगर किसी को भारतीय अर्थव्यवस्था की सही दशा-दिशा पर शक हो तो उसे अब प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने दूर कर दिया है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली इस परिषद ने ‘इकनोमिक आउटलुक 2010-11’ नाम से जारी लगभग नब्बे पेज की रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था के एक-एक पहलू का विवेचन किया है। उसका खास आकलन है कि इस वित्त वर्ष 2010-11 में कृषि की विकास दर 4.5 फीसदी रहेगी, जबकि बीते वित्त वर्ष 2009-10 में यह केवल 0.2 फीसदी थी। इस साल देश में विदेशी पूंजी का आना भी 26.6 फीसदी बढ़ जाएगा। इसके अलावा 2010-11 में उद्योग की विकास दर 9.7 फीसदी और सेवा क्षेत्र की विकास दर 8.9 फीसदी रहेगी। बीते वर्ष उद्योग की विकास दर 9.3 फीसदी और सेवा क्षेत्र की विकास दर 8.5 फीसदी रही थी।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद में सी रंगराजन के अलावा सुमन के बेरी, डॉ. सुमित्रा चौधरी, डॉ. एम गोविंद राव, डॉ. वीएस व्यास और डॉ. के पी कृष्णन शामिल हैं। परिषद ने अच्छे मानसून के आधार पर कृषि क्षेत्र के 4.5 फीसदी विकास का अनुमान लगाया है। उसका कहना है कि 2010-11 में खरीफ और रबी दोनों ही फसलों की पैदावार में अच्छी वृद्धि की उम्मीद है। पिछले साल व्यापक सूखे के कारण देश में खाद्यान्न (गेहूं, चावल, मोटे अनाज व दाल) उत्पादन 162.8 लाख टन (लगभग 7 फीसदी) घट गया था। 2008-09 में खाद्यान्न उत्पादन 2344.7 लाख टन का था, जबकि 2009-10 में यह 2181.9 लाख टन रह गया। इसका नकारात्मक मुद्रास्फीति पर भी पड़ा। लेकिन अब अनुमान है कि मुद्रास्फीति की दर मार्च 2011 तक घटकर 6.5 फीसदी पर आ जाएगी। पिछले माह जून में यह 10.55 फीसदी रही है।
कृषि क्षेत्र में विकास से पूरे देश के आर्थिक विकास को गति मिलेगी और हम 2010-11 में आराम से 8.5 फीसदी की आर्थिक विकास दर हासिल कर लेंगे। परिषद का आकलन है कि इसके बाद के साल 2011-12 में आर्थिक विकास की दर 9 फीसदी हो जाएगी जिसमें कृषि क्षेत्र का विकास 4 फीसदी, उद्योग का 10.3 फीसदी और सेवा क्षेत्र का विकास 9.8 फीसदी रहेगा। हम इतना विकास घरेलू बाजार के आधार पर हासिल करेंगे क्योंकि वैश्विक आर्थिक व वित्तीय हालात में सुधार की रफ्तार एकदम धीमी चल रही है। देश के आर्थिक विकास के प्रमुख इंजिन का काम करेगी बढ़ती घरेलू बचत और निवेश दर। निवेश दर के इस साल 37 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि 2011-12 में यह 38.4 फीसदी हो सकती है। इसी तरह घरेलू बचत दर इस साल 34 फीसदी रहेगी तो अगले साल 36 फीसदी हो जाएगी।
वैश्विक बाजार की हालत न सुधरने का असर देश के निर्यात और चालू खाते के घाटे पर पड़ेगा। अनुमान है कि चालू खाते का घाटा 2010-11 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 2.7 फीसदी रहेगा और 2011-12 में बढ़कर 2.9 फीसदी हो जाएगा। चालू खाते के घाटे में होने का मोटा मतलब यह है कि हम माल और सेवाओं का जितना निर्यात कर रहे हैं, उससे ज्यादा देश में उनका आयात हो रहा है। लेकिन इस दौरान देश में विदेशी पूंजी का प्रवाह जारी रहेगा। 2009-10 में देश में 53.6 अरब डॉलर विदेशी पूंजी आई थी। इसके 2010-11 में 73 अरब डॉलर और 2011-12 में 91 अरब डॉलर रहने का अनुमान है। इस तरह इस साल विदेशी पूंजी का आना 26.58 फीसदी बढ़ जाने का आकलन है। इससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2010-11 में 30.9 अरब डॉलर और 2011-12 में 39.8 अरब डॉलर बढ़ जाएगा।